फिल्म फेयर अवार्ड्स-2020 की भारी विफलता के बाद पेश है TFI का फिल्म एंड फेयर अवार्ड!

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फिल्मफेयर अवार्ड्स एक बार फिर सुर्खियों में है, पर इस बार गलत कारणों से। ज़ोया अख्तर की फिल्म ‘गली बॉय’ ने इतिहास रचते हुए 13 फिल्मफेयर पुरस्कार जीते, जिसमें सर्वश्रेष्ठ फिल्म से लेकर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता और अभिनेत्री तक के सभी पुरस्कार इसी फिल्म के कलाकारों को नवाज़े गए।

Genuine टैलेंट को नकार कर ‘गली बॉय’ को पॉपुलर कैटेगरी और ‘आर्टिक्ल 15’ जैसी फिल्म को क्रिटिक्स कैटेगरी में सम्मानित किया गया, और तो और अवार्ड Jury को फिल्म ‘केसरी’ के ‘तेरी मिट्टी’ और कबीर सिंह के ‘बेखयाली’ जैसे गीतों से ज़्यादा प्रिय गीत ‘गली बॉय’ का ‘अपना टाइम आएगा’ लगा!

पर भाई लोग, फिल्मफेयर शुरू में ऐसा नहीं था। इक्के-दुक्के अवार्ड छोड़ दें तो पहले 1996 तक, और फिर 2011-2018 तक फिल्मफेयर वास्तविक प्रतिभा को ही ज़्यादा सम्मान देता था। इसीलिए एक नज़र डालते हैं उन लोगों पर, जो वास्तव में फिल्मफेयर के हकदार थे। इन्हें टीएफ़आई के फिल्मफेयर अवार्ड्स कहें सोशल मीडिया की चॉइस वाली फिल्मफेयर अवार्ड्स, पर ये उन लोगों के लिए ही है, जिन्होंने पिछले वर्ष अपने काम से बॉलीवुड सिनेमा में एक व्यापक बदलाव किया है।

टेक्निकल अवार्ड्स –

सर्वप्रथम हम बात करते हैं टेक्निकल पुरस्कारों की। जिस जगह फिल्मफेयर पुरस्कार बांटने वालों को सबसे ज़्यादा गालियां पड़नी चाहिए, वो है टेक्निकल पुरस्कारों में की गयी बंदरबाट पर। किसी फिल्म की वीएफ़एक्स चाहे हॉलीवुड स्टैंडर्ड की क्यों न हो, टेक्निकल अवार्ड्स भी उसी को दिए गए जिसके पास या तो नेपोटिज़्म का टैग हो या धर्मा प्रोडक्शन से क्लोज़ कनेक्शन।

यदि कोई वास्तव में टेक्निकल अवार्ड्स का उचित दावेदार था, तो वो थी आदित्य धार द्वारा निर्देशित ‘उरी – द सर्जिकल स्ट्राइक’। 2016 में उरी में हुए आतंकी हमले और उसके प्रयुत्तर में एलओसी के पार प्रथम क्रॉस बार्डर सर्जिकल स्ट्राइक्स पर आधारित ये फिल्म देखकर कौन विश्वास करता कि इसके वीएफ़एक्स, सिनेमैटोग्राफी, एडिटिंग और बैक्ग्राउण्ड स्कोर सहित पूरी फिल्म को महज 25 करोड़ रुपये में निर्मित किया गया था। इसके वीएफ़एक्स, एक्शन तो हॉलीवुड फिल्मों को भी टक्कर देते हुए नज़र आए। ऐसे में ‘उरी – द सर्जिकल स्ट्राइक’ को निर्विवाद रूप से सर्वश्रेष्ठ सिनेमैटोग्राफी, सर्वश्रेष्ठ  बैकग्राउण्ड स्कोर और सर्वश्रेष्ठ वीएफ़एक्स के पुरस्कार मिलने चाहिए थे।

Artistic अवार्ड्स –

अब आते हैं आर्टिस्टिक अवार्ड्स पर। एक बार को ‘गली बॉय’ पर केवल एक्टिंग अवार्ड लुटाते तो भी समझ में आ जाता कि ऑस्कर से भगाये जाने का compensation है। परंतु जिस तरह से अधिकांश आर्टिस्टिक अवार्ड्स इस फिल्म पर लुटाये गए, उससे पूरा सोशल मीडिया, और अधिकांश सिनेमा प्रेमी बौखला गए।

यदि वास्तविक योग्यता को प्राथमिकता दी जाती, तो ‘गली बॉय’ को इस सूची के किसी भी पुरस्कार में नामांकन तक नहीं मिलना चाहिए था, पुरस्कार तो बहुत दूर की बात। यदि गीतों की बात की जाये, तो वास्तव में सर्वश्रेष्ठ गीत के पुरस्कार के लिए केवल एक ही व्यक्ति हकदार थे। वो थे मनोज शुक्ल उर्फ मनोज मुंतशिर, जिन्होंने ‘तेरी मिट्टी’ जैसी मधुर, मार्मिक गीत की रचना की। आखिर ऐसे गीत को कोई कैसे ठुकरा सकता है, जिसने सिनेमा हाल में बैठे लगभग हर दर्शक को रुला दिया हो।

सर्वश्रेष्ठ गायक [मेल] के लिए कई अच्छे दावेदार, पर उनमें सर्वोच्च दो ही लोग थे। एक ओर जहां रिमिक्स के दौर में सचेत टंडन की आवाज़ में ‘बेखयाली’ ने पूरे देश को कबीर सिंह के गीतों का दीवाना बना दिया, तो वहीं मनोज मुंतशिर के शब्दों में प्रतीक बाचन उर्फ बी प्राक ने अपनी मधुर आवाज़ से जान डाल दी। इसीलिए यदि फिल्मफेयर अवार्ड फॉर बेस्ट प्लेबैक सिंगर मेल का वास्तव में कोई हकदार था, तो वो संयुक्त रूप से सचेत टंडन और बी प्राक थे। संगीत के लिए निर्विरोध रूप से ‘कबीर सिंह’ को सर्वश्रेष्ठ म्यूजिक एलबम का पुरस्कार मिलना चाहिए, क्योंकि घटिया रिमिक्स के दौर में ओरिजिनल और कर्णप्रिय संगीत देना कोई मज़ाक की बात नहीं है।

‘गली बॉय’ को 13 अवार्ड मिलने पर जितनी गालियां पड़ी, उसकी आधी भी सर्वश्रेष्ठ प्लेबैक सिंगर [फ़ीमेल] के लिए नहीं पड़ी। साढ़े पांच मिनट के गीत ‘घुंघरू’ में शिल्पा राव का योगदान 2 मिनट का भी नहीं था, परंतु उसे सर्वश्रेष्ठ प्लेबैक सिंगर के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वास्तव में यदि कोई इस पुरस्कार की अधिकारी थी, तो वह थी श्रेया घोषाल, जिनके गीत ‘यह आईना’ को उतना सम्मान नहीं मिला, जितना मिलना चाहिए था। इस वर्ष के कई गीतों में ‘यह आईना’ सबसे कमतर आंके गए गीतों में से माना जाता है।

Writing Awards –

अब आते हैं उन अवार्ड्स पर, जिन्हें वास्तव में सबसे ज़्यादा अटेन्शन देनी चाहिए, और जिनका लगभग हर साल उपेक्षा की जाती है, और वे हैं राइटिंग अवार्ड्स। इस श्रेणी में भी ‘गली बॉय’ और ‘आर्टिक्ल 15’ पर बेहिसाब प्यार लुटाया गया, जबकि ‘छिछोरे’, ‘बाला’, ‘द ताशकन्द फाइल्स’ और ‘सेक्शन 375’ को कोई भाव तक नहीं दिया गया।

सर्वश्रेष्ठ स्टोरी के लिए यदि कोई वास्तव में विजेता होना चाहिए था, तो वो थी ‘सेक्शन 375’। 2016 में ‘पिंक’ ने जहां यौन शोषण और उसे लेकर भारतीय समाज की प्रतिक्रिया पर प्रकाश डाला था, तो वहीं ‘सेक्शन 375’ ने इसके ठीक उलट यौन शोषण से संबंधी कानून के दुरुपयोग, मीडिया ट्रायल और दुष्कर्म के झूठे मामलों के दुष्परिणाम पर बिना किसी लाग लपेट के प्रकाश भी डाला और भारतीय समाज के दोहरे मापदंडों पर उंगली उठाने का साहस भी किया।

जिस तरह से इस फिल्म ने एक दो दृश्यों को छोड़कर अपने मूल विषय से ज़रा भी इतर नहीं हुई, उसके लिए ये फिल्म निर्विरोध रूप से सर्वश्रेष्ठ स्टोरी और सर्वश्रेष्ठ स्क्रीनप्ले की हकदार बनती है। हर फिल्म की जान माने जाने वाले डायलॉग के संबंध में इस वर्ष एक से बढ़कर एक दावेदार थे, पर निर्विरोध रूप से यदि कोई एक फिल्म इस पुरस्कार का हकदार है, तो वो है ‘बाला’, जिसके चुटीले संवादों ने न सिर्फ दर्शकों को खिलखिलाने पर विवश किया, अपितु व्यक्ति को छोटे-मोटे परेशानियों से हार न मानने के लिए भी प्रेरणा दी।

अल्टिमेट अवार्ड्स –

और अब आतें हैं उन अवार्ड्स पर, जो फिल्मफेयर की वास्तविक शान माने जाते हैं। इसी जगह ‘गली बॉय’ ने मात खाई है, क्योंकि एक भी विजेता वास्तविक रूप से उस अवार्ड के सच्चे दावेदार नहीं थे। ऐसा बिलकुल नहीं है कि रणवीर सिंह, आलिया भट्ट, अमृता सुभाष और सिद्धान्त चतुर्वेदी बेकार एक्टर हैं, परंतु उनके चरित्र अपने-अपने अवार्ड्स के योग्य बिलकुल नहीं थे।

सिद्धान्त चतुर्वेदी ने गली बॉय में निस्संदेह बेहतरीन अदाकारी की, और वे उन चंद कारणों में शामिल थे, जिनके कारण ‘गली बॉय’ एक वन टाइम वॉच योग्य रही। ऐसे में उन्हें सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का नहीं, सर्वश्रेष्ठ मेल डेब्यू का रोल संयुक्त रूप से देना चाहिए था। अब यदि आप सोच रहे हैं कि सर्वश्रेष्ठ मेल डेब्यू के लिए दूसरा हकदार कौन है, तो वे हैं विशाल जेठवा, जिन्होंने ‘मर्दानी 2’ में खल चरित्र सनी के किरदार को ऐसा आत्मसात किया कि उसके ऑन स्क्रीन व्यक्तित्व से आप को नफरत करने लगेंगे।

सर्वश्रेष्ठ डेब्यू निर्देशक का अवार्ड निस्संदेह आदित्य धार को जाना चाहिए, जिन्होंने ‘उरी – द सर्जिकल स्ट्राइक’ से अपने पहले ही इनिंग्स में धाक जमा दी। इस फिल्म को देख किसी को भी विश्वास नहीं होगा कि यह आदित्य धार की पहली फिल्म है, और शायद इसीलिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ निर्देशक के राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है।

अब बात करतें हैं पॉपुलर कैटेगरी की, तो बेस्ट एक्टर के एक नहीं, दो हकदार हैं। आप कुछ भी कहें, पर दोनों अपनी अपनी जगह हीरो थे। एक सेर, तो दूसरा सवा सेर। बेस्ट एक्टर संयुक्त रूप से ‘उरी – द सर्जिकल स्ट्राइक’ में मेजर विहान सिंह शेरगिल के लिए विकी कौशल को और ‘कबीर सिंह’ के शीर्षक कलाकार के लिए शाहिद कपूर को मिलना चाहिए था।

जहां मेजर विहान के रूप में वर्षों बाद विकी ने बॉलीवुड की ओर से एक परिपक्व आर्मी अफसर का रोल निभाया, तो वहीं ‘कबीर सिंह’ में एक व्यक्ति के अपने व्यक्तित्व से लड़ाई को शाहिद कपूर ने बड़ी तत्परता से निभाया है। आप बेशक ‘कबीर सिंह’ के व्यक्तित्व पर सवाल उठा सकतें है, परंतु एक फिल्मी चरित्र के व्यक्तित्व के पीछे पूरे फिल्म को गलत लाइट में दिखाना और उसे तत्परता से निभाने वाले व्यक्ति सवाल खड़े करना कहाँ का न्याय है, ये हमें समझ में ही नहीं आता।

क्रिटिक्स के लिहाज से सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के लिए यदि वास्तव में कोई हकदार था, तो वे थे अक्षय खन्ना, जिन्होंने ‘सेक्शन 375’ में बचाव पक्ष के अधिवक्ता तरुण सलूजा के तौर पर दर्शकों को झकझोर कर रख दिया। आयुष्मान खुराना बुरे एक्टर नहीं हैं, परंतु अक्षय खन्ना के रोल के सामने उनका ‘आर्टिक्ल 15’ का किरदार नगण्य है।

सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता के तौर पर एक व्यक्ति को पूरी तरह से अनदेखा किया गया, और वो हैं ‘केसरी’ में अंतिम सांस तक लड़ने वाले सिख सिपाही गुरमुख सिंह का रोल निभाने वाले सुमित सिंह बसरा। अपने सीमित रोल में जिस तरह सुमित ने एक गहरा प्रभाव और फिल्म के क्लाइमैक्स में जिस तरह वे निखर कर सामने आए, वो अपने आप में एक अद्भुत दृश्य था। यदि कोई वास्तव में सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का हकदार था, तो वो थे सुमित सिंह बसरा, जिन्होंने ‘केसरी’ में अपने रोल से एक अमिट छाप छोड़ दी।

सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिए इस वर्ष बहुत कम विकल्प उपलब्ध थे, परंतु एक अभिनेत्री ऐसी थी, जिसका नाम न तो नामांकन सूची में आया, और न ही उसके बारे में किसी ने चर्चा करने की सोची। ये श्वेता बसु प्रसाद हैं, जिन्होंने ‘द ताशकन्द फाइल्स’ में अपने अभिनय से सभी को चौंकाया, और इस फिल्म के जरिए लाल बहादुर शास्त्री की रहस्यमयी मृत्यु पर भी प्रकाश डाला।

फिल्म के अंत में जिस तरह श्वेता के चरित्र रागिनी फूले ने अपने वक्तव्य से सभी को झकझोर दिया, वो वास्तव में बहुत कम अभिनेत्रियां ही कर पाती। काश वो श्वेता बसु प्रसाद न होकर श्वेता कपूर या श्वेता भट्ट होती, तो शायद एक बार उन्हे भी ‘सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री’ के लिए कन्सिडर किया जाता।

इसी तरह से पॉपुलर कैटेगरी के अनुसार सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार आलिया भट्ट के बजाय ‘मर्दानी 2’ में शिवानी शिवाजी रॉय के दमदार रोल के लिए रानी मुखर्जी को मिलना चाहिए था।

सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री के लिए भी सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री की भांति काफी कम विकल्प उपलब्ध थे। परंतु एक अभिनेत्री थीं, जिन्होंने टीवी पर अपनी छवि के ठीक उलट अपनी पहली फिल्म में अभिनय से एक गहरा प्रभाव डाला। यह थी अंकिता लोखण्डे, जिन्होंने ‘मणिकर्णिका’ में झलकारीबाई के रोल में एक गहरा प्रभाव डाला।

अब आते हैं सर्वश्रेष्ठ निर्देशक की ओर। इस पद के लिए सच्चे मायनों में एक नहीं, कई दावेदार थे। परंतु एक आम स्टोरी को बिना पॉलिटिकल correctness की परवाह किए, और बिना किसी लाग-लपेट के दिखाने की कला बहुत कम लोगों में होती है। ऐसे में सर्वश्रेष्ठ निर्देशक के लिए यदि संदीप रेड्डी वंगा को पुरस्कार मिलता, तो फिल्मफेयर की प्रतिष्ठा में कोई गिरावट नहीं आती, ये और बात है कि कुछ लोगों के कण-कण से ज़बरदस्त धुआँ निकलता।

तो अब आ गई है वो घड़ी, जब आप सब जानना चाहते हैं कि कौन सी फिल्म है इस साल की सर्वश्रेष्ठ फिल्म। 2019 में ‘गली बॉय’ और ‘आर्टिक्ल 15’ ही सब कुछ नहीं था। इसके अलावा भी कई फिल्म्स थे, जो अपने अनोखे कंटेंट और अपने विषय के कारण लोगों के मन मस्तिष्क में छा गए। इसलिए बेस्ट फिल्म का अवार्ड मिलना चाहिए था –‘उरी द सर्जिकल स्ट्राइक’ को।

हां हां पता है, कई लोग बोलेंगे कि यह तो प्रो बीजेपी मूवी है, ये हाईपर नेशनलिस्ट मूवी है। परंतु यदि इसे इन चश्मों से हटकर देखें, तो ये भारतीय सेना और उनके शौर्य को सलाम करती एक सच्ची मूवी है, जिसमें मूल विषय के साथ कोई समझौता नहीं किया गया है। ये हर मामले में हिन्दी सिनेमा के सर्वश्रेष्ठ वॉर फिल्मों में से एक गिनी जाएगी, और इतिहास में ‘बार्डर’, ‘लक्ष्य’, ‘विजेता’ जैसी फिल्मों के बाद ‘उरी – द सर्जिकल स्ट्राइक’ का नाम भी गर्व से लिया जाएगा।

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