अब विदेशी इमामों के लिए फ्रांस में कोई जगह नहीं, सरकार ने आतंकवाद के खिलाफ उठाया कदम

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यूरोप पिछले कई सालों से इस्लामिक आतंकवाद जैसी बड़ी समस्या का शिकार होता आ रहा है। एक धर्म में कट्टरवाद की समस्या से यूरोप में कई मासूम लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। फ्रांस भी इस कट्टरवाद का शिकार रह चुका है। नवंबर 2015 को पेरिस में हुए उन भयावह आतंकी हमलों को कौन भूल सकता है जब कई बम धमाकों में ISIS के आतंकियों द्वारा 130 लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था। हालांकि, देश में बढ़ रहे इस्लामिक अलगाव और कट्टरवाद से निपटने के लिए अब इमेनुएल मैक्रों के नेतृत्व में फ्रांस सरकार ने कई बड़े कदम उठाने का फैसला ले लिया है।

दरअसल, फ्रांस ने अपने देश में अब विदेशी इमामों के आने पर रोक लगा दी है, और फैसले पर राष्ट्रपति मैक्रों ने मुहर लगा दी है। बता दें कि फ्रांस में हर साल करीब 300 इमाम दुनियाभर के देशों से आते हैं। फ्रांस में ज्यादातर इमाम अल्जीरिया, मोरक्को और तुर्की से आते हैं और वे वहां जाकर मदरसों में पढ़ाते हैं। वर्ष 1977 में फ्रांस सरकार ने एक कार्यक्रम के तहत विदेशी इमामों को उनके देश में आकर मुस्लिमों को पढ़ाने को स्वीकृति दी थी, ताकि उनके देश में विदेशी संस्कृति को बढ़ावा दिया जा सके। अब फ्रांस सरकार ने इस कार्यक्रम को बंद करने का फैसला लिया है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक हर साल ये इमाम लगभग 80 हज़ार छात्रों को ‘शिक्षा’ देते हैं।

इमैनुएल मैक्रों ने कहा कि ये जरूरी नहीं है कि “सभी आतंकी मुस्लिम ही हों, लेकिन ज्यादातर मामलों में इस्लामिक आतंकवाद ही सामने आता है। इसलिए हमने ऐसा कदम उठाया है। मेरी सभी धर्मों के लोगों से अपील है कि फ्रांस की रक्षा करें। इस देश के कानून का पालन करें”।

फ्रांस सरकार अब चाहती है कि उनके देश के मुस्लिम धर्म की आड़ में देश के क़ानूनों का अपमान ना करें। अभी तुर्की से आने वाले इमामों द्वारा पढ़ाए जाने वाले सामग्री पर फ्रांस का कोई भी कानून लागू नहीं होता है, और वे तुर्की की संस्कृति की आड़ में फ्रांस में अलगाववाद को बढ़ावा देते हैं। इसके खिलाफ मैक्रों ने कड़े लहजे में बोलते हुए कहा कि उनके देश में तुर्की के कानून लागू नहीं हो सकते।

फ्रांस में ऐसा कानून तब पारित किया जा रहा है जब पास ही के जर्मनी में मुस्लिम लोग अपने मस्जिदों की सुरक्षा बढ़ाने के लिए आंदोलन कर रहे हैं क्योंकि उन्हें डर हैं कि जर्मनी के दक्षिणपंथी लोग मस्जिदों पर हमला कर देंगे। वर्ष 2014 की शुरुआत में मिडिल ईस्ट में ISIS का प्रभाव बढ्ने के बाद वहां से बड़ी संख्या में लोगों ने पलायन करना शुरू कर दिया, जिससे यूरोप के कई देशों में इम्मिग्रेशन की समस्या बढ़ गयी है। इसकी वजह से ब्रिटेन समेत कई देशों में बड़ी संख्या में मुस्लिम बस्तियां बढ़ती जा रही हैं जहां से आतंक के पनपने के भरपूर अनुमान होते हैं।

फ्रांस ने अपने देश में जिस तरह धार्मिक कट्टरवादिता को नियंत्रित करने के कदम उठाए हैं, वे स्वागत योग्य हैं। किसी भी देश में किसी भी धर्म के निजी क़ानूनों से ज़्यादा देश के क़ानूनों को तरजीह दी जानी चाहिए। फ्रांस में पहले से ही सार्वजनिक जगहों पर मुंह को ढकने पर पाबंदी है, जिसके कारण फ्रांस में बुर्क़ा पहनने पर पाबंदी है।

दुनियाभर के सभी लोकतान्त्रिक देश आज अपने यहां धार्मिक कट्टरता से निपटने में असफल होते जा रहे हैं या लोकतन्त्र में धर्म को फॉलो करने की आज़ादी के कारण इन मुद्दों को संवेदनशील माना जाता है। हालांकि, राष्ट्रीय सुरक्षा को सर्वोपर्री रखते हुए सभी देशों को ऐसे सुधार करने ही चाहिए। दुनिया में आतंक का खतरा बढ़ता ही जा रहा है, और भारत भी उससे अछूता नहीं रहा है। आतंक के खिलाफ लड़ाई में पूरी दुनिया को एकजुट होकर कट्टरवाद पर प्रहार करने की ज़रूरत है।

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