मणि शंकर अय्यर और NDTV की तरह न बर्ताव करें- RW पत्रकारों को जनादेश का सम्मान करना चाहिए

दिल्ली चुनाव, सुधीर चौधरी, जी न्यूज,

दिल्ली विधानसभा चुनाव के परिणाम आ गए हैं। केजरीवाल की सुनामी में भाजपा और कांग्रेस पूरी तरह ध्वस्त हो गई है। इस दौरान दोनों तरफ के समर्थकों में भावनाओं का ज्वार उमड़ पड़ा है। एक तरफ आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं में खुशी की लहर है, तो वहीं भाजपा के समर्थकों में गम का सैलाब उमड़ पड़ा है। लेकिन यह बेतुके गुस्से में बदल जाए तो बहुत अतार्किक लगने लगता है।

किसी भी जीवंत लोकतंत्र में कोई भी चुनाव समान नहीं हो सकते हैं। कभी हम जीतते हैं तो कभी हमारे विरोधी हमें हराते हैं। किसी भी स्वस्थ लोकतंत्र में, नियमित अंतराल के बाद सत्ता में परिवर्तन जागरूक, बुद्धिमान और निर्णायक मतदाताओं का संकेत माना जाता है। चुनाव परिणाम जो भी आए हों इसे सभी को स्वीकार करना चाहिए, यही लोकतंत्र होता है।

हालांकि चुनाव परिणाम आने के बाद दक्षिणपंथी मीडियाकर्मियों में हार की जो हताशा थी वह कहीं न कहीं जनादेश के अपमान करने जैसा लगने लगा। हम बात कर रहे हैं जी न्यूज के एडिटर इन चीफ सुधीर चौधरी की, जो इस चुनाव परिणाम को सहन नहीं कर सके और दिल्ली के मतदाताओं का मजाक उड़ाने लगे। चौधरी ने नतीजों के बाद एक ट्वीट किया, जिसमें उन्होंने एक बार फिर दिल्ली की जनता को मुफ्तखोर बताया है।

इससे पहले जब सभी मीडिया संस्थानों के एग्जिट पोल सामने आए थे तो उन्होंने अपने प्राइम टाइम शो में भी कुछ ऐसी बातें कहीं थीं, जो दिल्ली के लोगों को पसंद नहीं आईं। सुधीर चौधरी ने अपने शो में दिल्ली की जनता को कहा था कि-

जहां सेल लगी होती है वो वहां भाग जाते हैं। यानी लोगों ने फ्री में मिलने वाली चीजों के लालच में आकर आम आदमी पार्टी को वोट दिया है।

सुधीर चौधरी यहीं नहीं रूके उन्होंने आगे कहा कि-

दिल्ली की जनता को सिर्फ मुफ्त की चीजों से मतलब है और उन्हें देश और राष्ट्रवाद से कोई मतलब नहीं है। अनुच्छेद-370, राम मंदिर, कश्मीर इस तरह की बातें दिल्लीवासियों के लिए कोई मायने नहीं रखती। दिल्ली की जनता को न तो बालाकोट स्ट्राइक से कोई लेना-देना है, न राम मंदिर से कोई मतलब है और न अनुच्छेद 370 से कोई लेना-देना है। न उसे देश के टूट जाने से कोई लेना-देना है।”

चौधरी ने आगे कहा-

“दिल्ली वाले सिर्फ अपने में मस्त रहना चाहते हैं। वो ये चाहते हैं देश टूटे-फूटे या ना टूटे, कुछ भी होता रहे, मेरा जीवन आराम से चलता रहे। दिल्ली की जनता अपने जीवन के संघर्ष में व्यस्त है। उसे देश से कोई मतलब नहीं।”

यहां तक कि दिल्ली की जनता को आलसी बताते हुए कहा कि-

दिल्ली की जनता सिर्फ फोन पर चिपकी रहती है और वो सिर्फ सोशल मीडिया पर एक्सपर्ट हैं। उन्होंने यह भी कहा कि दिल्ली की जनता ऐसी है कि अगर पाकिस्तान के इमरान खान की पीटीआई भी मुफ्तखोरी को आधार बनाकर चुनाव लड़े तो जीत सकती है।

अब ऐसे बयानों से साफ पता चलता है कि सुधीर चौधरी इस चुनाव परिणाम से बिल्कुल भावुक हो गए हैं। कुछ बातें जो चौधरी ने कही हैं वो कुछ हद तक सत्य है लेकिन भावों में बहकर कोई पत्रकार जिसे लाखों की जनता देखती है उसका ऐसा बयान देना व ट्वीट करना कहीं न कहीं बेतुका लगता है।

मालूम हो कि मतदाताओं को दोष देना और उनके जनादेश पर सवाल उठाना वामपंथियों की फ़ितरत रही है। लिबरल्स उन मतदाताओं पर कीचड़ उछालने में माहिर होते हैं जिन्होंने भाजपा को कोई भी चुनाव जिताया है।

सत्ता में जब से मोदी सरकार आई है तब से ही लिबरलों का कहना है कि भारत में असहिष्णुता बढ़ गई है, देश में डर लगने लगा है, सभी भक्त हो गए हैं, देश का भगवाकरण हो रहा है। इतने से बात नहीं बनी तो ईवीएम राग अलापने लगते हैं।

कुल मिलाकर सुधीर चौधरी भावनाओं में बहकर कहीं न कहीं वामपंथियों की तरह बातें करने लगे हैं जो उन्हें शोभा नहीं देती।  जब खुद भाजपा ने इस हार को स्वीकार लिया हो तो उन्हें ऐसी बातें नहीं करनी चाहिए जिससे जनादेश का अपमान हो।

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