अपने आप को पत्रकार कहने की प्रतिदिन गलती करने वाले राजदीप सरदेसाई एक बार फिर सुर्खियों में हैं। इस बार दिल्ली में सीएए विरोधी दंगाइयों द्वारा किए गए दंगों पर अपना निजी हित साधने के लिए राजदीप ने फेक न्यूज़ फैलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी, पर फेक न्यूज़ फैलाने की जद्दोजहद में एक बार फिर जनाब ने अपनी भद्द पिटवा ली।
सीएए के खिलाफ हिंसा भड़कने के कुछ ही घंटों बाद राजदीप महोदय ट्वीट किए, “अभी अभी खबर आई है, पूर्वोत्तर दिल्ली में सीबीएसई की परीक्षा नहीं आयोजित होगी। लोकल नेता और अपराधी लोग हिसाब चुकता कर रहे हैं, और नागरिक को इन सब का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। क्या उन लोगों के विरुद्ध एक्शन लिया जाएगा, जो ये हिंसा भड़का रहे थे?”
इस पर सीबीएसई ने स्पष्टीकरण जारी करते हुए ट्वीट किया, “सर, आपकी जानकारी के लिए बता दें कि कल यानि 25 फरवरी को कोई परीक्षा आयोजित नहीं होगी”। बाद में पता चला कि सीबीएसई की कुछ प्रैक्टिकल परीक्षाएं आयोजित होनी है, जिसके लिए पूर्वोत्तर दिल्ली में कोई विशेष केंद्र नहीं है। जब सीबीएसई जैसी संस्था को सफाई देनी पड़ रही है, तो आप समझ सकते हैं कि एजेंडावादी पत्रकारिता के लिए राजदीप कितना नीचे गिर सकते हैं।
परंतु हम भूल रहे हैं कि ये वही राजदीप सरदेसाई हैं, जो एक ‘निष्पक्ष पत्रकार’ होकर आम आदमी पार्टी के दिल्ली विधानसभा चुनाव जीतने पर एक पार्टी कार्यकर्ता की भांति लाइव टीवी शो पर अपनी प्रसन्नता नाचते हुए प्रकट करते हैं। राजदीप का आधा करियर ही ऐसे महान घटनाओं से भरा पड़ा है। एक बार श्वान की पूंछ सीधी हो सकती है, पर राजदीप एजेंडावादी पत्रकारिता छोड़ दें, ऐसा बिलकुल नहीं हो सकता।
एक बार सीएए पर अपनी कुंठा जगजाहिर करते हुए सीएए का समर्थन करने वाले केरल के राज्यपाल, आरिफ मोहम्मद खान को उन्होंने भाजपा का एजेंट घोषित करने की कोशिश की थी। इस पर आरिफ़ मोहम्मद खान ने राजदीप को जो जवाब दिया, वह उन्हें ज़िंदगी भर याद रहेगा। आरिफ़ मोहम्मद खान ने जवाब देते हुए कहा “मुझे आपकी भाषा ही बेहद विवादास्पद लग रही है। मुझे राष्ट्रपति ने नियुक्त किया है, मुझे किसी पार्टी द्वारा नियुक्त नहीं किया गया है। समस्या ये है कि जैसी भाषा का आप इस्तेमाल कर रहे हैं, उसी से ध्रुवीकरण बढ़ता है। वह समाज में नफरत फैला रहा है। वह समाज में हिंसा भड़का रहा है”।
परंतु शायद आरिफ़ साहब को भी स्मरण नहीं होगा कि राजदीप बड़ा ही ढीठ प्राणी है, जिसे शायद अपनी बेइज्जती कराने में कुछ ज़्यादा ही मज़ा आता है। इसीलिए कुछ वर्ष पहले जनाब ने प्रणब मुखर्जी से अपने अक्खड़ स्वभाव में बात करने का प्रयास किया था, जिसके लिए प्रणब दा ने इनकी खूब धुलाई भी की थी। उन्होंने राजदीप से कहा कि वह एक आम आदमी से नहीं बल्कि भारत के पूर्व राष्ट्रपति से बात कर रहे हैं, जिसके बाद राजदीप ने धीरे से माफी भी मांगी।
ऐसे में राजदीप सरदेसाई ने एक बार स्पष्ट कर दिया की उन्हें सार्वजनिक बेइज्जती कराने में बड़ा मज़ा आता है, चाहे वो आम आदमी के हाथ से हो, सीबीएसई जैसे बोर्ड के हाथ से हो, या फिर देश के पूर्व राष्ट्रपति के हाथ से ही क्यों न हो। एजेंडावादी पत्रकारिता के चक्कर में राजदीप सरदेसाई किस हद तक गिर सकते हैं, ये हम क्या, स्वयं राजदीप महोदय भी नहीं जानते होंगे।