संसदीय मीटिंग्स से टीएमसी की अनुपस्थिति काफी कुछ बोलती है
ममता बनर्जी के सितारे फिलहाल के लिए गर्दिश में है। सीएए के विरोध के चक्कर में वो अपना सुध बुध खो बैठी हैं, और हाल ही में प्रकाशित एक संसदीय रिपोर्ट के मुताबिक उनकी पार्टी के लिए भी अब मुसीबतें और बढ़ने वाली है। संसदीय कमेटियों से संबन्धित एक रिपोर्ट की माने, तो तृणमूल काँग्रेस के सांसदों ने इन कमेटियों से जुड़ी कई बैठकों में हिस्सा ही नहीं लिया है, और ऐसा करने वाले सांसदों में टीएमसी सांसदों की संख्या सबसे ज़्यादा है।
एक संसदीय अफसर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि कैसे कई सांसदों की अनुपस्थिति से राज्य सभा अध्यक्ष और भारत के उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू भी काफी चिंतित हैं। इन सभी कमेटियों का संचालन राज्य सभा का सचिवालय करता है, इसलिए उपराष्ट्रपति की चिंता और भी ज़्यादा महत्वपूर्ण हो जाती है। इन सदस्यों की एक विस्तृत सूची अभी हाल ही में श्री नायडू को पेश की गए थी।
कुल मिलाकर दोनों सदनों से 243 सांसद इन कमेटियों का हिस्सा रहे हैं, जिसमें सर्वाधिक संख्या भाजपा की है। इस प्रकरण से चिंतित होकर उपराष्ट्रपति नायडू ने विभिन्न संसदीय स्टैंडिंग कमेटियों के अध्यक्षों के साथ बैठक की। यह बैठक इसलिए भी अहम थी, क्योंकि 15 नवंबर को दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण के संबंध में कई सांसद अर्बन डेव्लपमेंट के लिए गठित संसदीय पैनल की बैठक से नदारद थे। इस सूची में तृणमूल काँग्रेस का नाम इसलिए भी सबसे ऊपर है, क्योंकि टीएमसी के लगभग 58 प्रतिशत सांसद एक भी बैठक का हिस्सा नहीं बने हैं, जबकि भाजपा से 36 प्रतिशत, 15 प्रतिशत काँग्रेस और अन्य पार्टियों के 8 में से 4 सांसद एक भी बैठक का हिस्सा नहीं बने हैं।
2 मार्च को वेंकैया नायडू ने राज्य सभा को सूचित किया था कि इन कमेटी मीटिंग्स में 95 सांसदों ने कोई उपस्थिति नहीं दर्ज की है। उदाहरण के लिए विज्ञान और तकनीक आधारित कमेटी में 31 में से केवल 18 सदस्य उपस्थित रहे हैं। इसके अलावा वाणिज्य कमेटी में 31 सदस्यों में से केवल 14 सांसद ही उपस्थित रहे हैं। अनुपस्थित सांसदों में कुछ प्रमुख नाम हैं टीएमसी सांसद डेरेक ओ ब्रायन, मिमी चक्रवर्ती, भाजपा सांसद अनंतकुमार हेगड़े, एनसीपी की सांसद वंदना चव्हाण, एवं एआईएमआईएम के सांसद असदुद्दीन ओवैसी इत्यादि।
परंतु जब ममता बनर्जी का बचाव करना हो, या फिर भारतीय संस्कृति पर लांछन लगाना हो, तो टीएमसी सांसदों की उपस्थिति में उछाल देखते ही बनता है। चाहे अनुच्छेद 370 का विरोध करना हो, फासीवाद पर महुआ मोईत्रा की तरह लंबा चौड़ा लेक्चर देना हो, या फिर डेरेक ओ ब्रायन की भांति राज्यसभा की कार्यवाही में अवरोध करना हो, टीएमसी के सांसद बिना कहे हाजिर हो जाएंगे। परंतु जब बात जनता की सेवा करने की हो, तो टीएमसी सांसद ऐसे गायब हो जाते हैं, जैसे गधे के सिर से सींग।