वो कहते हैं न, देर आए दुरुस्त आए। भले ही भाजपा झारखंड हार गयी हो, परंतु उसने आगे के लिए अपना मार्ग प्रशस्त कर लिया है क्योंकि झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी की भाजपा में वापसी हो गयी है।
बाबूलाल मरांडी अपने पार्टी झारखंड विकास मोर्चा [प्रजातांत्रिक] का विलय भाजपा में करने के लिए तैयार हैं। पार्टी से संबंध तोड़ने के 14 वर्ष बाद बाबूलाल की एक बार फिर ‘घर वापसी’ हुई है। बाबूलाल ने इस निर्णय की पुष्टि करते हुए कहा, ‘‘औपचारिक विलय समारोह 17 फरवरी को भाजपा के पूर्व अध्यक्ष एवं केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा और भाजपा उपाध्यक्ष ओम प्रकाश माथुर की उपस्थिति में जगन्नाथपुर मैदान में होगा । इस मैदान को प्रभात तारा मैदान नाम से भी जाना जाता है।’’ इतना ही नहीं, इस निर्णय का विरोध करने वाले दो विधायकों को बाबूलाल मरांडी ने निलंबित भी कर दिया है।
ऐसे तो इस निर्णय का कोई खास असर अभी पड़ता हुआ नहीं दिख रहा है, परंतु माओवाद से जूझ रहे इस राज्य में यह निर्णय आगे चलकर काफी अहम सिद्ध होने वाला है। झारखंड में विधानसभा चुनाव के परिणाम आने के दो महीने बाद भी भाजपा ने अभी तक अपना विधानसभा का नेता नहीं चुना है। ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि भाजपा बाबूलाल मरांडी के ‘घर वापसी’ की प्रतीक्षा कर रही थी।
झारखंड के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने एक गैर आदिवासी मुख्यमंत्री के तौर पर रघुबर दास को अपना उम्मीदवार चुना था। इसके कारण झारखंड में भाजपा को काफी नुकसान हुआ था और पार्टी 28 आदिवासी बहुल सीटों में से केवल दो सीटें ही जीत पायी थी। ऐसे में बाबूलाल मरांडी की वापसी भाजपा के लिए किसी वरदान से कम नहीं हिय। बाबूलाल मरांडी भाजपा की ओर से झारखंड राज्य के गठन पर प्रथम मुख्यमंत्री बने थे, और वे आदिवासी समुदाय से संबंध रखने वाले पहले मुख्यमंत्री भी थे। यदि आदिवासियों का विश्वास दोबारा जीतना है, तो बाबूलाल मरांडी जैसे नेता भाजपा के लिए अति आवश्यक है।
बता दें कि बाबूलाल मरांडी शुरू से ही राष्ट्रवादी विचारधारा के प्रति आसक्त थे। 1990 के दशक में आरएसएस प्रचारक के तौर पर उन्होंने बहुत नाम कमाया। इतना ही नहीं, 1998 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने सभी को चौंकाते हुए झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक और कद्दावर नेता शिबू सोरेन को डुमका सीट पर हराया। परंतु आपसी मतभेद के कारण बाबूलाल ने 2006 में भाजपा छोड़कर झारखंड विकास मोर्चा का गठन किया। 2014 के चुनावों से ही भाजपा उन्हें वापिस लाने के लिए प्रयासरत है, क्योंकि आदिवासी क्षेत्रों में आज भी बाबूलाल मरांडी जैसे नेताओं की लोकप्रियता यथावत है।
हालांकि, बाबूलाल की पार्टी ने इस चुनाव में सिर्फ 3 सीटें जीती थी, पर उन्होंने भाजपा के वोट प्रतिशत को काफी नुकसान पहुंचाया था। इसी प्रकार से आदिवासियों के हितों में लड़ने वाले ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन यानि एजेएसयू, जो कभी भाजपा की सहयोगी दल रही थी, इस चुनाव में 8.1 प्रतिशत मत के साथ 2 सीट जीतने में सफल रही थी। सूत्रों की माने तो बाबूलाल मरांडी के इस निर्णय से एजेएसयू में भी हलचल मची है और वो भी आने वाले दिनों में भाजपा के साथ जुड़ सकती है। यदि ऐसा हुआ, तो भाजपा एक बार फिर आदिवासी क्षेत्र में अपनी पकड़ बनाने में सफल होगी। अब जब बाबूलाल मरांडी ने घर वापसी दर्ज की है, और एजेएसयू भी वापिस आने के संकेत दे रही है, तो भाजपा को अब अपने क्षेत्रीय नेतृत्व का पुनरुत्थान करने में कोई कसर नहीं छोड़नी चाहिए।