‘तेरी मिट्टी’ के नकारे जाने और ‘गली बॉय’ के Film-Fare जीतने पर मनोज मुंतशिर ने किया Awards का बहिष्कार

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हाल ही में 65वें फ़िल्मफेयर अवार्ड्स का आयोजन गुवाहाटी शहर में कराया गया। बॉलीवुड फिल्म्स में उत्कृष्ट फिल्मों और उससे जुड़े कई विभागों को सम्मानित करते यह अवार्ड उस समय विवादों के घेरे में आया जब कई अच्छे फिल्मों और उनके उत्कृष्ट उपलब्धियों को नकारते हुए ‘गली बॉय’ और ‘आर्टिकल 15’ जैसे औसत दर्जे की फिल्मों को अधिकांश पुरस्कारों से नवाजा गया। अब इसी पक्षपात से दुखी होकर मनोज शुक्ल उर्फ मनोज मुंतशिर ने फ़िल्मफेयर पुरस्कारों के बहिष्कार की घोषणा की है।

गली बॉय को सर्वश्रेष्ठ फिल्म, सर्वश्रेष्ठ निर्देशक सहित लोकप्रिय कैटेगरी में 13 फ़िल्मफेयर पुरस्कार मिले, तो वहीं समीक्षकों की कैटेगरी में आर्टिक्ल 15 ने पुरस्कार बटोरे। ‘छिछोरे’, ‘उरी – द सर्जिकल स्ट्राइक’, ‘केसरी’ जैसी फिल्मों को केवल खानपूर्ति के लिए नामांकित कर दिया गया, जबकि ‘सेक्शन 375’, ‘बाला’, ‘द ताशकन्द फाइल्स’ जैसे फिल्मों को नामांकन तक नहीं मिला।

जब गली बॉय के ‘अपना टाइम आएगा’ के रचयिताओं को सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फ़िल्मफेयर पुरस्कार मिला, तो मनोज मुंतशिर ने अपनी व्यथा ट्विटर पर व्यक्त करते हुए लिखा, “डियर अवार्ड्स, मैं पूरे जीवन प्रयास करूं न, फिर भी मैं इससे बेहतर लाइन नहीं लिख पाऊँगा, “तू कहती थी तेरा चांद हूं मैं और चांद हमेशा रहता है”। उन शब्दों को सम्मान नहीं दिया जिसने कई भारतीयों को रुला दिया और अपनी मातृभूमि के लिए मर-मिटने को विवश कर दिया। अगर तुम्हारी परवाह करता रहा तो शायद ये मेरी कला का अपमान होगा। इसलिए आज मैं तुमसे अंतिम विदा लेता हूं। मरते दम तक मैं कोई और अवार्ड शो नहीं अटेण्ड करूंगा। अलविदा” –

मनोज शुक्ल उर्फ मनोज मुंतशिर एक उत्कृष्ट गीतकार है, जो उत्तर प्रदेश के अमेठी जिले से संबंध रखते हैं। उन्होने ‘दो दूनी चार’, ‘एक विलेन’, ‘बाहुबली’ [हिन्दी संस्करण], ‘एमएस धोनी – द अंटोल्ड स्टोरी’ ‘काबिल’, ‘रेड’, ‘केसरी’ और ‘कबीर सिंह’ जैसी फिल्मों के लिए काफी अच्छे गीत लिखे हैं। उनकी कलम से ही ‘तेरी मिट्टी’ जैसा गीत भी निकला, जिसे फ़िल्मफेयर में नामांकन तो मिला, पर उसे और ‘कबीर सिंह’ के गीतों को नकार कर ‘गली बॉय’ के एक ऐसे गीत को पुरस्कार मिला, जो टेक्निकली एक गीत भी नहीं है।

‘गली बॉय’ इससे पहले भी विवादों के घेरे में रही है। ‘द ताशकन्द फाइल्स’, ‘जल्लीकट्टू’, ‘रातचासन’, ‘अंधाधुन’, यहाँ तक कि ‘तुम्बाड़’ जैसी फिल्म को भी नकारते हुए ‘गली बॉय’ जैसी फिल्म को भारत की ओर से ऑस्कर के सर्वश्रेष्ठ विदेशी फिल्म पुरस्कार के लिए भेजा गया। वह फिल्म ‘8 माइल’ की कॉपी थी, और उसमें कुछ भी नया और अनोखा नहीं था, परंतु इसे प्राथमिकता देकर चयनकर्ताओं ने सिद्ध कर दिया कि वे वास्तव में सिनेमा के उत्थान के लिए कितना प्रयासरत हैं।

परंतु ठहरिए, ऐसा पहली बार नहीं है जब किसी ऐसी फिल्म पर फ़िल्मफेयर ने पुरस्कार लुटाये हों, जो इसके योग्य भी नहीं थी। 1996 में दर्शकों ने फ़िल्मफेयर अवार्ड्स का स्याह पहलू देखा, जब ‘बॉम्बे’ और ‘रंगीला’ जैसी फिल्मों को नकारकर ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ जैसी फिल्म पर सभी अहम पुरस्कार लुटाए गए। शाहरुख खान को जब सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के लिए पुरस्कार दिया गया, तो इस निर्णय से विक्षुब्ध आमिर खान ने फ़िल्मफेयर अवार्ड्स का आजीवन बहिष्कार करने का निर्णय ले लिया।

परंतु घटिया फिल्मों को पुरुस्कृत करने का सिलसिला वहीं नहीं रुका। अगले ही वर्ष ‘खामोशी’, ‘घातक’, ‘इस रात की सुबह नहीं’ का मानो उपहास उड़ाते हुए ‘राजा हिंदुस्तानी’ को सभी अहम अवार्ड्स सौंप दिये गए। परंतु हद तो तब हो गई जब 1998 और 1999 में ‘दिल तो पागल है’ और ‘कुछ कुछ होता है’ जैसे फिल्मों को सभी अहम फ़िल्मफेयर अवार्ड्स से पुरुस्कृत किया गया। अब ‘गली बॉय’ जैसी फिल्म को सम्मानित कर फ़िल्मफेयर अवार्ड्स ने इसी काली परंपरा में मानो जान फूंक दी है।

सच कहें, तो इस बार फ़िल्मफेयर अवार्ड्स ने political correctness को प्राथमिकता देने के चक्कर में योग्यता और प्रतिभा के साथ घोर अन्याय किया है। मनोज मुंतशिर का फिल्मफ़ेयर अवार्ड न जीतना इस बात का सूचक है कि ऐसे अवार्ड्स का स्टैंडर्ड दिन प्रतिदिन कितना गिरता जा रहा है। यदि अवार्ड्स में भी एजेंडा प्रसारित करना है, तो किसी को हैरान नहीं होना चाहिए यदि अगले वर्ष ‘शिकारा’ और ‘स्ट्रीट डांसर 3डी’ जैसी फिल्में फ़िल्मफेयर के लिए नामांकित हो, और शायद जीत भी जाए।

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