कश्मीरी पंडितों की पीड़ा का मजाक बनाने वाली फिल्म ‘शिकारा’ हुई सुपर फ्लॉप

शिकारा

2020 की शुरुआत के साथ ही फ्लॉप फिल्मों की मानो झड़ी सी लग गयी है। ‘छपाक’ से जो सिलसिला शुरू हुआ, वो ‘जय मम्मी दी’, ‘स्ट्रीट डांसर 3डी’, ‘पंगा’ और यहाँ तक की ‘जवानी जानेमन’ भारतीय बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप साबित हुई। अब इसी सूची में नाम जुड़ा है विधु विनोद चोपड़ा की चर्चित फिल्म ‘शिकारा’ का, जिसने opening weekend में 5 करोड़ से भी कम की कमाई की है।

विधु विनोद चोपड़ा द्वारा निर्देशित ‘शिकारा’ कथित रूप से कश्मीरी पंडितों के साथ हुए अन्याय और नरसंहार पर आधारित थी। हालांकि इस फिल्म में उनके साथ न्याय तो बहुत दूर की बात, उल्टे उनके साथ हुई त्रासदी का इस फिल्म में मानो बड़ा ही भद्दा मज़ाक उड़ाया गया था। इसके लिए विधु विनोद चोपड़ा और फिल्म की स्क्रिप्ट लिखने वाले राहुल पंडिता को कश्मीरी पंडितों के विरोध का भी सामना करना पड़ा था।

अब इसके बॉक्स ऑफिस कलेक्शन को देखा जाये, तो शिकारा बॉक्स ऑफिस पर फिसड्डी साबित हुई है। पहले दिन इस फिल्म ने 1.20 करोड़ रुपये का कलेक्शन किया। दूसरे दिन इसमें थोड़ा सुधार करते हुए 1.85 करोड़ रुपये का कलेक्शन किया, परंतु रविवार को फिल्म के कलेक्शन में कोई विशेष सुधार नहीं हुआ, और यह महज 1.90 करोड़ रुपये ही बॉक्स ऑफिस पर कमा पायी।

अब शिकारा क्यों फ्लॉप साबित होगी, इसके पीछे दो प्रमुख कारण है। एक तो विधु विनोद चोपड़ा और राहुल पंडिता ने कश्मीरी पंडितों के साथ हुए अत्याचार को दिखाने के नाम पर उनके दर्द का मानो उपहास उड़ाया हो। शिकारा में किस तरह से कश्मीरी पंडितों के मुद्दों के साथ छेड़खानी की गयी थी, इसका अंदाज़ा आप इस महिला की व्यथा से लगा सकते हैं, जहां इस महीला ने विधु विनोद चोपड़ा पर कश्मीरी पंडितों के साथ हुए त्रासदी का मखौल उड़ाने पर अपना आक्रोश व्यक्त किया –

दूसरा राहुल पंडिता से इस विषय पर जब बात की गयी, तो उन्होंने बड़ा ही घटिया जवाब दिया। राहुल पंडिता ने कहा, “एक परिपक्व और जिम्मेदार राइटर होने के नाते मैंने काफी धैर्य रखा और ऐसा कोई भी दृश्य नहीं लिखा, जिससे नफरत फैले और दो समुदायों के बीच हिंसा हो।”

पर हम शायद भूल गए थे कि इस पिक्चर के निर्देशक विधु विनोद चोपड़ा हैं, जिन्होंने कश्मीरी नरसंहार पर कुछ इस प्रकार से विचार रखे, “ यह फिल्म हीलिंग के बारे में है, ये फिल्म साथ आने के बारे में है। यह फिल्म इस धारणा के बारे में है कि 30 साल से ज़्यादा हो चुके हैं, चलो माफ करें और आगे बढ़ें। यह कुछ ऐसा है कि जब दो दोस्तों के बीच एक छोटा झगड़ा होता है, और 30 साल बाद वे कहें कि छोड़ो इसे, एक दूसरे से माफी माँगकर गले मिलो।” 

पर शायद विधु विनोद चोपड़ा यह भी भूल गए थे कि अब वामपंथी प्रोपेगेंडा को जनता हाथों हाथ नहीं लेने वाली है। अपने मूवी का प्रचार प्रसार करने के लिए दीपिका पादुकोण ने जेएनयू का दौरा किया था, जहां उसने वामपंथी उपद्रवियों के साथ न सिर्फ हिस्सा लिया था, बल्कि अप्रत्यक्ष रूप से उसका समर्थन भी किया था। इतना ही नहीं, महोदया ने अपने फिल्म की पीछे की प्रेरणा यानि लक्ष्मी अग्रवाल का मज़ाक उड़ाते हुए टिक टॉक पर उसे एक मेकअप लुक तक ही सीमित कर दिया। इन सब के बावजूद छपाक घरेलू बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप सिद्ध हुई, और उसने अपने 40 करोड़ के बजट के मुक़ाबले केवल 35-36 करोड़ रुपये कमाए

अब शिकारा जिस तरह से फ्लॉप साबित हुई, उससे सिद्ध हो गया है कि अब भारत की जनता फालतू के प्रोपेगेंडा के भाव नहीं देती, चाहे फ़िल्मकार कोई भी हो। गली बॉय और आर्टिक्ल 15 के उदाहरणों को अगर छोड़ दे, तो लगभग हर वामपंथी प्रोपेगेंडा से भरे फिल्म को जनता ने पिछले वर्ष सिरे से नकार दिया था, और हम आशा करते हैं कि आगे भी विषैले फिल्मों को देश की जनता महत्व नहीं देगी।

 

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