सोमवार को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों ने कड़ा रुख अपनाते हुए शाहीन बाग में बच्चों के प्रयोग पर कड़ी आपत्ति जताई है, और दो बच्चों के मृत्यु के उपरांत सुप्रीम कोर्ट ने मामले का संज्ञान लेते हुए अपना रुख स्पष्ट किया है – मुद्दा कोई भी हो, बच्चे ऐसे विरोध प्रदर्शन का हिस्सा नहीं बन सकते। राष्ट्रीय वीर पुरस्कार जीतने वाली 12 साल की छात्रा जेन सदावर्ते द्वारा सुप्रीम कोर्ट को लिखे पत्र के बाद सुप्रीम कोर्ट ने ये निर्णय लिया है। 12 वर्षीय छात्रा ने चीफ जस्टिस बोबडे को लिखे पत्र में कहा था कि धरना-प्रदर्शन से नवजात व बच्चों को दूर रखने का निर्देश दिया जाना चाहिए।
जब शाहीन बाग में मरने वाले दो बच्चों के माँ बाप का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ताओं और विवादित एक्टिविस्ट जॉन दयाल ने बच्चों को शामिल करने की दलील पर जब ज़ोर दिया। सोमवार को हुई सुनवाई के दौरान महिला वकीलों के एक समूह द्वारा यह दावा किया गया कि बच्चों को प्रदर्शन करने का अधिकार है। इस पर सुप्रीम कोर्ट की न्यायिक पीठ ने उन्हें आड़े हाथों लेते हुए पूछा, “क्या चार महीने का बच्चा खुद प्रोटेस्ट में गया था?” इस पर मृत बच्चों के अभिभावकों का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ताओं में से एक अधिवक्ता ने कहा प्रदर्शन करने वाले लोगों के बच्चे को स्कूलों में अपमानित किया जा रहा है, उन्हें ‘पाकिस्तानी’ की संज्ञा दी जा रही है, अदालत को इस पर विचार करना चाहिए।
इस पर मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे ने कड़ा रुख अपनाते हुए अधिवक्ताओं को ‘कोरी दलीलें’ न देने को कहा। एसए बोबडे ने कहा कि ‘यहाँ कोई अगर बकवास करेगा, तो हम आगे की कार्यवाही रोक देंगे। ये कोर्ट है, हम मातृत्व व शांति का बेहद सम्मान करते हैं। ऐसी बहस न की जाए जिससे गर्माहट हो। अप्रासांगिक दलीलें देकर विघ्न न डाला जाए।’’ इसके अलावा कोर्ट ने केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार को नोटिस थमाते हुए उनका जवाब भी मांगा है। कोर्ट ने दोनों पक्षों को शाहीन बाग के विरोध प्रदर्शनों द्वारा आवाजाही को बाधित करने के संबंध में भी नोटिस भेजा है। कोर्ट के अनुसार प्रदर्शन तय स्थानों पर होने चाहिए जिससे स्थानीय जनता को कोई कठिनाई न झेलनी पड़े। इससे यह भी स्पष्ट होता कि सुप्रीम कोर्ट की वर्तमान पीठ विरोध के नाम पर अराजकता कतई नहीं सहने वाली।
राष्ट्रीय वीर पुरस्कार जीतने वाली 12 साल की छात्रा जेन सदावर्ते ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को लिखे अपने पत्र में कहा था कि नवजात शिशुओं व बच्चों को धरना-प्रदर्शन में शामिल करना क्रूरता और प्रताड़ना के समान है। शाहीन बाग में 4 महीने के बच्चे की मौत को संविधान के अनुच्छेद-21(जीवन जीने का अधिकार) का उल्लंघन है। यही नहीं जेन ने ये भी कहा कि नवजात शिशुओं व बच्चों को प्रदर्शन स्थल पर बाल अधिकार और प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन है।
बता दें कि शाहीन बाग में चल रहे प्रदर्शन नवजात बच्चों के लिए खतरनाक होता जा रहा है, और दुख की बात तो यह है कि उनके अभिभावकों को उनकी कोई चिंता नहीं है। चिंता तो इस बात की है कि टाइम पर विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लेने के लिए रोजाना का मेहनताना और बिरयानी मिलती है की नहीं। एक मृत बच्ची की माँ ने तो यहाँ तक कह दिया कि यह उस बच्ची का अधिकार है कि वो इन विरोध प्रदर्शनों में हिस्सा लें, और ये भी कहा कि जहां अभिभावक जाएंगे, वो बच्ची भी साथ जाएगी। इससे स्पष्ट होता है कि इन लोगों के हृदय में वात्सल्य की नाममात्र की भी भावना नहीं है और ये अपने कुत्सित विचारधारा के लिए अपने बच्चों तक की बलि चढ़ा सकते हैं।
परंतु जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट ने शाहीन बाग के विरोध प्रदर्शनों के नाम पर अराजकता फैलाने वालों को आड़े हाथों लिया, वो एक सराहनीय कदम है। हम आशा करते हैं कि सुप्रीम कोर्ट बिना विलंब शाहीन बाग के विरोध प्रदर्शन से उत्पन्न हुई अराजकता पर लगाम लगाने के लिए कड़े आदेश दे, जिससे न्याय व्यवस्था में जनता का विश्वास बना रहे।