‘जब वी मेट’ से लेकर ‘लव आजकल-2’ तक, जाने कैसे इम्तियाज अली ने खुद से ही खुद की कब्र खोद डाली

“चिट्ठी न कोई सन्देस, जाने वो कौन सा देस, जहां तुम चले गए”

इम्तियाज अली, लव आजकल 2,

कभी जिस निर्देशक ने अपने अनोखे फिल्म मेकिंग शैली से पूरे देश को अपना दीवाना बना लिया था, कभी जिस व्यक्ति ने बॉलीवुड सिनेमा में उम्मीद की एक लौ जलायी, आज वो उसी दलदल में फंस चुका है, जिससे वो भारतीय सिनेमा, विशेषकर बॉलीवुड को दूर रखना चाहता था। यह कहानी है उसी इम्तियाज़ अली की, जिसने कभी ‘जब वी मेट’ जैसी फिल्में बनाई, और अब ‘लव आज कल 2’ जैसी फिल्मों से अपनी कब्र खुद ही खोद रहे हैं।

16 जून 1971 को पटना में जन्मे इम्तियाज़ अली शुरू से ही काफी प्रतिभावान युवक थे। हिन्दू कॉलेज में ड्रामाटिक्स सोसाइटी शुरू करने वाले इम्तियाज़ अली ने अपने करियर की शुरुआत टीवी सीरियल्स से की, जहां उन्होंने ‘इम्तिहान’, ‘नैना’ और ‘कुरुक्षेत्र’ जैसे सीरियल्स का निर्देशन किया। इसके साथ-साथ उन्होंने ज़ी टीवी पर प्रसारित होने वाले चर्चित anthology शो ‘रिश्ते’ के लिए कुछ पटकथाएं लिखी और निर्देशित भी की।

टीवी पर सफलता का स्वाद चखने के कुछ वर्षों बाद इम्तियाज़ अली ने फिल्मों की ओर रुख किया। परंतु उनकी पहली फिल्म ‘सोचा न था’ दर्शकों को पसंद नहीं आयी, और 2006 में रिलीज़ हुई यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप सिद्ध हुई। परंतु अगले ही वर्ष इम्तियाज़ अली लेकर आए ‘जब वी मेट’, जिसमें शाहिद कपूर और करीना कपूर खान मुख्य भूमिका में थे। रिलेशनशिप पर इस अनोखे टेक को दर्शकों ने जमकर सराहा और इस फिल्म ने कई पुरस्कार जीते। इतना ही नहीं, इस फिल्म से प्रेरित होकर हॉलीवुड में एक मूवी भी बनी, जिसका नाम था ‘लीप ईयर’।

इसके बाद तो इम्तियाज़ अली ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। एक के बाद एक वे सफल फिल्मों की झड़ी लगाते गए। 2009 में उनकी फिल्म आई लव आज कल, जिसमें प्रेम के बदलते मायनों पर प्रकाश डाला गया था। यह फिल्म युवा वर्ग को बेहद पसंद आई थी, और उससे भी ज़्यादा बढ़िया बात थी दोनों समय का अद्भुत संगम, जो बहुत कम ही हिन्दी फिल्मों ने सिद्ध किया है। जब वी मेट की भांति यह फिल्म भी काफी सफल रही थी, और लीड जोड़ी सैफ अली खान और दीपिका पादुकोण को उनके अभिनय के लिए काफी सराहा गया था।

फिर आया वर्ष 2011, और इम्तियाज़ अली लेकर आए फिल्म ‘रॉकस्टार’। एक संगीतज्ञ के ‘रॉकस्टार’ बनने के सफर, और किस प्रकार से सफलता के साथ उसके व्यक्तित्व में बदलाव आता है, ‘रॉकस्टार’ उसी का सार है। फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर ज़बरदस्त सफलता के साथ-साथ कई पुरस्कार बटोरे, और स्वयं इम्तियाज़ अली को फिल्मफेयर में सर्वश्रेष्ठ कथा और सर्वश्रेष्ठ निर्देशन के लिए नामांकित किया गया। रणबीर कपूर को इसी फिल्म के लिए फिल्मफेयर के सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के पुरस्कार से भी नवाजा गया।

इम्तियाज़ अली अब भारत के उत्कृष्ट फिल्ममेकरों में गिने जाने लगे। उनकी अगली फिल्म ‘हाइवे’ भले ही स्टॉकहोम सिंड्रोम का महिमामंडन करने के लिए विवादों के घेरे में आई, परंतु इसने बाल यौन शोषण जैसे संवेदनशील मुद्दे पर भी थोड़ा प्रकाश डाला था। आलिया भट्ट की एक्टिंग और फिल्म की दमदार कथा के कारण इस फिल्म को भी ‘रॉकस्टार’ जितनी प्रशंसा और सफलता मिली। आलिया भट्ट को इस फिल्म के लिए फिल्मफेयर की सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री [क्रिटिक्स] का पुरस्कार दिया गया था।

परंतु शायद इम्तियाज़ अली इस सफलता को पचा नहीं पाये, और धीरे-धीरे वे गर्त में जाने लगे। इसके लक्षण शायद दर्शकों को ‘तमाशा’ में ही दिख जाने चाहिए थे, जब कुछ जगह पटकथा मार्मिक और कथ्यपरक कम, अधकचरी ज़्यादा लग रही थी। परंतु पूरी फिल्म से एक दमदार संदेश जाने के कारण इन गलतियों पर मानो पर्दा पड़ गया और इम्तियाज़ अली के खाते में एक और सफल फिल्म आई।

अब एक कलाकार के कई पहलू हैं, जिसमें से एक होती है विचारधारा। हमारे देश में कलाकारों की एक निश्चित विचारधारा होती है, जिसमें या तो वे विशुद्ध वामपंथी होते हैं, या फिर विशुद्ध दक्षिणपंथी। परंतु जब आपकी विचारधारा आपके काम पर हावी होने लगे, तो समझ जाइए कि कहीं न कहीं आप में कुछ तो कमी है। दुर्भाग्यवश ये बात इम्तियाज़ अली को बिल्कुल समझ में नहीं आई, और वे उसी राह पर चल पड़े, जिस पर चलकर अनुराग कश्यप और ज़ोया अख्तर जैसे लोग आज कई सिनेमा प्रेमियों के लिए उपहास के पात्र बने हुए हैं।

2017 में इम्तियाज़ अली की फिल्म आई ‘जब हैरी मेट सेजल’। शाहरुख खान और अनुष्का शर्मा अभिनीत यह फिल्म कथित तौर पर ‘जब वी मेट’ और ‘हाइवे’ जैसी फिल्मों के परिपाटी को बढ़ावा देने वाली फिल्म बताई जा रही थी। परंतु फिल्म के रिलीज़ होने पर जनता ने illogical प्लॉट और उससे भी घटिया डाइलॉग देखकर एक सुर में कहा, ‘कुछ भी’।

लेकिन इम्तियाज़ अली ने इस फिल्म की असफलता से कोई सीख नहीं ली, और फिर उन्होंने प्रोड्यूस की ‘लैला मजनू’। इस फिल्म को इम्तियाज़ ने निर्देशित नहीं किया था, परंतु इस फिल्म में इम्तियाज़ अली की छाप साफ झलकती थी। आखिरकार, इस फिल्म की स्क्रिप्ट उन्होंने जो लिखी थी। यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर औंधे मुंह गिरी और इसका घरेलू बॉक्स ऑफिस कलेक्शन 3 करोड़ भी नहीं पार कर पाया।

अब लव आज कल 2 ने सिद्ध कर दिया है कि कैसे इम्तियाज़ अली ने अपने हाथों से ही अपने फिल्म करियर की बलि चढ़ा दी है। जिस तरह से ये फिल्म दर्शकों को लुभाने में असफल रही है, उससे सिद्ध हो गया है कि या तो ये अपनी पहचान खो चुके हैं, या फिर ये फ़िल्मकार शुरू से ही औसत दर्जे के थे, बस इनका वास्तविक स्वरूप अभी सामने आया है। ये निस्संदेह काफी दुखदायी है कि एक फ़िल्मकार, जिसे पूरा देश उसकी प्रतिभा के लिए प्रशंसा के पुल बांधते नहीं थकता था, अब बेचारा एक अदद स्क्रिप्ट के लिए मारा मारा फिर रहा है।

आज ‘लव आज कल-2’ के फ्लॉप सिद्ध होने पर अनायास ही मुझे कुछ पंक्तियां याद आई, जो मुझे विश्वास है कि कई युवा प्रशंसकों के मन मस्तिष्क में भी इम्तियाज़ अली की दशा को लेकर गूँजती होगी।

“चिट्ठी न कोई सन्देस,

जाने वो कौन सा देस,

जहां तुम चले गए”।

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