राजनीति में घुसने वाले खिलाड़ियों को द्रविड़ और गोपीचंद से सीख लेनी चाहिए

राहुल द्रविड़

हाल ही में बैडमिंटन खिलाड़ी साइना नेहवाल बीजेपी में शामिल हुई। उससे पहले भी कई खिलाड़ी अपने कैरियर के अंतिम पड़ाव में किसी न किसी राजनीतिक पार्टी को जॉइन कर चुके हैं। सचिन तेंदुलकर और एमसी मैरी कॉम को तो राज्य सभा सांसद भी बनने का मौका मिला लेकिन उसका परिणाम कुछ नहीं आया। परंतु कुछ खिलाड़ी ऐसे हैं जो राजनीति के पचड़े में नहीं पड़ भविष्य के खिलाड़ियों को तराशने का काम करते हैं। राहुल द्रविड़ और पुल्लेला गोपीचन्द इसके प्रमुख उदाहरण हैं। ये दोनों ही अन्य खिलाड़ियों के लिए आदर्श के रूप में देखे जा सकते हैं।

पिछले कुछ वर्षों में विजेंदर सिंह, बाईचुंग भूटिया, बबीता फोगाट सहित अन्य खिलाड़ियों ने राजनीति हाथ आजमाने की कोशिश की है। कुछ लोगों ने पद पाने के लिए तो कुछ ने देश की सेवा करने के लिए। अगर सफल राजनेता के रूप में खिलाड़ियों को देखे तो पूर्व केंद्रीय मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ही एकमात्र खिलाड़ी दिखते हैं जिन्होंने एक राजनेता के रूप में काफी सफलता पायी है।

सचिन और मैरी कॉम को राज्य सभा में नामित किया गया लेकिन इन दोनों ने अपने पद का कोई सही उपयोग नहीं किया। राज्यसभा में अपने छह साल के कार्यकाल में सचिन तेंदुलकर की उपस्थिति सिर्फ 8 प्रतिशत थी, जबकि मैरी कॉम की उनके कार्यकाल के पहले दो वर्षों में उपस्थिति 53 प्रतिशत है। संसद में मास्टर ब्लास्टर अपने पहले वर्ष के बजट और शीतकालीन सत्रों में एक भी दिन उपस्थित नहीं हुए, जबकि मानसून सत्र में उनकी उपस्थिति 5 प्रतिशत थी। यह दर्शाता है कि संसद के लिए नामांकित इतने बड़े खिलाड़ी भी अपने नाम के अनुरूप समाज को लाभ नहीं पहुंचाते हैं।

वहीं दूसरे खिलाड़ियों की बात करे तो विजेंद्र सिंह और बबीता फोगाट का भी कोई अच्छा रिकॉर्ड नहीं रहा है।

दूसरी तरफ देखें तो द वाल के नाम से मशहूर राहुल द्रविड़ और पुल्लेला गोपीचन्द ने दुनिया को यह दिखाया है कि एक खिलाड़ी रिटायरमेंट के बाद भी देश का नाम रौशन कर सकता है। राहुल द्रविड़ सफलतापूर्वक भारतीय क्रिकेट टीम (अंडर -19) के कोच रहे। इसी टीम ने विश्व कप भी जीता, जबकि गोपीचंद ने साइना नेहवाल और पीवी सिंधु सहित दुनिया के कुछ सर्वश्रेष्ठ शटलरों को प्रशिक्षित किया। राहुल द्रविड़ अब National Cricket Academy के प्रमुख के रूप में काम कर रहे हैं जहां युवा क्रिकेटरों को अपने गाइडेंस में नई ऊंचाई तक पहुंचने में मदद कर रहें हैं।

दिलचस्प बात यह है कि कॉमनवेल्थ के स्वर्ण पदक विजेता अभिनव बिंद्रा के साथ राहुल द्रविड़ और पुल्लेला गोपीचंद को Olympic medal hopes का चयन करने के लिए एक नई समिति में शामिल किया गया है। यह समिति वर्ष 2020 ओलंपिक में भारत की पदकों की संख्या बढ़ाने के लिए बनाई गई है और इसे “Target Mission Olympic Podium Scheme” का नाम दिया जाएगा।

पुल्लेला गोपीचंद ने देश को दो सबसे बेहतरीन शटलर यानि साइना नेहवाल और पीवी सिंधु को प्रशिक्षित करके देश का नाम रोशन किया है। वर्ष 2001 में ऑल इंग्लैंड चैम्पियनशिप जीतने के बाद पुल्लेला गोपीचंद ने हैदराबाद में गचीबोवली में अपनी अकादमी शुरू की, जिसमें चैंपियन शटलरों को तैयार किया गया। इसके लिए उन्हें अपने घर को गिरवी रखना था। यह अलग बात है, लेकिन आज वह अपने द्वारा सिखाये गए शटलरों को मैदान में सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों के खिलाफ प्रतिस्पर्धा करते हुए देखकर बहुत गर्व महसूस करते होंगे। भारत जैसे क्रिकेट प्रेमी देश में भी रियो ओलंपिक के दौरान बैडमिंटन मैचों का हो-हल्ला देखना अविश्वसनीय था।

साइना नेहवाल से लेकर पीवी सिंधु तक, पी कश्यप से लेकर के श्रीकांत तक, गोपीचंद ने अपने शटलरों को विश्व स्तर, विशेष रूप से चीन के खिलाड़ियों के खिलाफ टक्कर देने के लिए प्रशिक्षित किया है। यह गोपीचंद की मेहनत ही है कि अब चीन के खिलाड़ियों को हराना कठिन कार्य नहीं है।

वहीं दूसरी ओर, राहुल द्रविड़ ने भी कभी लाईमलाइट का पीछा नहीं किया। उन्हें भारतीय क्रिकेट के सीनियर टीम के कोच बनने का मौका मिल रहा था लेकिन उन्होंने माना कर दिया। इसकी जगह राहुल द्रविड़ ने तत्कालीन बीसीसीआई अध्यक्ष अनुराग ठाकुर से अनुरोध किया था कि उन्हें भारतीय अंडर -19 टीम का कोच बनाया जाए।

राहुल द्रविड़ के उस निर्णय ने एक बार फिर साबित कर दिया कि क्यों उन्हें खेल के gentle man में से एक माना जाता है। द्रविड़ की तरह ही गोपीचंद भी लाइमलाइट से दूर रहना पसंद करते हैं। यदि ये दोनों अपने खिलाड़ियों से सौ प्रतिशत मांगते है, तो वह स्वयं भी उसी अनुशासन का पालन करते हैं।

किसी भी खिलाड़ी को खेल के उत्थान के लिए काम करना चाहिए क्योंकि वह खेल को अच्छे से समझते हैं न कि राजनीति जिसमें उनका हाथ तंग होता है। कुल मिलाकर राजनीति में आने वाले खिलाड़ियों का प्रदर्शन निराशाजनक रहा है, जबकि द्रविड़ और गोपीचंद जैसे खिलाड़ी राजनीति में शामिल हुए बिना ही अपने समर्पण से अपनी उपयोगिता और महत्व साबित कर चुके हैं। राजनेताओं के साथ-साथ खिलाड़ियों को भी इन दोनों से सीखना चाहिए कि समाज में कैसे पहचान बनाई जाए।

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