Tamil Nadu: 400 हिन्दुओं ने अपनाया इस्लाम, देश के एकजुट हिन्दुओं के लिए ये अच्छे संकेत नहीं

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कोयंबटूर

भारत में जाति व्यवस्था को कोई झुठला नहीं सकता। आज भी हमारे देश में जातिवाद के नाम पर भेदभाव समाप्त नहीं हुआ है। दलितों के साथ सदियों तक शोषण हुआ और अब भी देश के कई हिस्सों हालात काफी बुरे नजर आ रहे हैं। अब जातिवाद के नाम पर भेदभाव से तंग आ चुके लोग धर्मांतरण का रास्ता अपना रहे हैं। ताजा रिपोर्टस की मानें तो तमिलनाडु के कोयंबटूर में बड़ी संख्या में 400 से अधिक दलितों ने इस्लाम कबूल कर लिया है।

मीडिया रिपोर्टस के अनुसार, तमिलनाडु के कोयंबटूर में धर्मांतरण करने वाले 400 से अधिक दलितों ने आरोप लगाया है कि वो वर्षों से जाति आधारित भेदभाव और अन्याय का सामना कर रहे हैं। दलित समर्थक तमिल पुलिगल के महासचिव निलावेनील ने कहा कि ‘उन्होंने अंबेडकर के शब्दों के अनुसार अपने सहयोगियों और प्रियजनों को इस्लाम कबूल करवाने का निर्णय लिया, तांकि उन्हें जातिवाद के चंगुल से मुक्त कराया जा सके’। निलावेनिल ने दावा किया है कि लगभग 3000 लोग इस्लाम कबूल करने को तैयार हैं और अब तक 430 लोग कबूल कर चुके हैं।

बता दें कि 2 दिसंबर को  मेत्तुपलायम के नांदुरा गांव में एक दीवार गिरने की घटना में 17 दलितों मौत हो गई थी। इस दिवार के दलितों पर गिरने के बाद से इसे ‘अछूत दीवार’ का नाम दे दिया गया। यहां के स्थानीय लोगों का मानना है कि ये दीवार जाति आधारित थी जिसे दलितों को कॉलोनी के आसपास के क्षेत्र से दूर रखने के लिए बनाया गया था। तमिल पुलीगल के कोयंबटूर जिला अध्यक्ष इलवेनिल ने इस मामले पर तब कहा था कि , ‘इस घटना का जिम्मेदार जो शख्स था, उसे गिरफ्तार तो किया गया लेकिन गिरफ्तारी के 20 दिन के भीतर ही जमानत पर रिहा कर दिया गया’। कोयंबटूर में इस तरह की घटनाएं पहले भी सामने आ चुकी हैं। यहां रहने वाले लोगों को हर दिन जाति आधारित भेदभाव का सामना करना पड़ता है, उन्हें मंदिरों में भी प्रवेश करने नहीं दिया जाता है लेकिन मस्जिद में उनके प्रवेश पर रोक नहीं लगाई जाती इसी वजह से वो इस्लाम कबूल करना चाहते हैं। हालांकि, इलवेनिल ने ये भी स्पष्ट किया है कि धर्मांतरण में नांदुरा गांव  से कोई शामिल नहीं हुआ है।

इस घटना ने एक बार फिर से हिन्दू समाज के भीतर की रूढ़िवादी सोच और जातिवाद के आधार पर सदियों से चले आ रहे भेदभाव को उजागर किया है। ऐसे ही लोगों की वजह से हिन्दुओं में एकता की हमेशा से कमी रही है। खासकर कुछ राजनीतिक दलों ने इस भेदभाव को आधार बनाकर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकी है। इसी को आधार बनाकर मुस्लिम दलित मतदाताओं को एकजुट कर कई राजनीतिक पार्टियाँ चुनावों में जीत दर्ज करती हैं उत्तर प्रदेश की बहुजन समाज पार्टी इसका बड़ा उदाहरण है। इसी से संबंधित एक नारा भी मशहूर है, “Jatav मुस्लिम भाई भाई फिर ये हिन्दू कौम कहां से आयी।”

दलितों के साथ सदियों जो भेदभाव हुआ उसे कोई नकार नहीं सकता और ना ही इसके लिए कोई माफी हो सकती है। लेकिन सामाजिक समरसता बदले के भाव से बनी नहीं रह सकती है। इस बात को अब देश की जनता समझ चुकी है। बीते दशक में देश में हालात बदले हैं। भाजपा के केंद्र में आने से दलित समुदाय अब अछूता नहीं है बल्कि देश के हिन्दू जातिवाद को किनारा कर एकजुट हुए हैं। सभी को राष्ट्रवाद की भावना ने एक मंच पर ला दिया है। देश में अब राजनीतिक स्तर पर भी एकीकरण की प्रक्रिया चल रही है, लेकिन हिंदू संगठनों को यह समझना होगा कि जातिगत पूर्वाग्रह और भेदभाव एक बार फिर से हिंदू समाज को विभाजित कर सकता है। यदि ऐसा होता है तो यह राष्ट्र के लिए भी अच्छे संकेत नहीं है

तमिलनाडु के कोयंबटूर में हुई इस घटना से स्पष्ट है कि देश में अभी भी जाति के आधार पर भेदभाव जारी है लेकिन जो इस तरह के भेदभाव करते हैं उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। इसे खत्म करने की दिशा में सभी को कार्य करना चाहिए क्योंकि यही देश के विकास के लिए भी अच्छा है।

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