नेपोलियन ने एक बार कहा था कि मैं दुश्मनों से अधिक 3 विरोधी समाचारपत्रों से डरता हूँ। नेपोलियन जैसे योद्धा का यह डर गलत नहीं था क्योंकि जो नुकसान विरोधी समाचार पत्र कर सकते हैं वो कोई नहीं कर सकता है। भारत में भी यही देखने को मिल रहा है। किसी गलत खबर का कितना बड़ा नुकसान हो सकता है यह CAA विरोधी प्रदर्शनों में स्पष्ट देखा जा सकता है।
जब CAA पारित हुआ तब यह गलत खबर फैलाई गयी कि मुस्लिम वर्ग अपनी नागरिकता को खो देगा। आज तक किसी की नागरिकता तो नहीं गयी लेकिन आज इस गलत खबर की भारी कीमत चुकानी पड़ रही है। देश जल रहा है, कोई भी ऐसा राज्य नहीं है जहां इस मामले को लेकर हिंसा न फैली हो।50 से अधिक मौत हो चुकी है।
आखिर ऐसा क्या था CAA में जिससे अचानक भारत के मुस्लिम भड़क गए? यह कानून कोई नया कानून नहीं था बल्कि पुरानी नागरिकता कानून में ही संशोधन किया गया था। BJP की सरकार ने संशोधन करते हुए एक भाग जोड़ा था कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से धार्मिक प्रताड़ना का कारण भाग कर आए हिंदुओं, सिखों, इसाइयों, जैन, को नागरिकता दी जाएगी। इस नागरिकता का कटऑफ डेट 31 दिसंबर 2014 था। इसके साथ ही इसमें एक और संशोधन था कि भारत की नागरिकता पाने के लिए पहले 11 वर्ष भारत में रहना पड़ता था, उसे घटा कर 5 वर्ष कर दिया गया था। यह संशोधन ILP यानि Inner line Permit वाले राज्यों में लागू नहीं होगा।
बस इतना सा ही संशोधन था। यह संशोधन भारत के किसी मुस्लिम की तो छोड़िए, किसी नागरिक से भी संबंध नहीं रखता। फिर क्यों बवाल खड़ा किया गया?
विपक्षी पार्टियों और लिबरल मीडिया ने पहले तो इस संसोधन को मुस्लिम विरोधी पेश किया और यह झूठ फैलाया कि इसमें मुस्लिम को क्यों नहीं शामिल किया गया? उन्होंने यह नहीं बताया कि यहाँ पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के मुस्लिमों की बात की गयी है। दिल्ली, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और अन्य क्षेत्रों में रहने वाले मुस्लिमों को यह गलतफहमी हो गयी कि उन्हें शामिल नहीं किया गया है इसी वजह से उनकी नागरिकता चली जाएगी। इस एक झूठी खबर ने अगले दो महीनों तक इतना तांडव मचाया कि आज यह विरोध हिन्दू-मुस्लिम में परिवर्तित हो चुका है।
CAA के विरुद्ध सबसे पहले हिंसा असम में हुई थी लेकिन जैसे ही वहाँ लोगों को इस कानून के बारे में पता चला असम की हिंसा समाप्त हो चुकी थी। असम में हिंसा का प्रमुख कारण कटऑफ डेट था। असम को लोगों को इस बात से भड़काया गया था कि बांगलादेश से आए सभी को नागरिकता दे दी जाएगी। हिंसा भड़काने में PFI का हाथ भी था। कई लोग भी पकड़े गए थे। असम में हिंसा के दौरान 4 लोगों की मौत हुई थी। जैसे ही असम में हिंसा शांत हुई, विपक्ष घबरा गया और फिर दिल्ली पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक समेत कई राज्यों में हिंसा को भड़काने लगे और लोगों में इस कानून का दुष्प्रचार करने लगे।
12 दिसंबर को राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने इस कानून को नहीं लागू करने का ऐलान कर दिया। इसके बाद हिंसा और भड़क उठी। दिल्ली, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में एक साथ यह हिंसक प्रदर्शन भड़का। यूपी में 15 मौतें हुई लेकिन कोई भी मौत पुलिस की गोली से नहीं हुई थी। यानि स्पष्ट था कि प्रदर्शन के दौरान पत्थर के साथ दंगाई बंदूक और पिस्टल भी चला रहे थे। पश्चिम बंगाल में तो ट्रेने जला दी गयी थीं। इसके बाद दिल्ली को केंद्र बनाया गया। जामिया नगर, सीलमपुर में हिंसक प्रदर्शन किए गए। पेट्रोल बम से हमला किया गया। बच्चों के स्कूल बस तक को नहीं छोड़ा गया। इसके बाद सरकार को झुकाने के लिए शाहीन बाग में रोड को ब्लॉक कर 45 दिन तक धारना किया गया। एक झूठ और इतना नुकसान, ना सिर्फ देश का बल्कि आम जनता और छोटे व्यापारियों का। इसका अंदाजा लगाना मुशकिल है। जब हिंसक प्रदर्शनकारियों ने देखा कि सरकार नहीं मानने वाली है तो जाफराबाद में हिंसा का तांडव किया गया जिसमें 34 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। इसमें एक IB अफसर भी शामिल है।
यह कानून सिर्फ तीन पड़ोसी देशों में धार्मिक आधार पर उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों को नागरिकता प्रदान करने की बात कहता है, तो इससे इन पार्टियों को क्या परेशानी हो सकती है? इस कानून का विरोध करने का सीधा मतलब यह है कि आप इस कानून के तहत भारत की नागरिकता प्राप्त करने वाले हिंदुओं और अन्य गैर-मुस्लिमों से ईर्ष्या की भावना रखते हैं, क्योंकि भारत के मुसलमानों को इस कानून से कोई नुकसान है ही नहीं? बस राजनीतिक फायदे और केंद्र सरकार को निशाना बनाने के लिए ये भ्रामक खबरें फैलाई गयीं
इससे पता चलता है कि एक झूठ देश किस हद तक नुकसान पहुंचा सकता है।