भारत कहने को ही बस सेक्युलर या धर्मनिरपेक्ष देश है। ऐसा इसलिए कहा जा सकता है क्योंकि ज्यादातर नेता हिंदुओं को छोड़ सभी बाकी धर्मों का तुष्टीकरण करने से जरा भी नहीं घबराते। यह कहना गलत नहीं होगा कि BJP को छोड़ देश की सभी राजनीतिक पार्टियां मुस्लिम वोट बैंक के लिए कुछ भी करने को तैयार रहती हैं। कभी उलेमाओं की सैलरी (पेंशन) बढ़ाना, तो कभी उन्हें किसी प्रमुख पद पर नियुक्त करना, राज्यों की सत्ता पर काबिज लगभग सभी पार्टियां यही कर रहीं हैं। एक तरफ प्रधानमंत्री देश के किसानों की आय दोगुनी करने की बात कर रहें हैं तो वहीं गैर भाजपा शासित कई राज्यों के मुख्यमंत्री करदाताओं के रुपयों को इमामों की सैलरी दोगुनी करने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं।
हाल ही में तमिलानाडु की विधानसभा में आयोजित बजट सत्र के दौरान मुख्यमंत्री पलानीस्वामी ने उलेमाओं के लिए कई अहम घोषणाएं कीं। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के. पलानीस्वामी ने बुधवार को नए दोपहिया वाहनों को खरीदने के लिए ‘उलेमाओं’ के लिए 50 प्रतिशत सब्सिडी की घोषणा की। इसके साथ ही प्रदेश सरकार ने उनकी पेंशन की राशि 1500 रुपए से बढ़ाकर 3000 रुपए करने का ऐलान किया है।
बता दें कि तमिलनाडु में 2,814 वक्फ बोर्ड हैं और ऐसे पंजीकृत संस्थानों में काम करने वाले उलेमाओं को 25,000 रुपये या वाहन लागत का 50 प्रतिशत अनुदान दिया जाएगा।
तमिलनाडु ऐसा करने वाला पहला राज्य नहीं है। इससे पहले TMC के नेतृत्व में पश्चिम बंगाल की सरकार ने भी इसी तरह का फैसला लिया था। मुख्यमंत्री और टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी ने 2012 में मस्जिदों के इमामों को हर महीने 2,500 रुपये और मुअज़्ज़िनों को हर महीने 1,500 रुपये का मासिक भत्ता देने की घोषणा की थी। फिर 2017 में ममता सरकार ने दुर्गा प्रतिमाओं के विसर्जन के लिए पारंपरिक रूप से दिए जाने वाले समय को कम कर दिया था, क्योंकि उसी दिन मुहर्रम के मातमी जुलूस भी निकलने थे।
ठीक इसी तरह दिल्ली में भी दिल्ली वक्फ बोर्ड ने मौलनाओं की सैलरी बढ़ाई थी। उस दौरान बोर्ड के अध्यक्ष आम आदमी पार्टी के अमानतुल्लाह खान ही थे। उन्होंने सीएम अरविंद केजरीवाल की मौजूदगी में इसका ऐलान किया था कि मौलाना की सैलरी दस हजार से बढ़ाकर 18 हजार और मुअज्जिन की सैलरी 9 हजार से बढ़ाकर 16 हजार कर दी गई है। दिल्ली 300 ऐसी मस्जिद हैं, जहां वक्फ बोर्ड की तरफ से इमामों को सैलरी दी जाती है।
वहीं इसी तरह आंध्र प्रदेश में जगन रेड्डी ने मुस्लिम और ईसाई दोनों का तुष्टीकरण किया है। उनके वित्त मंत्री ने बजट भाषण में कहा था, “इमामों का वेतन प्रति माह 10,000 रुपये तक बढ़ाया जाना प्रस्तावित है। वहीं मुअज्जिन का यह 5,000 प्रति माह तक बढ़ना प्रस्तावित था। इसी तरह पादरी के लिए यह 5,000 प्रति माह था।
इन राज्यों के उदाहरण से यह साबित होता है कि कैसे करदाताओं के मेहनत की कमाई को धर्मनिरपेक्षता के नाम पर राज्य की राजनीतिक पार्टियां अपना उल्लू सीधा करती हैं। धर्म निरपेक्षता की आड़ में ये राजनीतिक पार्टियां BJP पर रोज ही ज्ञान देते हुए नजर आ जाएंगी। परंतु स्वयं को कभी नहीं देखेंगी। एक तरफ प्रधानमंत्री किसानों की आमदनी को दोगुनी करने की बात कर रहें है और उसके लिए नए-नए स्कीम ला रहे हैं लेकिन ये राजनीतिक दलों अपने वोट बैंक से आगे बढ़ ही नहीं पाये हैं और इमामो की सैलेरी बढ़ाने में लगे हैं।