“दिमाग खुला रखो, फिर बात करो”, भारत विरोधी तत्वों से निपटने के लिए जयशंकर का तगड़ा फॉर्मूला

भारत विरोधी नेताओं से हम बात नहीं करते, फूलों से स्वागत करने की बात तो बहुत दूर!

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पीएम मोदी के दूसरे कार्यकाल में जब से एस. जयशंकर विदेश मंत्री बने हैं, तभी से भारतीय कूटनीति को उन्होंने पहले से ज़्यादा धारदार बना दिया है। अब भारतीय कूटनीति की दिशा और दशा, दोनों में सकारात्मक रूप से बदले नजर आ रहे हैं। कूटनीति का सबसे अहम पहलू दूसरे देशों के साथ संवाद स्थापित करना होता है, और जयशंकर ने इस पर सबसे ज़्यादा ज़ोर दिया है। उनके आने के बाद एक बड़ा बदलाव यह हुआ है कि अब भारत सरकार ने भारत के खिलाफ एक सोची-समझी रणनीति के तहत एजेंडा चलाने वाले लोगों को पूरी तरह किनारे कर दिया है और ऐसे तत्वों से बातचीत करना ही बंद कर दिया है।

अमेरिका और यूके जैसे देशों में एक खास वर्ग के लोग शुरू से ही भारत के खिलाफ मोर्चा खोलते आए हैं। भारत के खिलाफ इनकी घृणा और भारत विरोधी तत्वों के साथ इनका गठजोड़ समय-समय पर सामने आता रहता है। ये ऐसे लोग हैं कि इन्हें चाहे कोई कितना भी तथ्यों के बारे में बता ले, समझा ले, लेकिन इनका भारत विरोध खत्म होने का नाम नहीं लेता है। एस जयशंकर के आने के बाद अब भारत सरकार ने ही ऐसे लोगों का बॉयकॉट कर दिया है, और इसके हमें कई उदाहरण देखने को मिल चुके हैं।

विदेश मंत्री बनने के बाद पिछले वर्ष अक्टूबर में जब जयशंकर अमेरिकी दौरे पर गए थे, तो उन्होंने भारत के खिलाफ जहर उगलने वाली मीडिया को पूरी तरह नकार दिया था। भारत के सभी विदेश मंत्री और नेता पहले अमेरिकी मीडिया से रू-ब-रू होना ही बेहतर समझते थे, लेकिन जयशंकर ने अमेरिकी थिंक टैंक्स के साथ मुलाक़ात करना बेहतर समझा। ये थिंक टैंक्स बहुत शक्तिशाली माने जाते हैं और अमेरिकी प्रशासन पर इनका अच्छा-खासा प्रभाव माना जाता है। ये थिंक टैंक इतने शक्तिशाली होते हैं कि इनका सिर्फ अमेरिका की विदेश नीति पर ही नहीं, बल्कि कई बाहरी देशों की विदेश नीति पर भी इनका प्रभाव होता है। इसके उलट अमेरिका की मीडिया शुरू से ही भारत विरोधी रुख अपनाती रही है और आज तक उन पर भारत सरकार के किसी भी सकारात्मक पहल का कोई असर नहीं हुआ है।

जयशंकर पिछले वर्ष ही दिसंबर में अमेरिका दूसरी बार गए थे, जहां उन्होंने भारत विरोधी भारतीय मूल की सांसद प्रमिला जयपाल से मिलने से ही साफ मना कर दिया था। जयपाल ही वह सांसद थीं, जिन्होंने अनुच्छेद-370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर में लगे प्रतिबंधों के खिलाफ अमेरिकी संसद में प्रस्ताव पेश किया था। तब उन्होंने कहा था, “मुझे जयपाल से मिलने में कोई रुचि नहीं है। मैं केवल उन लोगों से मिलने के ख्वाहिशमंद हूं, जिन्होंने पहले से कोई राय नहीं बना रखी है और तटस्थ हैं। हम उससे बात करते रहे हैं जो तार्किक हैं और जो दिमाग को खुला रखते हैं।”

जयशंकर ने ठीक ऐसा ही बर्ताव कुछ दिनों पहले अमेरिकी सीनेटर लिंडसे ग्राहम के साथ किया था। लिंडसे ग्राहम कश्मीर मुद्दे पर भारत को घेरना चाह रहा था, लेकिन विदेश मंत्री ने उसे ऐसा जवाब दिया कि उस सांसद का चेहरा उतर गया था। अमेरिकी सीनेटर लिंड्से ग्राहम ने कहा था, ‘कश्मीर से लौटने के बाद समझ नहीं पाया कि वहां जारी लॉकडाउन कब खत्म होगा। दोनों देशों (भारत-पाकिस्तान) को यह तय करना होगा कि मसला जल्द ही सुलझा लिया जाए।’ जवाब में एस जयशंकर ने कहा, ‘चिंता मत कीजिए। एक  लोकतान्त्रिक देश है, जो इसे सुलझा लेगा और आप जानते हैं कि वह देश कौन सा है?”

ऐसा कहकर जयशंकर ने ग्राहम को यह साफ संकेत दे दिया कि भारत को उनके भाषण की कोई ज़रूरत नहीं है और भारत अपने मुद्दे खुद सुलझाना जानता है।

जयशंकर की शानदार कूटनीति का एक और सबसे ताज़ा नमूना हमें तब देखने को मिला जब भारत ने यूके की सांसद डेबी अब्राहम को भारत में घुसने से साफ मना कर दिया और उन्हें एयरपोर्ट से ही उनके देश वापस लौटा दिया। ब्रिटेन की ऑल पार्टी पार्लियामेंट्री ग्रुप ऑफ कश्मीर की अध्यक्ष और लेबर पार्टी की सांसद डेबी अब्राहम उसके बाद पाकिस्तान के दौरे पर गई जहां उन्होंने भारत की जमकर आलोचना की। भारत सरकार ने भी जवाब में साफ कर दिया कि किसी का वीज़ा कैंसिल करना सरकार के हाथ में है और डेबी अब्राहम भारत विरोधी गतिविधियों में शामिल रह चुकी हैं।

जो व्यक्ति पाकिस्तान जाकर भारत की बुराई करता हो, और कश्मीर को लेकर एकतरफा भारत की आलोचना करता हो, उसे भारत में कदम रखने से मना करके जयशंकर ने फिर स्पष्ट कर दिया कि भारत को ऐसे पक्षपाती लोगों के साथ संवाद करने में कोई दिलचस्पी नहीं है।

इन चार उदाहरणों को देखकर यह समझा जा सकता है कि भारत अब उन्हीं लोगों से संवाद करेगा, जो तथ्यों पर बात करेंगे। जो एजेंडा चलाएंगे, उन्हें भारत सरकार कोई भाव नहीं देगी। भारत की कूटनीति में यह बदलाव स्वागत के योग्य है क्योंकि भारत ने अब ऐसे लोगों को नींद से जगाना बंद कर दिया है, जो सोने की एक्टिंग कर रहे हैं। इनसे संवाद करना समय की बर्बादी है और इस समय को भारतीय विदेश मंत्रालय किसी बेहतर जगह निवेश कर सकता है।

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