चीन के BRI प्रोजेक्ट की पूंगी बजने वाली है क्योंकि भारत-US मिलकर लॉन्च करने वाले हैं प्रोजेक्ट Blue Dot

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अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के आने से भारत और अमेरिका के बीच रक्षा क्षेत्र से लेकर कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर समझौते हुए। इन समझौतों के बीच एक ऐसे मुद्दे पर भी बातचीत हुई जिससे भारत और अमेरिका मिलकर चीन की नाक में दम करेंगे। यह साझेदारी है ब्लू डॉट नेटवर्क (Blue Dot Network) की।

ट्रम्प ने प्रेस कोंफ्रेंस के दौरान कहा कि कि ऑस्ट्रेलिया जापान के साथ मिलकर ब्लू डॉट नेटवर्क को विस्तार देने को लेकर भी दोनों देशों के बीच बात हुई है। भारत ने भी इस नेटवर्क पर अपनी रूचि दिखाई है। बता दें कि BDN की औपचारिक घोषणा 4 नवंबर, 2019 को थाईलैंड के बैंकॉक में इंडो-पैसिफिक बिज़नेस फोरम (Indo-Pacific Business Forum) में की गई थी। इसमें अमेरिका के साथ जापान और ऑस्ट्रेलिया भी हैं और अब भारत भी जुड़ गया है।

यह इंडो-पैसिफिक क्षेत्र पर ध्यान देने के साथ-साथ यह विश्व स्तर पर सड़क, बंदरगाह एवं पुलों के लिये मान्यता प्राप्त मूल्यांकन और प्रमाणन प्रणाली के रूप में काम करेगा। यह एक तरह की प्रोजेक्ट रेटिंग एजेंसी होगी। इन देशों के एक्सपर्ट किसी भी संभावित प्रोजेक्ट को वैश्विक मापदंडों पर जांच कर उसे रेटिंग देंगे जिससे उस प्रोजेक्ट को वित्तिय सहायता मिलने में आसानी होगी।

उदाहरण के तौर पर अगर किसी देश को बंदरगाह बनवाना है और क़र्ज़ की ज़रूरत है तो वो देश इन Blue Dot नेटवर्क के जरीए अप्लाई कर सकता है। इनके विशेषज्ञ उस प्रोजेक्ट के बारे में आर्थिक मूल्यांकन तथा अन्य विषयों पर अच्छे से अध्ययन कर रिपोर्ट तैयार करेंगे जिससे उन्हें IMF, वर्ल्ड बैंक और अन्य वित्तिय संस्थानों से आर्थिक सहायता मिलनी आसान होगी।

यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि चीन अपनी आक्रामक नीति पर चलते हुए BRI यानि Belt and Road Initiative का विस्तार करते जा रहा है। अब भारत अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर ब्लू डॉट नेटवर्क के जरिए चीन के BRI प्रोजेक्ट को चुनौती देने जा रहा है।

चीन अपने BRI प्रोजेक्ट के तहत अमेरिकी ताकत को कम कर पूरी दुनिया में अपनी शक्तियों का विस्तार करते हुए एक ग्लोबल लीडर के रूप में बनने की सपना देख रहा है। चीन अपने BRI प्रोजेक्ट के तहत उन्हीं देशों में निवेश कर रहा है, जिन देशों की अर्थव्यवस्था और बुनियादी ढांचे की स्थिति कमजोर है। उदाहरण के लिए पाकिस्तान और श्रीलंका।

चीन बंदरगाहों और विकास के लिए कम बुनियादी ढांचे के साथ देश को ऋण प्रदान करता है। एक बार जब बंदरगाह बन जाता है तब तक उन देशों के ऊपर चीन का इतना भारी कर्ज हो जाता है कि उसे चीन को कर्ज चुकाने के लिए बंदरगाह को ही चीन को पट्टे (Lease) पर दे देना पड़ता है। उदाहरण के लिए- श्रीलंका का हंबनटोटा बंदरगाह। वहीं, चीन ने ईरान, म्यांमार और कमजोर अर्थव्यवस्था वाले अन्य कई देशों में प्रोजेक्ट शुरू किए हैं। कहीं न कहीं चीन का BRI प्रोजेक्ट ऋण-जाल कूटनीति (Debt-Trap Diplomacy) है। BRI के तहत पहला रूट जिसे चीन से शुरू कर रूस और ईरान होते हुए इराक तक ले जाने की योजना है, जबकि इस योजना के तहत दूसरा रूट पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से श्रीलंका और इंडोनेशिया होकर इराक तक ले जाया जाना है।

जबकि ब्लू डॉट नेटवर्क गरीब देश की परियोजनाओं की व्यवहार्यता को एक रेटिंग देगा, जिसमें उन्हें परियोजना के लाभों के बारे में समझाया जाएगा और ये सभी सार्वजनिक क्षेत्र में होंगे।

यह पूरे क्षेत्र के गरीब देशों में वित्त और अधिक पारदर्शिता प्रदान करेगा। यह बुनियादी ढांचे में “सिद्धांत” आधारित और “टिकाऊ” निवेश सुनिश्चित करने के बारे में है। यह भारत-प्रशांत क्षेत्र में गुणवत्ता के बुनियादी ढांचे को बढ़ावा देने और निवेश को सुविधाजनक बनाने में मदद करेगा। विश्लेषक यह भी कहते हैं कि ब्लू डॉट नेटवर्क क्षेत्रीय शक्ति को नियंत्रित करने की संभावना रखता है, क्योंकि यह इस क्षेत्र में चीन की बढ़ती शक्ति की भरपाई के लिए राज्यों के बीच एक साझा भारत-प्रशांत रणनीति को दर्शाता है। ब्लू डॉट परियोजना विदेशी कंपनियों को मौका देगी, जो अक्सर भ्रष्टाचार या जलवायु परिवर्तन जैसी चिंताओं की वजह से विकासशील देशों में निवेश करने के लिए अनिच्छुक होते हैं।

इधर, अमेरिकी अधिकारियों ने भी कहा है कि चीन की चुनौतियों का मुक़ाबला करने के लिए वह भारत को सक्षम बनाना चाहता है। इसके लिए अति उच्च तकनीक वाली अमेरिकी शस्त्र प्रणालियाँ और दूसरे शस्त्र की सप्लाई तो भारत को करना चाहता ही है, इसके साथ ही एशिया-पैसिफ़िक क्षेत्र में भारत को साझेदार भी बनाना चाहता है।

चीन को लेकर भारत की भी अपनी चिंताएं हैं। भारत चीन-पाक आर्थिक गलियारा यानी CPEC और चीन-म्यांमार आर्थिक गलियारा यानी CMEC से चिंतित है। सीएमईसी के तहत म्यांमार के क्योकफ्यू डीप-सीपोर्ट के निर्माण के लिए 1.3 अरब डॉलर का क़रार किया गया है। इस बंदरगाह के ज़रिए चीन अब अपने पूर्वी इलाक़े से सीधे बंगाल की खाड़ी तक सड़क सम्पर्क बना लेगा।

कहा जा रहा है कि दोनों देशों के अधिकारियों के बीच इस पर काफ़ी लंबे समय से बातचीत हो रही थी। रिपोर्ट्स के मुताबिक- अमेरिका चाहता है कि इंडो-पैसिफ़िक स्ट्रैटजी के हिस्सेदार के तौर पर भारत इस प्रस्ताव में सक्रिय भूमिका निभाए। अब भारत ने भी इस मुद्दे पर अपनी रूचि दिखाई है। अगर इस कार्यक्रम में अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया के साथ भारत भी सहमत हो जाता है तो चीन के बढ़ते कदम को रोकने में कामयाबी मिलेगी।

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