Narcos का भारत चैप्टर: नॉर्थ ईस्ट ड्रग माफिया गैंग से लगातार जूझ रहा है

अब तक इस गैंग से निपटने में सिर्फ त्रिपुरा सरकार ही सफल हो पाई है

Golden Triangle

कल मणिपुर सरकार ने म्यांमार के एक ड्रग माफिया, चाव चाव उर्फ अब्दुल रहीम को हिरासत में लिया। उसे इम्फाल में गिरफ्तार किया गया था, जिसमें से बड़ी मात्रा में World is Yours (WY) tablets (एक तरह का एक सिंथेटिक ड्रग) जब्त की गई, जिनकी कीमत 400 करोड़ रुपये है। इसके साथ ही उस पर राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA) लगाया गया है। इससे पहले पुलिस की एक टीम ने उसे पिछले साल अगस्त में इम्फाल हवाई अड्डे से गिरफ्तार किया था। उस दौरान इस ड्रग किंगपिन के कब्जे से 100 अमेरिकी डॉलर, एक 500 Kyats, दो मोबाइल हैंडसेट और कुछ दस्तावेजों के मूल्यवर्ग के 60,000 रुपये बरामद किए थे। यह कोई आम गिरफ्तारी नहीं बल्कि यह गिरफ्तारी पूर्वोतर राज्यों के एक बड़े लेकिन अनकहे समस्या की ओर इशारा करता है। वह समस्या है Golden Triangle से अवैध ड्रग व्यापार जिसके कारण देश के युवाओं का भविष्य अंधकार में जा रहा है। पूर्वोतर राज्यों में ड्रग की समस्या शुरू से ही रही है लेकिन इसे समझने के लिए हमे पहले Golden Triangle को समझना होगा।

यह गोल्डेन ट्रायंगल क्या है?

यह Golden Triangle, वह इलाका है जहां थाईलैंड, लाओस और म्यांमार की सीमाएं Ruak और Mekong नदियों के संगम पर मिलती हैं। इस नाम का प्रयोग सबसे पहले Central Intelligence Agency (CIA) के एजेंट्स द्वारा प्रयोग होना शुरू हुआ था जब यह क्षेत्र दुनिया भर में सबसे बड़ा ड्रग व्यापार का क्षेत्र बना चुका था। इन उत्तर-पूर्वी म्यांमार, उत्तरी थाईलैंड, उत्तरी लाओस और उत्तर-पूर्वी वियतनाम के दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों के कारण ड्रग धंधों को बड़े पैमाने पर बढ़ावा मिलता रहा है।

यह क्षेत्र Papaver somniferum के प्रमुख उत्पादक के रूप में भी जाना जाता है, जिसे आमतौर पर अफीम के रूप में जाना जाता है, जो अंततः हेरोइन का उत्पादन करने के लिए उपयोग किया जाता है। इसी क्षेत्र से ये सभी ड्रग दक्षिणी चीन और हांगकांग में प्रवेश करता है और फिर दुनिया के अन्य हिस्सों में फैलता है।

1980 के दशक तक, थाईलैंड हेरोइन के लिए एक केंद्र हुआ करता था लेकिन अब इस देश ने इन मादक पदार्थों की तस्करी में बहुत हद तक लगाम लगाया है। आज के दौर में अब लाओस और म्यांमार, अवैध मादक पदार्थों के व्यापार के बड़े केंद्र के रूप में उभरे हैं। इसका कारण है नए-नए ड्रग जैसे YABA को ही देख लीजिये जिसक प्रोडक्शन इन देशों में कई ड्रग्स को मिला कर किया जाता है।

अब अगर भारत का म्यांमार के साथ लगे हुए बार्डर को देखा जाए तो यह 1,643 किलोमीटर लंबा है और यह अधिकतर पूर्वोतर राज्यों के साथ ही लगा है। इस वजह से भारत के सभी पूर्वोतर राज्य इस अवैध ड्रग तस्करी के लिए बेहद संवेदनशील हैं।

भारत और म्यांमार के बीच सीमा से सटे इलाके अधिकतर उबड़-खाबड़, ऊंचे पहाड़ और घने जंगल वाले हैं, इस वजह से इस क्षेत्र में ड्रग तस्करी का काम धड़ल्ले से होता है और इन पर लगाम लगाना मुश्किल होता। यही नहीं भारत और म्यांमार के बीच Free Movement Regime (FMR) को दोबारा चालू होने से ड्रग माफियायों के लिए ड्रग तस्करी करना और आसान हो चुका है। बता दें कि Free Movement Regime (FMR) म्यांमार से सटे सीमा के पास के गांवों में रहने वाले लोगों के 16 किलोमीटर तक बिना वीजा के आवाजाही के लिए छूट प्रदान करता है।

इस वजह से भारत के कई पूर्वोत्तर राज्य आज इस ड्रग की समस्या से जूझ रहे हैं और इसका कारण यह Golden Triangle है। सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 2.1 प्रतिशत भारतीय अफीम, हेरोइन और non-medical sedatives जैसे ड्रग का उपयोग करते हैं। स्थानीय एनजीओ, Social Awareness and Service Organisation (SASO) का अनुमान है कि अकेले मणिपुर में 34,500 IUDs यानि Injecting Drug Users हैं, जिनमें से लगभग आधे इंफाल में रहते हैं। नागालैंड में 1.9 प्रतिशत और मणिपुर में 2.7 प्रतिशत आबादी का नशीली दवाओं के उपयोग करने का अनुमान है। इनमें से 85-90 प्रतिशत पुरुष हैं। लेकिन यह मुद्दा म्यांमार की सीमा से लगे राज्यों तक ही सीमित नहीं है बल्कि अन्य पूर्वोत्तर राज्यों जैसे मेघालय, त्रिपुरा और यहां तक कि सिक्किम तक फैला हुआ है। उदाहरण के लिए, शिलांग जैसे प्रमुख पूर्वोत्तर शहरों में, सड़क किनारे कपड़ों या अन्य ज़रूरतों के समान बेचने की आड़ में ड्रग्स बेचने वालों को देखना आम बात है।

पूर्वोत्तर राज्य वास्तव में Golden Triangle से बढ़ती ड्रग समस्या के लिए पूरे भारत के लिए एक प्रवेश द्वार की तरह हो चुका है। पूर्वोत्तर राज्य जैसे कि मिजोरम और त्रिपुरा ने अपने अतीत के उग्रवाद की समस्या से पार पाते हुए आज राजनीतिक रूप से शांतिपूर्ण माहौल रह रहे हैं लेकिन अब ड्रग्स की समस्या ने इन राज्यों को परेशान कर दिया है। हालांकि, त्रिपुरा में जबसे बिप्लब देव ने सत्ता संभाली हैं ड्रग की समस्या से निपटने के लिए उचित कदम उठाये हैं और इसकी जानकारी खुद त्रिपुरा पुलिस के एक शीर्ष अधिकारी ने भी दी थी। यहाँ तक कि बांग्लादेश ने भी ड्रग तस्करी की समस्या से से निपटने के लिए पूर्वोत्तर राज्यों खासकर त्रिपुरा द्वारा उठाये गये कदमों की प्रशंसा की थी।

ऊपर से तो यह एक ड्रग समस्या दिखाई देता है लेकिन यह और बड़ी समस्या है जो इन राज्यों में उग्रवाद और insurgent संगठनों को आर्थिक मजबूती देता है। इसी की वजह से NSCN (K) और गारो नेशनल लिबरेशन आर्मी (GLNA) जैसे विद्रोही और उग्रवादी संगठन अभी भी सक्रिय हैं, हालांकि ये अब उतने प्रभावशाली नहीं हैं। यही उग्रवादी संगठन पूर्वोत्तर में ड्रग्स के धंधे को चलाते हैं। वहीं भारत और बांग्लादेश में रोहिंग्या घुसपैठ दोनों देशों में ड्रग्स तस्करी का भी एक बड़ा स्रोत है। यह क्षेत्र नक्सल प्रभावित क्षेत्रों से बहुत दूर नहीं है और इस क्षेत्र में मादक पदार्थों की तस्करी से वामपंथी उग्रवाद को भी फायदा होता है। नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो की रिपोर्ट में आशंका जताई गई है कि झारखंड, बिहार और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में रेड कॉरिडोर में अफीम, हेरोइन जैसे ड्रग्स की सबसे बड़ी बरामदगी हुई है।

बता दें कि Golden Triangle के कारण अवैध मादक पदार्थों के व्यापार से प्रभावित होने वाला भारत एकमात्र देश नहीं है। चीन, थाईलैंड, म्यांमार और बांग्लादेश सभी इस के चपेट में है और इन्हें एक साथ आने की जरूरत है ताकि एक समन्वित अभियान चलाकर इस समस्या को जड़ से समाप्त किया जा सके।

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