उद्धव ठाकरे- ये राजनीति के Casanova हैं जिनके साथ कमिटमेंट का सबसे बड़ा Issue है

उद्धव ठाकरे

उद्धव ठाकरे सुर्खियों में रहने का कोई अवसर हाथ से जाने नहीं देना चाहते। इसीलिए वे आये दिन कोई न कोई बयान देते रहते हैं। लेकिन अंत में वे थाली के बैंगन से ज़्यादा कुछ साबित नहीं होते। अभी हाल ही में मानो महा विकास अघाड़ी को चुनौती देते हुए उन्होंने बताया कि सीएए से किसी को कोई खतरा नहीं है और वे सीएए एवं एनपीआर को महाराष्ट्र में लागू भी कराएंगे।

मीडिया से बातचीत के में उद्धव ठाकरे ने कहा, “महाराष्ट्र से संबंधित कई मुद्दों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बातचीत हुई। मैंने उनके साथ सीएए, एनपीआर और एनआरसी पर भी बात की। किसी को भी सीएए से डरने की जरुरत नहीं है। एनपीआर किसी को भी देश से बाहर नहीं निकालेगा”।

उद्धव ठाकरे के मन में क्या चलता है, ये हम क्या, स्वयं उद्धव भी नहीं जानते। दिन में जितने पहर नहीं बदलते, उससे ज़्यादा उद्धव अपने विचार बदलते हैं। कभी जनाब हुंकार भरते हैं कि दुनिया की कोई ताकत महा विकास अघाड़ी [गठबंधन सरकार] को महाराष्ट्र से नहीं हटा सकता है, और फिर कुछ ही दिनों में भीमा कोरेगांव का मामला एनआईए को राज़ी खुशी ट्रान्सफर होने देते हैं। कभी महोदय भाजपा को कोसते हुए कहते हैं कि मैंने उनसे चाँद तारे तो नहीं मांगे थे’, और अब भाईसाब कहते हैं कि सीएए और एनपीआर से उनको कोई दिक्कत नहीं है।

उद्धव ठाकरे पर एक ही कहावत चरितार्थ होती है, “आधी छोड़ सारी को धावे, न आधी मिले न पूरी पावे”। एक पार्टी से कमिटमेंट तो मानो उद्धव ठाकरे ने कभी सीखा ही नहीं है। जब शिवसेना पार्टी एनडीए का हिस्सा थी, और देवेन्द्र फडणवीस महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री थे, तब भी उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में शिवसेना भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार को आँखें दिखाती थी। सच कहें तो उद्धव ठाकरे अपने आप में एक पॉलिटिकल Casanova हैं, और इनका कमिटमेंट से छत्तीस का आंकड़ा रहता है।

परंतु इस दलबदलू व्यवहार के पीछे भी उद्धव के अपने कारण है। जोश जोश में उन्होंने भाजपा को लतियाते हुए महा विकास अघाड़ी को गले तो लगा लिया, परंतु उनका वास्तविक कद एक सरकारी क्लर्क से ज़्यादा कुछ नहीं है, जिसका काम है बस काँग्रेस और एनसीपी द्वारा स्वीकृत निर्णयों पर अपने हस्ताक्षर करना। ऐसे में अपने options खुले रखते हुए उद्धव ठाकरे भाजपा के साथ एक बार फिर अपने संबंध स्थापित करना चाहते हैं, ताकि समय पड़ने पर वे एक बार फिर भाजपा का दामन थाम सकें।

पर शायद उद्धव ठाकरे भूल रहे हैं कि दो वाहनों पर पैर रखकर सवारी करते हुए केवल अजय देवगन सही लगते है, वे नहीं। भाजपा शिवसेना के विश्वासघात को अभी भी भूली नहीं है, और अध्यक्ष जेपी नड्डा ने स्पष्ट कर दिया है कि अगला चुनाव भाजपा अकेले ही महाराष्ट्र में लड़ेगी। उद्धव ठाकरे इस भ्रम में रहते हैं कि वे नितीश कुमार की भांति अपने राज्य में एक बड़े शक्तिशाली खिलाड़ी हैं, जो महाराष्ट्र में एक शक्तिशाली समुदाय का नेतृत्व करते हैं। परंतु वास्तविकता इससे कोसो दूर है। जितने भी सीट शिवसेना ने विधानसभा चुनाव में जीते थे, वो इसलिए जीते थे क्योंकि भाजपा को मिलने वाला मत शिवसेना को एनडीए की छत्रछाया में रहने के कारण हस्तांतरित हुआ था।

उद्धव ठाकरे के पास काफी मजबूत वोटर बेस था जिसे उद्धव ने महा विकास अघाड़ी से हाथ मिलाकर लगभग गंवा दिया है, और जिसे प्राप्त करने के लिए महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के अध्यक्ष राज ठाकरे एड़ी चोटी का ज़ोर लगते दिखाई दे रहे हैं। उद्धव ठाकरे की डूबती नैया को पार लगाने के लिए कोई तैयार नहीं है, और उनके वर्तमान स्वभाव को देखते हुए महा विकास अघाड़ी का भविष्य ज़्यादा उज्ज्वल नहीं दिख रहा है।

 

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