दो साल से अमेरिका-चीन के बीच व्यापार युद्ध जारी था, अब चीन सफ़ेद झण्डा लेकर निकल पड़ा है

ट्रेड वॉर

PC: AajTak

पिछले दो सालों से अमेरिका के साथ ट्रेड वॉर से जूझ रहे चीन ने आखिरकार दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के सामने सरेंडर कर दिया है। अब चीन ने अमेरिका से आयात होने वाले 1700 से अधिक उत्पादों पर आयात कर को कम करके आधा कर दिया है, जो पहले ट्रेड वॉर के चलते चीन ने बढ़ा दिया था। इसी साल जनवरी में अमेरिका और चीन के बीच पहले चरण की व्यापार संधि पर हस्ताक्षर हुए थे, जिसके बाद अब चीन ने यह कदम उठाया है। इस ट्रेड डील में यह तय किया गया था कि चीन अगले दो सालों में 200 अरब डॉलर से अधिक अमेरिकी सामान का आयात करेगा। इसमें 50 अरब डॉलर का ऐग्री प्रॉडक्ट, 75 अरब डॉलर का मैन्युफैक्चरिंग प्रॉडक्ट और 50 अरब डॉलर का एनर्जी सेक्टर से होगा।

चीन द्वारा अमेरिकी सामानों के आयात पर लगने वाले टैक्स में कमी आना ट्रम्प सरकार के लिए बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है। दो साल पहले ट्रम्प ने चीन की व्यापार नीतियों को नाजायज ठहराते हुए चीन के साथ ट्रेड वॉर शुरू की थी। तब अमेरिका ने कहा था कि उसे अमेरिकी कंपनियों के हितों को भी प्राथमिकता देनी होगी। अब जब ट्रम्प सरकार और शी जिनपिंग के नेतृत्व में कम्युनिस्ट पार्टी एक डील साइन करने पर राज़ी हुई है, तो इसमें बेशक अमेरिकी मांगों को भी तरजीह दी गयी होगी।

अमेरिका के साथ किसी भी ट्रेड डील पर हस्ताक्षर करने के लिए चीन पर लगातार दबाव बन रहा था, क्योंकि ट्रेड वॉर के बाद चीन में बने व्यापार-विरोधी माहौल की वजह से लगातार कई कंपनियां चीन से बाहर शिफ्ट हो रही थीं। चीनी कंपनियां भारत और वियतनाम जैसे देशों में जाने पर मजबूर हो रही थी। पिछले वर्ष दिसंबर में ही खबर आई थी कि कंपनियों के बंद होने की वजह से चीन के कई शहर भूतिया शहरों में तब्दील होते जा रहे हैं। बता दें कि उत्तरी चीन के पर्ल नदी किनारे बसा हुइजू शहर सैमसंग के तीन दशक पुराने कारखाने के अक्तूबर में बंद होने के बाद भूतिया शहर में तब्दील हो चुका है। कारखाने को भारत और वियतनाम में स्थानांतरित कर दिया गया था। पिछले साल सैमसंग ने नोएडा में अपनी दुनिया की सबसे बड़ी मोबाइल फैक्ट्री का उद्घाटन भी किया था।

इन सब चीजों का असर यह हुआ कि चीन की आर्थिक विकास दर को जोरदार झटके मिलना शुरू हो गए। पिछले वर्ष ट्रेड वार की वजह से चीन का औद्योगिक उत्पादन 17 साल के सबसे निचले स्तर पर आ गया था। आंकड़ों के अनुसार चीन के औद्योगिक उत्पादन की वृद्धि दर फरवरी 2002 के बाद सबसे निचले स्‍तर पर आ गई थी। चीन में विदेशी निवेश को भी भारी झटका लगा था।

अर्थव्यवस्था में लगातार आ रही कमी के चलते ही चीन अमेरिका के साथ बातचीत की टेबल पर आने के लिए तैयार हुआ आखिरकार लंबी बातचीत के बाद इसी वर्ष जनवरी में यह डील साइन कर ली गयी। इससे सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि चीन और दुनियाभर में व्यापारिक दृष्टि से बढ़ रहा अनिश्चितता का माहौल खत्म हो सकेगा। इससे एक और बात स्पष्ट हो गयी है कि आर्थिक दृष्टिकोण से बेशक दुनिया के लोग चीन को अमेरिका का प्रतिद्वंधी मानने लगे हों, लेकिन दुनिया की एकमात्र आर्थिक महाशक्ति अभी भी अमेरिका ही है।

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