JNU प्रेसिडेंट आइशी घोष ने कहा- ‘मेरे मुसलमान साथियों JNU कैंपस में शरण ले लो’

JNU एक देश है, मैं वहां की प्रधानमंत्री हूं, आओ सब शरण ले लो!!

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जेएनयू छात्रसंघ की अध्यक्ष आइशी घोष ने कहा है कि मुस्लिम चाहे तो जेएनयू कैंपस में आश्रय ले सकते हैं। आइशी घोष ने ट्वीट कर कहा है कि आश्रय की मांग करने वालों के लिए जेएनयू परिसर और जेएनयूएसयू कार्यालय हमेशा खुला है, जिसे आना है वह हमसे सम्पर्क करके आ सकता है।

आइशी घोष ने एक पोस्टर शेयर किया, जिसका शीर्षक है “मुसलमानों पर राज्य-प्रायोजित हिंसा के खिलाफ सभी एकजुट हो”। इस पोस्टर में लिखा है कि जिसे वॉलंटियर बनना है या राहत कार्य में शामिल होना है वह भी संपर्क कर सकता है। उन्होंने ट्वीट में वामपंथियों के चहते जैसे राणा अय्यूब, स्वरा भास्कर, कन्हैया कुमार, उमर खालिद और शाहीन बाग के ऑफिशियल ट्विटर हैंडल को भी टैग किया।

जेएनयू, एक केंद्रीय विश्वविद्यालय होने के नाते, मोदी सरकार के प्रशासन के अधीन है। जेएनयू प्रशासन की नियुक्ति केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री द्वारा की जाती है। JNU के छात्रों और प्रशासन पर केंद्र सरकार प्रति वर्ष 3,00 करोड़ रुपये से अधिक खर्च करती है।

मालूम हो कि किसी भी विश्वविद्यालय, केंद्रीय विश्वविद्यालय में बिना प्रशासन की इजाजत के कोई भी प्रवेश नहीं कर सकता। लेकिन यहां जेएनयू अध्यक्ष आइशी घोष ये नियम कानून भूल गईं और नियमों को ताक पर रखकर पोस्टर शेयर दीं, कि आईए जेएनयू हमारी निजी संपत्ति है कोई भी यहां डेरा डाल सकता है। चाहे वह दंगाई ही क्यों न हो।

जेएनयू छात्रसंघ आइशी घोष की ट्वीट को देखें तो साफ पता चलता है कि वह केंद्र सरकार की नियमों को नहीं मानती हैं। इससे पहले घोष ने रिटायर्ड सेना के कर्मियों की तैनाती पर सवाल उठाया था, ये वही रिटायर्ड सेना के जवान हैं जो जेएनयू में सुरक्षा गॉर्ड की नौकरी करते हैं। जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष आइश घोष ने कहा, “भर्ती बेहद गोपनीय तरीके से हुई … प्रशासन को सब पता है कि कार्यकर्ताओं, गार्डों और छात्रों के बीच किसी तरह की एकजुटता है, जो प्रशासन को पसंद नहीं है।” इस बयान से साफ पता चलता है कि आइशी घोष सेना के रिटायर्ड जवानों से कितना नफरत करती हैं।

जेएनयू उन कुछ विश्वविद्यालयों में शामिल है जहां अभी भी वामपंथियों का वर्चस्व है। जहां पूरी दुनिया ने मार्क्स के विचारों को नकार दिया है, वहीं जेएनयू ही एक ऐसी जगह है जहां इन वामपंथियों ने इसे जिंदा करने का ठेका लिया है।

जेएनयू में वामपंथ का कितना असर है वहां की कैंपस में जाकर देखा जा सकता है। जेएनयू की दीवारें लाल रंगों से रंग दी गई हैं। वामपंथ के नारों से दीवारों को पाट दिया गया है। सुबह-शाम लाल सलाम, लाल सलाम कॉमरेड, कश्मीर मांगे आजादी, पंजाब बोला आजादी, यूपी बोला आजादी, अरुणाचल बोला आजादी और दिल्ली बोली आजादी जैसे नारें लगना यहां आम बात है।

दीवारों पर खिलाफत 2.0, लाल किले पर लाल निशान, ब्राह्मणवाद से आजादी जैसे तमाम स्लोगनों से जेएनयू की दीवारें पटी होती हैं। हद तो तब हो गई थी जब जेएनयू के कैंपस में ”अफजल हम शर्मिंदा हैं, तेरे कातिल जिंदा हैं,” भारत तेरे टुकड़े होंगे, संग बाजी वाली आजादी (पत्थरबाजी वाली), ‘इंडियन आर्मी को दो रगड़ा’, ‘गो इंडिया, गो बैक’, ‘कितने मकबूल मारोगे, हर घर से मकबूल निकलेगा’ जैसे देशविरोधी नारे यहां से निकलते हैं।

कुल मिलाकर जेएनयू के वामपंथी छात्र जेएनयू को अलग देश की तरह मानते हैं और खुद को वहां की सरकार। उन्हें भारत सरकार, न्याय व्यवस्था, संविधान और प्रशासन से कोई मतलब नहीं होता। अब जेएनयू में मुस्लिमों को आश्रय देने की बात कर आइशी घोष ने साफ इन बातों पर मुहर लगा दिया है कि वे भारतीय कानून व जेएनयू प्रशासन को खुद से नीचे मानती हैं।

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