कम्युनिस्ट विचारधारा में धर्म का कोई स्थान नहीं होता है। इस विचारधारा को मानने वाले लोग किसी भी धर्म या ईश्वर में विश्वास नहीं रखते हैं और न ही वे भगवान, अल्लाह, जीसस में विश्वास रखते हैं। विश्व में इस तरह की विचारधारा रखने वाले किसी भी धर्म को निरर्थक मानते हैं। पर पश्चिम बंगाल में इस बार कुछ अलग होने जा रहा है। इस राज्य की कम्युनिस्ट पार्टी Atheism छोड़ हिंदुओं का तुष्टीकरण करने की योजना बना रही है।
पश्चिम बंगाल में 2021 में विधानसभा चुनाव होने हैं और CPIM को सत्ता से दूर रहे 9 वर्ष हो चुके हैं। इस वजह से वापस सत्ता में आने के लिए ये एथिस्ट पार्टी अपनी विचारधारा के विपरीत मंदिरों में भगवान की शरण में पहुंचने लगी है।
द प्रिंट की एक रिपोर्ट के अनुसार इस महीने एक सीपीआई (एम) की समीक्षा रिपोर्ट में इस पार्टी ने यह कहा है कि “मंदिरों और अन्य धार्मिक स्थानों को सिर्फ RSS और उसके विभिन्न संगठनों के लिए नहीं छोड़ सकती है।”
इस रिपोर्ट के अनुसार CPIM का यह मनना है कि, “RSS अपने वैचारिक और हिंदुत्व प्रचार के लिए मंदिरों और अन्य धार्मिक संस्थानों का उपयोग करता है”। हालांकि, अगर सच कहें तो त्योहारों के दौरान कम्युनिस्ट पार्टी को बूक स्टाल लगा कर अपनी विचारधारा प्रचारित करते देखा गया है। इस रिपोर्ट में भी मंदिरों के अंदर स्थायी बुकशॉप, मेडिकल सेंटर और पानी की सुविधा का प्रबंध करने के लिए कहा गया है ताकि हिन्दुत्व से मुक़ाबला किया जा सके।
इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि चुनाव के दौरान पार्टी द्वारा चलाए जा रहे बौद्धिक संसाधनों और अनुसंधान केंद्रों को शैक्षणिक संस्थानों में वैचारिक लड़ाई के लिए 10 बुद्धिजीवियों, इतिहासकारों और सांस्कृतिक हस्तियों को भेजा जाएगा।
कम्युनिस्ट विचारधारा किसी भी प्रकार की धार्मिक गतिविधि में संलिप्त होने से मना करती है। पर अब मंदिरों में अपना स्टाल खोल कर और इस तरह से अपनी विचार धारा के अस्तित्व को बचाने के लिए यह पार्टी अपनी विचार धारा से ही विमुख होती जा रही है।
हालांकि, यह पहली बार ही है कि कम्युनिस्ट पार्टी इस तरह से धार्मिक त्योहारों में शामिल होने का प्लान बना रही है, इस पार्टी के नेताओं को इससे पहले भी धार्मिक अनुष्ठान में भाग लेते देखा जा चुका है। उस दौरान येचुरी सिर पर कलश उठाए हुए तो कभी सिर पर फूल रखे दिखे थे। वामदलों के सदस्यों के लिए पार्टी की ओर से सख्त हिदायत होती है कि वे किसी भी धार्मिक कार्यों या मंदिर के पूजा आदि में शामिल न हो, जबकि सीताराम येचुरी तो पार्टी प्रमुख थे। यूनाइटेड किंगडम के दो बार प्रधानमंत्री रहे कम्युनिस्ट विचारधारा के समर्थक बेंजामिन डिज़राइली का कथन है कि “जहां ज्ञान ख़त्म होता है, वहां धर्म शुरू होता है।”
इस तरह से देखा जाए तो कम्युनिस्ट यह मानते हैं कि जो धार्मिक होता है उसके पास ज्ञान नहीं होता। यह तो हास्यास्पद ही है कि अब कम्युनिस्ट पार्टी स्वयं अज्ञानी बनने जा रही है।
अब सवाल यह उठता है कि जब कम्युनिस्ट लोग धर्म-कर्म को मानते ही नहीं है तो फिर यह ढोंग क्यों? सत्ता पाने के लिए और मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए ये भगवान को धोखा दे रहे हैं या वाकई में इन्होंने अपनी विचारधारा को त्याग दिया है। क्या सच में कम्युनिस्ट विचारधारा के लोग भगवान को मानने लगे हैं?
गौर करें तो ऐसा लगता है कि पहले पश्चिम बंगाल और फिर त्रिपुरा में सत्ता गंवाने बाद अब इस पार्टी को यह ध्यान आया है कि भारत के लोग धार्मिक ही हैं और धर्म उनके कोशिकाओं में है और इस स्थिति में ऐसी एथिस्ट पार्टी का कोई अस्तित्व नहीं रह जायेगा।
सदियों तक धर्म का विरोध करने के बाद अब कम्युनिस्टो यह समझ आ चुका है कि यदि जनता यानी मतदाताओं को अपने पक्ष में करना है तो धर्म की ओर मुड़ना ही होगा। वे जान गए हैं कि धर्म जनता की आस्था से जुड़ा होता है। इस विचारधारा के लोगों ने आरएसएस और भाजपा का उत्थान देखा है, और अब सभी पार्टियों को हिन्दू धर्म की तरफ मुड़ता देख हम कह सकते हैं कि उनके अंदर भी अब धर्म के प्रति श्रद्धा जाग रही रही है।