भारत में नौकरशाही या ब्यूरोक्रेसी को देश का स्टील फ्रेम माना जाता है। सरदार पटेल ने भी यही कहा था। इसी कारण से अगर कोई संस्था सबसे मजबूत है और भारत के सभी पॉलिसी पर अपनी पकड़ बना कर रखती है तो वो यही नौकरशाही ही है। कोई भी क्षेत्र हो, चाहे वो वित्त हो या रक्षा हो ऊर्जा हो या स्वास्थ्य हो सभी क्षेत्र में IAS की लॉबी इतनी मजबूत होती है कि कभी कभी नेताओं को भी पता नहीं चलता है और फ़ाइल पास हो जाती है। इसी का नमूना रक्षा मंत्रालय में देखने को मिला जब राजनाथ सिंह के नाक के नीचे से फाइल पास हो गयी और उन्हें पता भी नहीं चला। यह मामला सैनिकों को मिलने वाली टैक्स छूट से जुड़ा हुआ था।
बता दें कि सरकार ने ड्यूटी निभाते हुए अपंग हुए सैन्यकर्मियों को मिलने वाली पेंशन पर कर यानि टैक्स लगाने का कदम उठाया था। सरकार के इस फैसले से कई सैन्यकर्मियों ने निराशा जताई थी और अपना विरोध दर्ज कराने के लिए ट्विटर का सहारा लिया था।
अब बताते हैं कि आखिर यह फैसला कैसे लिया गया और इसमें IAS अफसरों की लॉबी ने कैसे अपने प्रभाव का इस्तेमाल किया। इकोनॉमिक्स टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार जब सैनिकों को मिलने वाली पेंशन में टैक्स छूट का फैसला लिया गया था तब वित्त मंत्री और रक्षा मंत्री दोनों को अंधेरे में रखा गया था। इस रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है कि ब्यूरोक्रेसी ने इस छूट को समाप्त करने के में कुछ अधिक ही जल्दीबाजी दिखाई थी।
लाखों भूतपूर्व सैनिकों को प्रभावित करने वाला यह फैसला रक्षा मंत्रालय के वित्त विभाग के बाबुओं द्वारा शुरू किया गया था जो उनके आधिकार क्षेत्र में आता ही नहीं था। इस विभाग के अधिकारियों ने इस मामले को वित्त मंत्रालय को तलब किया जिसके बाद सैनिकों को मिलने वाला टैक्स छूट समाप्त करने का फैसला लिया गया।
इस रिपोर्ट के अनुसार इम मामले में जब निर्णय लिया गया था तब न ही वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को कुछ बताया गया और न ही रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को। आश्चर्यजनक रूप से यह सभी फैसले एक ही दिन में ले लिए गए थे। यह सोचने वाली बात है कि जिस नौकर शाही में एक फाइल एक टेबल से दूसरे टेबल जाने में वर्षों का समय लग जाता है इस मामले में सभी निर्णय एक दिन में ही ले लिये गथा। फाइल नोटिंग्स से यह खुलासा हुआ है कि पिछले वर्ष 24 जून को एक साथ वित्त मंत्रालय और Central Board of Direct Taxes (CBDT) के सभी अधिकारियों द्वारा अप्रूवल करा लिया गया। बता दें कि दोनों ही मंत्रालय के मंत्री यानि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को मंत्रालय संभाले अभी कुछ ही सप्ताह हुये थे।
इस मामले को वर्ष 2015 में शुरू किया गया था लेकिन CBDT से 4 वर्षों तक कोई रिस्पॉन्स नहीं आया और फिर चार वर्ष बाद यह मामला फिर से उठा और आंतरिक दस्तावेजों और नोटिंग्स से यह पता चलता है कि एक ही दिन में इस टैक्स छूट के मामले की फाइल 11 अफसरों से सामने से एक ही दिन में पास हो गयी। दोनों ही मंत्रियों के अलावा इस मामले में department of ex-servicemen welfare (DESW) को भी नहीं बताया गया था।
यह हैरान कर देने वाली बात है कि टेबल पर बैठे नौकरशाह इस तरह के फैसले बिना किसी मंत्री या नेता को बताए ले लेते हैं जिससे लाखो भूतपूर्व सैनिक प्रभावित होने वाले हैं। भारत एक लोकतान्त्रिक देश है और जनता अपने प्रतिनिधि को चुनकर संसद भेजती है ताकि वे फैसले ले सके लेकिन बाबुओं की इतनी ताकतवर लॉबी हो चुकी है कि वे बिना किसी नेता को बताए ही फैसले ले रहे हैं।
इस तरह के शासन व्यवस्था को बदलने कि सख्त आवश्यकता है क्योंकि यह प्रक्रिया न तो लोकतांत्रिक है न ही देश के हित में है। पीएम मोदी ने जब से सत्ता संभाला है तब से वह नौकरशाही में परिवर्तन करने का प्रयास कर रहें है और इसके लिए लेटरल एंट्री जैसी बदलाव लाया है। अभी और भी बड़े स्तर पर बदलाव करने की आवश्यकता है, नहीं तो ये नौकरशाह अपनी लॉबी का इस्तेमाल कर बेलगाम हो जाएंगे।