आर्य-द्रविड़ vs राष्ट्रवाद की राजनीति: क्या रजनीकांत तमिलनाडु के अगले CM बन सकते हैं?

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तमिलनाडु राज्य का सिनेमा एक्टर्स से लगाव एक और अहम पड़ाव की ओर मुड़ता दिखाई दे रहा है। सुपरस्टार रजनीकान्त ने अपने इरादों से ज़ाहिर कर दिया है की 2021 के तमिलनाडु विधानसभा चुनाव के लिए अपनी कमर कस चुके हैं। कुछ अफवाहों की मानें, तो कथित चुनाव विशेषज्ञ प्रशांत किशोर ने पहले रजनीकान्त से बात की। परंतु जब उन्होंने प्रशांत किशोर को ठेंगा दिखाया, तो वे डीएमके प्रमुख एमके स्टालिन के साथ हो लिए।

कहते हैं कि प्रशांत किशोर हमेशा जीतने वाले घोड़े पर दांव लगाते हैं। यदि इस बात में सच्चाई है, तो रजनीकान्त के तमिलनाडु के मुख्यमंत्री बनने पर किसी को हैरानी नहीं होनी चाहिए। बता दें की मोदी लहर पर चलते हुए भाजपा ने 2014 के चुनावों में 5.56 प्रतिशत का वोट शेयर प्राप्त किया था। परंतु 2019 के चुनावों में 3.66 प्रतिशत तक गिर गया था। ऐसे में ये बात तो स्पष्ट है कि भाजपा के राजकीय इकाई सुनियोजित और सुगठित नहीं है।

परंतु रजनीकान्त के साथ ऐसी कोई समस्या नहीं है। एक लोकप्रिय सुपरस्टार होने के नाते तमिलनाडु में उनकी छवि बहुत मजबूत है। उदाहरण के तौर पर 1990 के शुरुआती दौर में, जब जयललिता तमिलनाडु की सीएम थी, तब रजनीकान्त उनके काफिले के निकलने के कारण होने वाले ट्रैफिक जाम से काफी तंग आ चुके थे। उन्होंने विपक्षी पार्टी डीएमके का समर्थन करते हुए कहा, “भगवान भी तमिलनाडु की रक्षा नहीं कर सकता यदि जयललिता दोबारा सत्ता में आई तो!”

फिर क्या था, 1996 के चुनाव में जयललिता हार गयी। रजनीकान्त के मुख से निकला एक वाक्य मानों जयललिता का चुनावी भाग्य तय कर चुका था। दशकों बाद अब रजनीकान्त पहले से ज़्यादा सुदृढ़ और लोकप्रिय बन चुके हैं। उनका राजनीतिक कद पहले से ज़्यादा बढ़ चुका है। यदि 1996 में रजनीकान्त एक वाक्य से जयललिता की सरकार को गिरा दिए थे, तो वे निश्चित रूप से अपनी सरकार भी बना सकते हैं।

अब तक तमिलनाडु की राजनीति क्षेत्रवाद और द्रविड़–आर्य आधारित राजनीति पर केन्द्रित रहती थी। परंतु रजनीकान्त पहले ऐसे राजनेता हैं जिनकी विचारधारा इस संकुचित मानसिकता से काफी ऊपर है। हाल ही में नागरिकता संशोधन अधिनियम का समर्थन करते हुए कहा, “सरकार ने आश्वासन दिया है कि भारतीय लोगों को सीएए से कोई समस्या नहीं होगी। अपने स्वार्थ के लिए कुछ राजनीतिक पार्टियां लोगों को सीएए के विरुद्ध भड़का रही हैं”। इतना ही नहीं, उन्होंने एनपीआर को भी देश के लिए एक अहम प्रक्रिया की संज्ञा दी।

इसके अलावा उन्होंने 1971 में अलगाववादी पेरियार ईवी रामासामी द्वारा निकाली गई एक विवादस्पद रैली की भर्त्सना करते हुए बताया कि कैसे पेरियार ने भगवान राम और देवी सीता की मूर्तियों का अपमान करते हुए उनके छवियों की निर्वस्त्र रैली निकाली थी, जिसका चप्पलों की माला से स्वागत हुआ था। रजनीकान्त को पेरियार के चाटुकारों का विरोध झेलना पड़ा, परंतु वे अपने बयान से टस से मस नहीं हुए और अपने बयान के समर्थन में उन्होंने उस जमाने के कुछ अखबारों के क्लिपिंग्स भी पेश किए।

इसके अलावा अपने राष्ट्रवादी छवि को और मजबूत बनाते हुए उन्होंने अनुच्छेद-370 के निरस्त होने के निर्णय का जोरदार स्वागत किया। रजनीकान्त कहते हैं, “आपके मिशन कश्मीर के लिए बहुत बहुत शुभकामनाएँ। आपने [अमित शाह] ने जो भाषण दिया, वो ज़बरदस्त था”। इतना ही नहीं, उन्होंने सबरीमाला मंदिर पर उत्पन्न विवाद में भगवान अय्यप्पा के भक्तों की मांगों का समर्थन करते हुए द्रविड़ समर्थक पार्टियों को खुली चुनौती दे दी। कभी करुणानिधि, सीएन अन्नादुरई जैसे द्रविड़ समर्थक लोगों से भरे रहने वाले तमिलनाडु के राजनीतिक खेमे में अब रजनीकान्त जैसा विकल्प उभरकर सामने आया है। 2017 में ही उन्होंने घोषणा कर दी थी कि वे 2021 के विधानसभा चुनावों में हिस्सा लेंगे।

तमिलनाडु में रजनीकान्त की लोकप्रियता सभी कीर्तिमानों को तोड़ चुकी है। तमिलनाडु के आम प्रचलन से हटकर जिस तरह से उन्होंने अपनी धाक जमाई है, उससे साफ है कि थलाइवा तमिलनाडु में अपना राजनीतिक वर्चस्व स्थापित करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। राज्य में राष्ट्रवादी विचारधारा का जो अकाल पड़ा था, उसमें रजनीकान्त के वर्तमान विचारधारा ने एक नई जान फूंक दी है।

अपनी लोकप्रियता के दम पर रजनीकान्त बड़े से बड़े विशेषज्ञ को भी धूल चटा सकते हैं, यदि उन्होंने राजनीति में सक्रिय रूप से हिस्सा लेने का निर्णय किया तो हम आशा करते हैं कि रजनीकान्त तमिलनाडु की राजनीति में और अधिक सक्रिय हों, और भारत से तोड़ने वाली ताकतों को वे ऐसे ही मुंहतोड़ जवाब देते रहें।

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