शरद पवार का करप्शन मोड फिर चालू- इस बार करोड़ों की ज़मीन कौड़ियों के भाव खुद को ही बेची

सरकार में शरद पवार हों, और भ्रष्टाचार ना हो...ऐसा कैसा हो सकता है भला?

शरद पवार

(PC: msn)

महाराष्ट्र में NCP के कांग्रेस और शिवसेना के साथ सरकार बनाने के बाद जिस बात का डर था वही होना शुरू हो चुका है। NCP और शरद पवार की नजर शुरू से ही महाराष्ट्र की ‘चीनी मिलों’ और जमीन पर रही है, उल्टे-सीधे दांव पेंच लगा कर शरद पवार इन दोनों को ही अपने कंट्रोल में रखना चाहते हैं। अब यही देखने को मिल रहा है। महाराष्ट्र की सरकार ने शरद पवार की अध्यक्षता वाली संस्था वसंतदादा चीनी संस्थान को बहुत ही कम कीमत पर जमीन आवंटित की है। सरकार की ओर से इस संस्था को 51 हेक्टेयर सरकारी जमीन आवंटित की गई है, जिसकी मौजूदा बाजार कीमत तकरीबन 10 करोड़ रुपए है, लेकिन वसंतदादा संस्थान को यह बहुत ही कम कीमत पर आवंटित की गई है।

इंडियन एक्स्प्रेस की रिपोर्ट के अनुसार अहम बात यह है कि राजस्व विभाग, वित्त विभाग और राज्य के महाधिवक्ता की राय को दरकिनार करके उद्धव ठाकरे सरकार ने यह फैसला लिया है। राज्य के वित्त विभाग ने सरकारी भूमि के आवंटन के बारे में नियमों का हवाला देते हुए कम दाम में भूमि आवंटित करने के कदम पर सवाल उठाया था और यह वकालत की थी कि बोली लगाने के बाद भूमि को बाजार मूल्य पर आवंटित किया जाना चाहिए। सरकार ने अपनी शक्तियों का हवाला देते हुए कहा eminent charitable और public institutions को वह सीधे जमीन आवंटित कर सकती है। मराठवाड़ा के जालना में स्थित यह जमीन विशेष मामले के तहत शरद पवार की अध्यक्षता वाले संस्थान को आवंटित की गई है।

ये सब उसी शिवसेना के मुख्यमंत्री के राज में हो रहा है, जिसने वर्ष 2015 में महाराष्ट्र के पुणे जिले में 36 हेक्टेयर भूमि शरद पवार की अध्यक्षता वाले वसंतदादा शुगर इंस्टीट्यूट (वीएसआई) को लीज पर देने के फैसले पर आपत्ति जताई थी।

चीनी मिलों और जमीन से शरद पवार का पुराना नाता रहा है। उन पर जमीन से जुड़े मामले में भ्रष्टाचार के कई आरोप लग चुके हैं। शरद पवार और जयंत पाटिल समेत बैंक के अन्य डायरेक्टर के खिलाफ बैंकिंग और आरबीआई के नियमों का उल्लंघन करने के आरोप लग चुके है। इन्होंने कथित तौर पर चीनी मिल को कम दरों पर कर्ज दिया था और कर्जा चुकाने में असमर्थ दोषियों की संपत्तियों को कोड़ियों के भाव बेच दिया था। इसके अलावा उनपर यह भी आरोप लगाया गया था कि इन संपत्तियों को बेचने, सस्ते लोन देने और उनका पुनर्भुगतान नहीं होने से बैंक को 2007 से 2011 के बीच करीब 1,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था।

वहीं महाराष्ट्र कैडर के पूर्व आईपीएस अफसर और आरटीआई कार्यकर्ता वाईपी सिंह ने आरोप लगाया था कि शरद पवार ने अपने भतीजे अजीत पवार के साथ मिलकर 348 एकड़ जमीन 2002 में निजी कंपनी लेक सिटी कॉर्पोरेशन (अब लवासा कॉर्पोरेशन) को मात्र 23 हजार रुपये महीने की दर पर 30 साल के लिए लीज पर दिला दी थी।

महाराष्ट्र के पूर्व उप मुख्यमंत्री और तत्कालीन वित्त मंत्री रहे अजीत पवार उस समय उक्त सहकारी [cooperative] बैंक के डायरेक्टर थे। नाबार्ड ने महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव सोसायटी अधिनियम के तहत इस मामले की जांच कर अपनी रिपोर्ट सौंपी, जिसमें पवार और अन्य लोगों को बैंक घोटाले का आरोपी बनाया गया था।

ऐसा लग रहा है कि महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे सरकार एनसीपी मुखिया पर कुछ अधिक ही मेहरबान है। हालांकि अब यह पूरा मामला अब तूल पकड़ता नजर आ रहा है और अब भाजपा ने सरकार के वसंतदादा शुगर इंस्टीट्यूट को सस्ते रेट पर देने के मामले पर सवाल खड़े किए हैं।

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