एंग्लो इंडियन पर कमलनाथ और राज्यपाल आमने-सामने और इसमें लालजी टंडन जीतते नजर आ रहे हैं

कांग्रेस को अंग्रेजों से इतना लगाव है कि वो स्वतन्त्रता के 71 वर्ष बाद भी उनकी दासता को नहीं छोड़ना चाहते हैं। वो किसी भी प्रकार से क्यों न करना पड़े। इस बार यह मध्य प्रदेश में देखने को मिला जब कमलनाथ की सरकार ने एंग्लो इंडियन सदस्य के नॉमिनेशन के लिए राज्यपाल के पास फ़ाइल भेजी थी।

बता दें कि पिछले वर्ष दिसंबर में ही देश की संसद में 126 वें संविधान (संशोधन) विधेयक को पारित कर लोकसभा और विधानसभाओं में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लोगों के लिए आरक्षण बढ़ा दिया गया था, लेकिन एंग्लो इंडियन का प्रतिनिधित्व खत्म कर दिया गया। इसके बावजूद राज्य की कांग्रेस सरकार ने आरक्षित सीट के लिए जबलपुर स्थित डेन्जिल पॉल की सिफारिश की थी, लेकिन राज्यपाल ने फाइल को मंजूरी नहीं दी।

बता दें लोकसभा और 14 राज्यों की विधानसभाओं में एंग्लो-इंडियन समुदाय के लोगों का प्रतिनिधित्व 25 जनवरी को समाप्त हो गया जिसे देखते हुए मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार ने फाइल को विधानसभा में एंग्लो-इंडियन सुमदाय के सदस्य के नॉमिनेशन के लिए आगे बढ़ाया, लेकिन राज्यपाल लालजी टंडन ने हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया।

2011 की जनगणना का हवाला देते हुए राज्यपाल ने कहा कि राज्य में एंग्लो-इंडियंस नहीं हैं। समुदाय का प्रतिनिधित्व 25 जनवरी को समाप्त हो गया है और केंद्र ने तारीख नहीं बढ़ाई है।

बता दें संविधान की तरफ से एंग्लो इंडियन समुदाय को विशेष छूट मिली थी। इस समुदाय के प्रतिनिधि भारतीय संसद में जनता द्वारा चुन कर नहीं राष्ट्रपति द्वारा नामित होने के बाद जाते थे यानि इस समुदाय के लोग बिना चुनाव लड़े ही लोकसभा व कई राज्यों के विधानसभा के लिए मनोनीत किए जाते थे। इसके लिए संविधान में अनुच्छेद 331 के तहत राष्ट्रपति को लोकसभा में एंग्लो इंडियन समुदाय के दो सदस्य नियुक्त करने का अधिकार प्राप्त था।

इसके अलावा 14 राज्यों के विधानसभा में भी एक-एक सीट आरक्षित है। विधान सभा में अनुच्छेद 333 के तहत राज्यपाल को यह अधिकार प्राप्त था कि (यदि विधानसभा में कोई एंग्लो इंडियन चुनाव नहीं जीता है) वह 1 एंग्लो इंडियन को सदन में चुनकर भेज सकता है। इन राज्यों में आंध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, झारखंड, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, तेलंगाना, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल के विधान सभाओं में एक नामित सदस्य होते हैं।

हालांकि, मनोनीत होने के बाद भी एंग्लो इंडियन के सदस्यों पर अपने समुदाय के लिए कुछ नहीं करने का आरोप लगता रहा है। आज़ादी के 72 वर्ष बाद सभी एंग्लो इंडियन परिवारों की दूसरी व तीसरी पीढ़ी अब पूरी तरह से भारत में स्थापित हो चुकी है तथा इन्हें भारत के अन्य नागरिकों के बराबर संविधान द्वारा अधिकार प्राप्त है। आज के दौर में इस समुदाय की संख्या बहुत ही कम हो चुकी है और अधिकतर लोग विदेश में जाकर बस चुके हैं या तो भारत की शेष आबादी में पूरी तरह से घुल मिल चुके हैं। इसी वजह से केंद्र की मोदी सरकार ने 126वे संशोधन में इस समुदाए को मिलने वाले विशेष आरक्षण को समाप्त कर दिया गया था।

अब इस समुदाय को विशेष आरक्षण देने का कोई मतलब नहीं था। और यह ब्रिटिश साम्राज्य की एक निशानी के तौर पर भी देखा जाता रहा है। अंग्रेज़ तो अत्याचार कर चले गए थे लेकिन अपने समुदाय के लिए संसद में सीट सुरक्षित कर के गए थे। शुरू से ही अंग्रेजों की चाटुकार रही कांग्रेस में अभी भी यही दशत्व की भावना दिखती है। कमलनाथ सरकार की यह कदम दिखाती है कि कांग्रेस को आज भी अंग्रेजों से विशेष लगाव है।

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