Parasite जैसी फिल्में ही Oscar जीतती हैं, गली ब्वॉय जैसी नहीं, ‘तुम्बाड़’ भेजा होता तो आज खबर कुछ और होती

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तुम्बाड़ ऑस्कर के काबिल है, गली बॉय नहीं

सोमवार को ऑस्कर अवार्ड्स की घोषणा की गई। पिछले कई समारोहों की तुलना में एक बार फिर अच्छे कंटेंट और प्रतिभा को सराहा गया, और उसी प्रकार से पुरस्कार दिए गए। परंतु जिस फिल्म ने सभी को चौकाते हुए ऑस्कर समारोह में धूम मचाई, वो थी बोंग जून हो द्वारा निर्देशित दक्षिण कोरियाई फिल्म ‘पैरासाइट’, जिसने इतिहास रचते हुए न केवल सर्वश्रेष्ठ विदेशी फिल्म का पुरस्कार जीता, अपितु सर्वश्रेष्ठ फिल्म का पुरस्कार भी जीता। ऐसा कीर्तिमान रचने वाली ‘पैरासाइट’ इतिहास में अब तक की पहली फिल्म बन गई है। इसके अलावा ‘पैरासाइट’ ने सर्वश्रेष्ठ ओरिजिनल स्क्रीनप्ले और सर्वश्रेष्ठ निर्देशक के ऑस्कर पुरस्कार भी अर्जित किए। ऐसी ही एक फिल्म थी राही अनिल बार्वे द्वारा निर्देशित तुम्बाड़, जिसे न सिर्फ दरकिनार किया गया, अपितु उसके स्थान पर ‘गली बॉय’ जैसे कबाड़ फिल्म को ऑस्कर में भारत की ओर से भेजा गया था।

निस्संदेह हमें ‘पैरासाइट’ की इस उपलब्धि पर काफी गर्व होता है, परंतु एक बात का दुख भी होता है, कि यह गौरव हमारे देश को भी प्राप्त हो सकता था। जिस तरह से पैरासाइट ने अपने कंटेंट और अपने उत्कृष्ट फिल्म्मेकिंग कला से विश्व भर में कोरियाई प्रतिभा का लोहा मनवाया, वो हमारा भी हो सकता था, यदि हमने एक उचित फिल्म को ऑस्कर के लिए भेजा होता। एक ऐसी ही फिल्म है राही अनिल बार्वे द्वारा निर्देशित तुम्बाड़ जिसे बंगाली निर्देशक अपर्णा सेन की ज्यूरी कमेटी ने ऑस्कर के लिए नामांकित करना सही नहीं समझा।

2018 के अक्टूबर में प्रदर्शित ‘तुम्बाड़’ राही अनिल बार्वे द्वारा निर्देशित और अभिनेता एवं निर्माता सोहुम शाह द्वारा निर्मित है। ये फिल्म विनायक नामक व्यक्ति के लालच के बारे में केन्द्रित है, जो अपनी तृप्ति के लिए तुम्बाड़ नामक वाड़ा [mansion] में स्थित हस्तर के खजाने से अपने लिए कई बार सोने के सिक्के चुराता है। मराठी लोक कथाओं से प्रेरित ये फिल्म अपने आप में भारतीय सिनेमा के सबसे उत्कृष्ट फिल्मों में से एक मानी जाती है, जिसे उचित सम्मान नहीं मिला।

इस फिल्म को देखकर कम ही लोगों को विश्वास होगा, कि इस फिल्म को बनाने में 6 वर्ष लगे थे और इसकी लागत 10 करोड़ रुपये से भी कम थी। इस फिल्म की विडम्बना तो यह थी कि इसका कुल कलेक्शन 14 करोड़ रुपये रहा रहा, क्योंकि यह अंधाधुन जैसी फिल्म के एक हफ्ते बाद और बधाई हो जैसी फिल्म के एक हफ्ते पहले कई अन्य फिल्मों के साथ रिलीज़ हुई थी।

‘Tumbad’ को फिल्मफेयर अवार्ड्स के आठ क्षेत्रों में नामांकित किया गया

आप कोई भी क्षेत्र बोलिए, और ‘तुम्बाड़’ ने हर क्षेत्र में दर्शकों का दिल जीता है। सिनेमैटोग्राफी, वीएफ़एक्स, स्क्रीनप्ले, एक्टिंग, बैक्ग्राउण्ड स्कोर, किसी भी क्षेत्र में ‘तुम्बाड़’ बड़े से बड़े विदेशी मास्टरपीस को धूल चटाने में सक्षम है। ‘तुम्बाड़’ ने इतिहास और पौराणिक कथाओं का ऐसा मीठा मिश्रण दर्शकों के सामने परोसा है कि वे इस फिल्म के हर एक दृश्य पर तालियाँ बजाने को विवश हो जाएंगे। ‘तुम्बाड़’ को उसके उत्कृष्ट कला के लिए फिल्मफेयर अवार्ड्स के आठ क्षेत्रों में नामांकित किया गया था, जिसमें से सर्वश्रेष्ठ सिनेमैटोग्राफी, सर्वश्रेष्ठ साउंड डिज़ाइन और सर्वश्रेष्ठ आर्ट डाइरैक्शन के लिए उसको पुरस्कार मिले थे।

परंतु तुम्बाड़ जैसी फिल्म को नकार कर फिल्म फेडेरेशन ऑफ इंडिया ने गली बॉय जैसे फिल्म को ऑस्कर के लिए भारत की एंट्री के तौर पर चुना। ये फिल्म पूरी तरह से 2002 में आई अमेरिकी फिल्म ‘8 माइल’ से कॉपी की गयी थी, बस इसे एक भारतीय टच दिया गया था। रोचक बात तो यह है कि ज्यूरी कमेटी की प्रमुख कोई और नहीं, बल्कि बंगाली निर्देशक अपर्णा सेन हैं। जी हाँ, ये वही अपर्णा सेन हैं, जिन्होंने 48 अन्य हस्तियों के साथ पीएम मोदी को ‘अल्पसंख्यकों’ की कथित ‘मॉब लिंचिंग’ को रोकने के लिए पत्र लिखा था, जिसमें इन हस्तियों ने ‘जय श्री राम’ को एक हिंसक युद्धघोष भी कहा था।

भारत ने आज तक सर्वश्रेष्ठ विदेशी फिल्म के लिए कभी ऑस्कर नहीं जीता है, और अब तक केवल 3 बार इस श्रेणी में नामांकित हुई, जसमें ‘मदर इंडिया’, ‘सलाम बॉम्बे’ और ‘लगान’ शामिल है। हालांकि ऐसा पहली बार नहीं है जब अच्छे फिल्मों को दरकिनार कर ऑस्कर के लिए भारतीय फिल्मों का चयन करने वाली ज्यूरी कमेटी ने निम्नतम फिल्मों को ऑस्कर के लिए भेजा हो। कहने को भारत 1958 से ही ऑस्कर में अपनी फिल्में भेजता रहा है, परंतु ऐसा बहुत ही कम हुआ है जब ऑस्कर जीतने योग्य फिल्म वास्तव में ऑस्कर में नामांकन के लिए गई हों।

उदाहरण के लिए 1998 का वर्ष देख लीजिये। जब सभी को लग रहा था कि राम गोपाल वर्मा द्वारा निर्देशित सत्या को ऑस्कर के लिए भेजा जाएगा, तो उसके स्थान पर ज्यूरी ने अपनी मंद बुद्धि का प्रयोग करते हुये ‘जींस’ नामक एक तमिल कॉमेडी फिल्म को भेजा।इसी प्रकार से 2006 में जब ऑस्कर के लिए भारत से फिल्म भेजने का प्रश्न उठा, तो कई अच्छी फिल्मों को पीछे छोड़ते हुये ‘एकलव्य’ को नामांकित किया गया था।

तुम्बाड़ को ऑस्कर के लिए न भेजना भारतीय सिनेमा के लिए भी हानिकारक है

इसी प्रकार जब सभी को पूर्ण विश्वास था कि रितेश बत्रा द्वारा निर्देशित ‘द लंचबॉक्स’ ऑस्कर के लिए नामांकित की जाएगी, तो उनकी उम्मीदों पर पानी फेरते हुये ज्यूरी कमेटी के तत्कालीन अध्यक्ष गौतम घोष ने ‘द गुड रोड’ नामक एक गुजराती फिल्म को नामांकन के लिए भेजा। दिलचस्प बात तो यह है कि गौतम घोष भी उन्ही 49 हस्तियों में से एक हैं, जिन्होंने पीएम मोदी को विवादास्पद पत्र लिखा था। ऐसे ही अपर्णा सेन ने अपने कुत्सित एजेंडे को सर्वोपरि रखते हुए गली बॉय को ऑस्कर के योग्य समझा।

अब सोचिए यदि ‘तुम्बाड़’ को ऑस्कर के लिए नामांकित किया जाता, तो फिर क्या होता? जिस तरह से ये फिल्म बनी थी, ये ‘पैरासाइट’ जैसी फिल्म को भी नाकों चने चबवाने पर मजबूर कर देती। अपर्णा सेन ने जिस तरह से तुम्बाड़ जैसी उत्कृष्ट फिल्मों को दरकिनार करते अपने एजेंडे को सर्वोपरि रखा है, वो न केवल देश के लिए, बल्कि भारतीय सिनेमा के लिए भी हानिकारक है। जब तक अपर्णा सेन जैसे लोग ऑस्कर के लिए भारतीय फिल्में चुनते रहेंगे तब तक भारत को ऑस्कर तो छोड़िए, ऑस्कर में नामांकन भी नहीं मिलेगा।

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