राजदीप, रविश और सुधीर चौधरी- जाने कैसे तीनों पत्रकारों ने दिल्ली हिंसा की ग्राउंड रिपोर्टिंग की!

सुधीर चौधरी

सीएए विरोध के नाम पर शाहीन बाग को दोहराने का प्रयास देखते ही दखते ही हिंसक हो गया, जिसकी चपेट में पूर्वोत्तर दिल्ली के कई इलाके आये हैं। इस हिंसा में दिल्ली पुलिस के एक हेड कांस्टेबल समेत 35 से ज़्यादा लोग मारे जा चुके हैं और 250 से ज़्यादा लोग घायल हो चुके हैं। परंतु जिस तरह से पत्रकारों ने इस घटना और इससे जुड़े तथ्यों को कवर किया है, उससे दो विचारधाराएँ स्पष्ट दिखाई दे रही हैं। एक तरफ जहां सुधीर चौधरी जैसे पत्रकार अपने कर्तव्य का पालन कर पत्रकारिता की एक नई मिसाल पेश कर रहें है, तो वहीं दूसरी तरफ रवीश कुमार, राजदीप सरदेसाई जैसे पत्रकार ऐसी स्थिति में भी अपने घृणित एजेंडे से बाज़ नहीं आ रहे हैं।

दरअसल, सुधीर चौधरी ने हाल ही में पूर्वोत्तर दिल्ली से संबन्धित दंगों की कवरेज करते हुए दंगा ग्रस्त इलाकों का दौरा किया। यहां उन्होंने बेहद संवेदनशीलता के साथ बिना किसी लाग लपेट के मामले की रिपोर्टिंग की। उनके एक ट्वीट से उनकी पत्रकारिता साफ झलक रही थी, जहां उन्होंने स्पष्ट रूप से बताया, “दिल्ली के दंगों पर अपनी ग्राउंड रिपोर्टिंग के दौरान मैंने किसी भी श्रोता का नाम नहीं पूछा। सभी इस त्रासदी में पीड़ित थे। और आपको एक दंगा पीड़ित का नाम क्यों पूछना है? अपनी कुत्सित राजनीति के लिए?” –

दंगों में इंटेलिजेंस ब्यूरो के एक अफसर अंकित शर्मा की हत्या के बारे में जब सुधीर सच जानने के लिए मृत अंकित के परिवार से मिले, तो भी उन्होंने कोई भी ऐसा प्रश्न नहीं पूछा, जिससे पत्रकारिता कम और अवसरवादिता ज़्यादा लगे। उन्हीं के एक अन्य ट्वीट के अनुसार, “मैं अंकित शर्मा के घर गया लेकिन उसकी माँ का दर्द देखकर मेरे होंठ जैसे सिल गए। मैं उनसे कुछ भी नहीं कह पाया। बस वहां खड़ा रह गया और फिर चुपचाप वापस चला आया।”

 

सुधीर चौधरी उन चंद पत्रकारों में शामिल हैं, जो सस्ती लोकप्रियता के लिए पत्रकारिता का सौदा नहीं करते। भले ही 2000 रुपये के नोट पर उनके विचार विवाद का विषय बने हों, परंतु उनकी पत्रकारिता पर कम ही संदेह किया जा सकता है। ये वही सुधीर चौधरी हैं, जिन्होंने उस समय बंगाल के दंगों पर प्रकाश डाला था, जब कोई मीडिया हाउस इसे कवर करने की हिम्मत नहीं कर रहा था। ये वही सुधीर चौधरी हैं, जिन्होंने कठुआ केस में वामपंथियों की कुटिल नीतियों का भंडाफोड़ करते हुए विशाल जंगोत्रा को न केवल निर्दोष सिद्ध कराया, अपितु उसे रिहा करवाने में भी एक अहम भूमिका निभाई।

परंतु दूसरी ओर रवीश कुमार और राजदीप सरदेसाई जैसे पत्रकारों ने अपनी पत्रकारिता से सिद्ध कर दिया कि वे क्यों जनता में उपहास के पात्र बनते हैं। दंगों में ये स्पष्ट हो चुका है कि किस संप्रदाय के लोगों ने उत्पात मचाया है, किस समुदाय ने सबसे ज़्यादा गोलियां चलायी है, परंतु इससे रवीश कुमार को क्या? उनके लिए एजेंडा ऊंचा रहे हमारा। यहाँ पर ही इस पत्रकार ने अपनी घृणित और कुत्सित मानसिकता का परिचय देते हुए हिन्दू आतंकवाद का सिद्धान्त प्रचारित करने का प्रयास किया। रवीश के अनुसार दंगों में पकड़े जाने वाला आतंकी मोहम्मद शाहरुख नहीं, बल्कि अनुराग मिश्रा है, और ये हिन्दू आतंकवाद का परिचायक है। विश्वास नहीं होता तो इस वीडियो को देख लीजिये –

परंतु जल्द ही इस झूठ का पर्दाफाश हो गया और सोशल मीडिया पर रवीश कुमार को यूजर्स ने जमकर धोया। स्वयं अनुराग मिश्रा ने स्पष्टीकरण जारी करते हुए न सिर्फ इन अफवाह फैलाने वाले लोगों को लताड़ा, बल्कि रवीश कुमार को कोर्ट तक घसीटने की भी बात कही।

परंतु रवीश कुमार अकेले नहीं थे। राजदीप सरदेसाई भी गिद्ध की भांति इन दंगों में लाभ कमाने का जरिया ढूंढ रहे थे। राजदीप के इरादे उनके एक ट्वीट से स्पष्ट झलकते हैं, जिसमें वो लिखते हैं, “दंगे में 35 लोग मारे गए हैं पर दक्षिणपंथी इंटरनेट आर्मी के लिए केवल अंकित शर्मा मायने रखता है क्योंकि शक की सुई आम आदमी पार्टी पार्षद ताहिर हुसैन पर है। जिस दिन हम हर मुस्लिम या हिन्दू पीड़ित के लिए न्याय की मांग करेंगे, उस दिन एक नया और बेहतर भारत बनेगा।”

परंतु राजदीप की पोल खुलने में ज़्यादा समय भी नहीं लगा। सोशल मीडिया यूजर्स ने उन्हीं के कवरेज के क्लिप्स दिखाते हुए राजदीप के ढोंग को पूरी तरह उजागर कर दिया। एक यूजर ने इंडिया टुडे की कवरेज रिपोर्ट की, जिसमें राजदीप दंगा ग्रस्त इलाकों के निवासियों से पूछताछ कर रहे थे। जहां निवासियों ने बताया कि कैसे बाहरी गुंडों ने इलाके में आकर गुंडई शुरू की, तो वहीं कपिल मिश्रा की भूमिका पर निवासियों ने जमकर राजदीप को लताड़ा, और हर बार पूछे जाने पर एक ही जवाब था, “कपिल मिश्रा की दंगा भड़काने में कोई भूमिका नहीं थी।”

एक अन्य यूजर ने राजदीप के डिलीटेड ट्वीट को सामने शेयर करते हुए पूछा, “राजदीप, यह दोहरा मापदंड क्यों? कट्टरपंथी ने धमका दिया, इसलिए?” –

पूर्वोत्तर दिल्ली में भड़के दंगों ने एक बार फिर सिद्ध किया है कि कैसे रवीश कुमार और राजदीप सरदेसाई जैसे पत्रकारों ने सिर्फ अपने एजेंडे के लिए पत्रकारिता और नैतिकता की बलि चढ़ाने से भी कोई परहेज़ नहीं किया, तो वहीं कुछ सुधीर चौधरी जैसे लोग भी हैं, जिनके लिए आज भी निष्पक्ष पत्रकारिता सर्वोपरि है।

Exit mobile version