बिना डिग्री के चीफ इंजीनियर बनने वाला यादव सिंह को अखिलेश ने मदद की थी, अब CBI की गिरफ्त में

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बसपा और सपा के कार्यकाल के विवादित इंजीनियर यादव सिंह को आखिरकार सीबीआई ने गिरफ्तार कर लिया है। यादव सिंह पर गलत तरीके से टेंडर देने का आरोप सीबीआई ने लगाया था। मालूम हो कि साल 2018 में यादव सिंह को सीबीआई ने गिरफ्तार किया था। सीबीआई के अनुसार यादव सिंह ने सभी नियमों को ताक पर रखकर अपनी चहेती कंपनियों को टेंडर दिया था। सीबीआई ने उन पर यह भी आरोप लगाया कि उन्होंने अपने परिवार के लोगों और रिश्तेदारों को लाभ पहुंचाया था।

बता दें कि यादव सिंह साल 2007 से लेकर 2012 तक नोएडा विकास प्राधिकरण के चीफ इंजीनियर थे उस दौरान उन्होंने 38 करोड़ रूपए के 31 टेंडर अवैध रूप से पास कराए। सीबीआई ने अपनी जांच में पाया कि गुल इंजीनियरिंग के मालिक जावेद अहमद उनके पुराने दोस्त थे और उनकी कंपनी को यादव सिंह ने उनके शर्तों के आधार पर टेंडर दिया था। सीबीआई ने यह भी आरोप लगाया है कि यादव सिंह को जावेद अहमद ने टेंडर पास कराने की रिश्वत में एक इनोवा गिफ्ट किए थे।

यादव सिंह के काले कारनामों की फाइल यहीं तक नहीं है। उन्होंने अपने कार्यकाल में एक से बढ़कर एक घोटाले किए। एसएमपी कंपनी के मालिक प्रेम प्रदीप को यादव ने पांच टेंडर दिया था। ये पांचों टेंडर करीब 2 करोड़ के थे। इस टेंडर के तहत नोएडा में पानी के बिलों के कंप्यूटराइजेश का काम सौंपा गया था। यादव सिंह पर यह भी आरोप लगा कि प्रेम प्रदीप का लड़का और यादव सिंह बैचमेट थे।

इसी तरह संजय इलेक्ट्रिकल्स को भी यादव सिंह ने टेंडर दिया था। कुल 37 टेंडर 2007 से 2012 के बीच में पास हुए थे। यह करीब 76 करोड़ रूपए का था। सीबीआई ने यह आरोप लगाया कि इस ठेके से यादव सिंह ने अकूत संपत्ति अर्जित की जिससे नोएडा प्राधिकरण को बहुत नुकसान उठाना पड़ा।

ठीक इसी तरह अबू इन्फ्रा को भी यादव सिंह ने साल 2011 से 2014 के बीच कुल 16 ठेके दिए। इस टेंडर में भी काफी सवाल उठे थे। सीबीआई ने आरोप लगाया कि कंपनी, यादव सिंह की पत्नी और सनी यादव के बीच कुछ विवादित लेन-देन हुए थे।

डिग्री पर भी उठे थे सवाल

यादव सिंह के पास इंजीनियरिंग की कोई डिग्री नहीं है, उन्होंने सिर्फ इलेक्ट्रिकल से पॉलिटेक्निक डिप्लोमा की है यानि जिस पद पर वे हैं वहां भी वो फर्जी तरीके से गए थे। कुल मिलाकर बसपा की सरकार में उनकी अच्छी पकड़ थी जिसका फायदा उन्होंने आगे बढ़ने के लिए किया। बता दें कि यादव सिंह का नाम उत्तर प्रदेश के कई दिग्गज नेताओं के साथ जोड़ा जाता रहा है और यह भी आरोप लगता रहा है कि यादव सिंह रिश्वत की रकम को नेताओं तक पहुंचाता था। यादव सिंह बसपा और सपा दोनों का करीबी रहा है।

अखिलेश यादव ने लाखों खर्च कर यादव सिंह को CBI जांच से बचाया था

आरटीआई के एक खुलासे में पता चला कि अखिलेश यादव की सरकार ने घूस के आरोपी यादव सिंह को बचाने के लिए लाखों रूपए खर्च किए थे। आरटीआई में पता चला कि अखिलेश ने लाखों रूपयों में वकील किए थे जिससे कि यादव सिंह को सीबीआई से बचाया जा सके।

आरटीआई कार्यकर्ता नूतन ठाकुर ने जब आरटीआई के तहत जानकारी मांगी तो पता चला कि अखिलेश यादव की सरकार के साथ जुड़े चार वकीलों पर लाखों रूपए खर्च किए गए थे। उन वकीलों में कांग्रेस नेता व वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल जिन्हें 8 लाख, हरीश साल्वे को 5 लाख, राकेश द्विवेदी को 4.05 लाख और दिनेश द्विवेदी को 3.30 लाख की राशि दी गई थी। यानि यादव सिंह को बचाने में अखिलेश यादव ने कुल 21.25 लाख रूपए खर्च किए थे।

कौन है यादव सिंह?

यादव सिंह कोई बड़ा इंजीनियर नहीं था उसने मात्र इंजीनियरिंग में डिप्लोमा की थी। 80 के दशक में नोएडा को दिल्ली की तर्ज पर बसाया जा रहा था तब नोएडा अथॉरिटी में बेरोजगारों को नौकरी मिली। इस दौर यादव सिंह को नौकरी मिली। यादव सिंह बहुत तेज शख्स था। नेताओं व अधिकारियों से जल्द ही घुल मिल जाता था। साल 1995 में यादव सिंह दो प्रमोशन पाकर जूनियर इंजीनियर से असिस्टेंस इंजीनियर बन गया। नेताओं की चापलूसी करके जल्दी ही वह प्रोजेक्ट इंजीनियर के पद पर बैठ गया। यूपी में चाहे बसपा हो या सपा यादव सिंह को खुली छूट मिली थी। वह जिसको चाहता था उसे टेंडर देता था।

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