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तुर्की के पाकिस्तान-प्रेम को भारत का जवाब, जर्मनी में जाकर जयशंकर ने उसकी सबसे कमजोर नब्ज़ दबा दी

Vikrant Thardak द्वारा Vikrant Thardak
16 February 2020
in विश्व
तुर्की, पाकिस्तान, अर्मेनिया, एस जयशंकर, एर्दोगन, इमरान खान, कश्मीर,
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कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान के साथ मिलकर लगातार भारत को घेरने की कोशिश कर रहे तुर्की को भारत ने फिर एक बार एक कड़ा संदेश भेजा है। दरअसल, भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने 15 फरवरी को जर्मनी में अर्मेनिया के विदेश मंत्री से मुलाक़ात की, और उनके साथ अर्थव्यवस्था, राजनीतिक और सुरक्षा मुद्दों पर चर्चा की।

जिस तरह तुर्की, भारत के दुश्मन पाकिस्तान के साथ मिलकर भारत को आंखें दिखाने का काम कर रहा है, ऐसे में भारत ने भी अब तुर्की के सबसे बड़े दुश्मन अर्मेनिया के साथ नज़दीकियां बढ़ाना शुरू कर दिया है। यह सब तब हुआ है जब हाल ही में तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगान ने पाकिस्तानी संसद में खड़े होकर कश्मीर पर अपनी चिंता जताई थी।

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ढाका सरेंडर: जब पाकिस्तान ने अपने लोगों की अनदेखी की और अपने देश का आधा हिस्सा गंवा दिया

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Very good meeting with FM @ZMnatsakanyan of Armenia. Our long-standing historical links are today expressed in growing political, economic and security cooperation. Confident that this close relationship will further deepen in the years ahead. pic.twitter.com/QK2K1dfIlY

— Dr. S. Jaishankar (Modi Ka Parivar) (@DrSJaishankar) February 14, 2020

14 फरवरी को पाकिस्तान की संसद में बोलते हुए एर्दोगान ने कहा था–

“तुर्की की आजादी की लड़ाई के समय पाकिस्तान के लोगों ने अपने हिस्से की रोटी हमें दी थी। पाकिस्तान की इस मदद को हम नहीं भूले हैं और न कभी भूलेंगे। कल हमारे देश के लिए जिस तरह कनक्कल (तुर्की का सुमद्र तटीय हिस्सा) अहम था, बिल्कुल उसी तरह आज कश्मीर हमारे लिए मायने रखता है। दोनों में कोई फर्क नहीं है”।

Pakistan Millî Meclisi ve Senatosu Müşterek Oturumu https://t.co/S7pDGpGg2N

— Recep Tayyip Erdoğan (@RTErdogan) February 14, 2020

इसके बाद तुर्की को भारत की ओर से भी उपयुक्त जवाब दिया गया था। भारतीय विदेश मंत्रालय ने इस पर कहा था–

“हम चाहते हैं कि तुर्की का नेतृत्व सभी तथ्यों की सही समझ बना पाए जिसमें पाकिस्तान से भारत में होने वाला आंतकवाद भी शामिल है”।

अब भारत के विदेश मंत्री ने भी अर्मेनिया के विदेश मंत्री से मुलाक़ात की है, जिसे बड़ा अहम माना जा रहा है। बता दें कि आर्मेनिया के तुर्की के साथ रिश्ते तनावपूर्ण रहते हैं। पिछले वर्ष ही आर्मेनिया के खिलाफ तुर्की के राष्ट्रपति ने बेहद आपत्तिजनक ट्वीट किया था। उन्होंने कहा था कि ओटोमन एम्पायर के समय 20वीं सदी की शुरुआत में अर्मेनियन लोगों का नरसंहार उस समय के हिसाब से बिल्कुल उचित कदम था।

“The relocation of the Armenian gangs and their supporters, who massacred the Muslim people, including women and children, in eastern Anatolia, was the most reasonable action that could be taken in such a period.

The doors of our archives are wide open to all seeking the truth.”

— Presidency of the Republic of Türkiye (@trpresidency) April 24, 2019

तुर्की के राष्ट्रपति की ओर से इस तरह का बयान आना आर्मेनिया को बिल्कुल भी पसंद नहीं आया था और आर्मेनिया ने तुर्की की इसके लिए कड़ी निंदा की थी। कई कूटनीतिक विद्वानों का यह भी मानना है कि अब भारत को अर्मेनिया के साथ नज़दीकियां बढ़ाने और तुर्की को उसके काले इतिहास को याद दिलाने के लिए आधिकारिक तौर पर अर्मेनियन नरसंहार को मान्यता दे देनी चाहिए।

अर्मेनियन नरसंहार ऑटोमन एम्पायर (उस्मानी साम्राज्य) के समय तुर्क मुसलमानों द्वारा अर्मेनियन लोगों के संहार को कहा जाता है। आज से 105 साल पहले वर्ष 1915 में ऑटोमन एम्पायर के समय अर्मेनियन यहूदियों और ईसाइयों का बड़े पैमाने पर कत्ले-आम किया गया था और इस नरसंहार में करीब 15 लाख लोगों ने अपनी जान गंवाई थी और इस नरसंहार को यहूदी नरसंहार के बाद सबसे बड़ा नरसंहार माना जाता है। इसी काले इतिहास की वजह से आज के तुर्की और अर्मेनिया की आपस में बिल्कुल नहीं बनती है और दोनों देश एक दूसरे के कट्टर दुश्मन हैं।

बता दें कि ऑटोमन एम्पायर के दौरान ज़्यादातर अर्मेनियन लोग एम्पायर के पूर्वी हिस्से में ही रहते थे। इन्हें तुर्क-बहुल मुस्लिम शासन में दोयम दर्जे का नागरिक समझा जाता था। इनके पास ना तो धर्म का अनुसरण करने की आज़ादी थी और ना ही इनको अपनी संपत्ति रखने का अधिकार था। 70 फीसदी अर्मेनियन लोग गरीब थे। हालांकि, समुदाय के बाकी लोग बहुत अमीर थे। यह वर्ष 1915 ही था जब ऑटोमन एम्पायर ने एक कानून पास किया जिसके तहत ऑटोमन एम्पायर को किसी भी व्यक्ति को ‘सुरक्षा खतरा’ घोषित कर उसे डिपोर्ट करने का अधिकार प्राप्त हो गया था। इसी कानून के तहत लाखों अर्मेनियन यहूदियों और ईसाइयों को मौत के घाट उतारा गया था।

दुनिया के दो दर्जन से ज़्यादा देशों ने अभी अर्मेनियन नरसंहार को आधिकारिक तौर पर मान्यता प्रदान की हुई है जिसमें अमेरिका सबसे नया देश है।

अब भारत को भी अर्मेनियन नरसंहार को आधिकारिक तौर पर मान्यता दे देनी चाहिए ताकि तुर्की की अक्ल ठिकाने लगाई जा सके। इससे पहले इसी तुर्की ने पिछले वर्ष UN जनरल असेंबली में खड़े होकर कश्मीर मुद्दे पर भारत की आलोचना की थी। अब समय आ गया है कि भारत तुर्की को जबरदस्त झटका दे और उसे पाकिस्तान के साथ मिलकर भारत की आलोचना करने जैसे बड़ी गलती की सजा मिल सके।

Tags: अर्मेनियाइमरान खानएर्दोगनएस जयशंकरकश्मीरतुर्कीपाकिस्तान
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