पेश है टोक्यो ओलंपिक के घुड़सवारी का पहला राउंड। सारे घुड़सवार अपने घोड़ों पर मैदान ए जंग फतह करने के लिए तैयार लग रहे हैं। इधर ब्रिटेन का घुड़सवार फील्ड का मुआयना करते हुए, तो दूसरी ओर कोरिया का घुड़सवार अपने घोड़े को थपकियाँ देता हुआ, और वहीं पाकिस्तान का घुड़सवार अपने ‘आज़ाद कश्मीर’ पर हंटर चटकाता हुआ।
यहाँ आज़ाद कश्मीर कोई व्यक्ति नहीं, बल्कि टोक्यो ओलंपिक में क्वालिफ़ाई करने वाले पहले पाकिस्तानी खिलाड़ी के घोड़े का नाम है। 2020 के टोक्यो ओलंपिक के घुड़सवारी स्पर्धा में पाकिस्तान की ओर से हिस्सा लेने वाले उस्मान खान ने अपने घोड़े का नाम आज़ाद कश्मीर रखा है। स्पष्ट है टोक्यो ओलिंपिक में पाकिस्तान ‘आजाद कश्मीर’ नाम का घोड़ा उतारेगा।
दरअसल, अपने लिए स्पॉन्सर न ढूंढ पाने पर उस्मान मियां ने ये नायाब योजना अपनाई है। पाकिस्तानी न्यूज़ पोर्टल डॉन को दिये साक्षात्कार में उस्मान मियां ने कहा, “ये बड़ा ही छोटा मसला है। मेरे इरादे पाक साफ हैं। मुझे स्पॉन्सर चाहिए ताकि मैं और मेरा आज़ाद कश्मीर टोक्यो ओलंपिक पहुँच सके, और इससे हमारे इरादों को एक मुकाम मिलेगा”।
पैसे का चक्कर बाबू भैया, पैसे का चक्कर बहुत खराब होता है। दरअसल, उस्मान ने साल 2014 और 2018 में दो बार एशियन गेम्स के लिए क्वालिफाई किया था, पर दोनों ही बार वो स्पॉन्सर न मिलने के कारण टूर्नामेंट में शामिल नहीं हो सका तब इस घोड़े का नाम अल-बुराक था। चूंकि कश्मीर मुद्दा काफी संवेदनशील है तो इस शख्स ने जानबुझकर इस बार टोक्यो ओलिंपिक खेलों के लिए तमाम खर्च उठाने के लिए ये पैंतरा खेला है, ताकि वो चर्चाओं में आए और स्पॉन्सर उनसे संपर्क करें।
गौरतलब है कि पाकिस्तान भीख मांगने पर उतर आया है, पर मजाल है कि वो कश्मीर के मुद्दे को छोड़ दे। अब कुछ नहीं मिला तो घोड़े का नाम आज़ाद कश्मीर रखकर टोक्यो ओलंपिक में मुद्दे को धार देना चाहते हैं। एक कहावत है, “रघुकुल रीति सदा चली आई।।प्राण जाहुं बरु बचनु न जाई”। अगर पाकिस्तानी परिप्रेक्ष्य में इसे कहा जाये, तो ये कुछ ऐसा होगा, “पाकिस्तान रीति सदा चली आई, प्राण जायी पर कश्मीर ना जाई”। चाहे पाकिस्तान टूट के बिखर जाये, पर कश्मीर के लिए उसका जुनून मरते दम तक जारी रहेगा। एटम बम के बाद कश्मीर पाकिस्तान के लिए सबसे अहम मुद्दा रहता है।
खेलों में राजनीति करना पाकिस्तान के लिए कोई नई बात नहीं है। 50-70 के दशक में ओलंपिक में फील्ड हॉकी के जरिये भारत से अघोषित युद्ध लड़ने हो, या फिर 80-2000 के शुरुआती दशक तक क्रिकेट के जरिये भारत को नीचा दिखाना हो, पाकिस्तान ने खेल के मैदान को भी जंग का मैदान बना रखा हुआ है। ऐसे में घुड़सवारी के लिए उपयोग में लाये जाने वाले घोड़े का नाम आज़ाद कश्मीर रख पाकिस्तान ने अपनी घटिया सोच का ही परिचय दिया है। यदि ये देश अपने गोला फेंक के धावक के गोले का नाम एटम बम रखे तो भी हम नहीं चौंकेंगे, ये और बात है कि इसके लिए जापानी ज़रूर प्रेम से पाकिस्तानियों की खातिरदारी करेंगे।
14 प्रतिशत से ज़्यादा की महंगाई और कई प्रशासनिक एवं कूटनीतिक असफलताओं के बाद भी पाकिस्तान और पाकिस्तानी कश्मीर के प्रति अपना मोह छोड़ने को तैयार नहीं है और इसीलिए वे इस प्रकार के राजनीतिक स्टंट कर लाइमलाइट में बने रहना चाहते हैं। सच कहें तो पाकिस्तान ने अपने आप को एक चलते फिरते सर्कस में तब्दील कर दिया है, जहां आये दिन उसकी जनता अपना मज़ाक उड़वाने में गर्व महसूस करती है।