विश्व में भारतीय सेना की अपनी एक अलग ही धाक है और यह दुनिया की सबसे सक्षम सेनाओं में से एक है। लेकिन हमेशा भारतीय सेना की तुलना चीनी सेना से की जाती है और उनके मुक़ाबले कमजोर बताया जाता है। ये बात रक्षा विशेषज्ञों से लेकर भारत के आम नागरिकों तक के दिमाग में बैठ गई है।
चीन के ‘सुन त्जू’ की रणनीति को ‘चाणक्य नीति‘ के मुक़ाबले अधिक सफल बताया जाता है। परंतु हमारी भारतीय सेना ऐसा बिल्कुल नहीं सोचती। यही बात आर्मी चीफ जनरल एमएम नरवणे ने बुधवार को लैंड वॉर फेयर पर आयोजित एक सेमिनार को संबोधित करते हुए कहा। इस दौरान उन्होंने चाणक्य और चीन को लेकर एक बड़ा बयान दिया।
Army chief General MM Naravane spoke on the Balakot strike. He said that the attack showed that if one is skilful, escalation does not always lead to war
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— Hindustan Times (@htTweets) March 4, 2020
उन्होंने चीन के लिए कहा, “चीन पिछले कुछ दशकों में किसी युद्ध में शामिल नहीं हुआ है लेकिन, लगातार अपनी सैन्य शक्तियों का प्रदर्शन करके उसने अपना प्रभाव कायम किया है। यही कारण है कि चीन प्रमुख तकनीकी क्षेत्रों में मिलिट्री लीडर के तौर पर उभरा है। उन्होंने कहा कि हमारी सेना अपनी योजनाओं और क्षमताओं का फिर से आंकलन कर रही है ताकि चीन और पाकिस्तान सीमा पर ‘तेजी के साथ जवाब’ दिया जा सके। सेना प्रमुख ने कहा कि चीन ने विवादास्पद दक्षिण चीन सागर में बिना एक भी गोली चलाए इस क्षेत्र की भू-रणनीतिक स्थिति को बदल दिया है।
Army Chief General MM Naravane: China has not been
involved in real hardcore combat for a few decades now, yet its regular showcasing of its military might has created this aura of China being the undisputed military leader in key technology domain. pic.twitter.com/k19Ovjf6Cj— ANI (@ANI) March 4, 2020
सेना प्रमुख ने भारत की विरासत पर ज़ोर देते हुए कहा कि चीन की सुन त्जू की रणनीति से मुकाबला करने के लिए महान रणनीतिकार चाणक्य का अर्थशास्त्र आज भी उतना हीं प्रासंगिक है जितना पहले था। उन्होंने कहा कि भारत अंतरिक्ष, साइबर युद्ध और इलेक्ट्रानिक युद्ध कौशल में अपनी क्षमताएं बढ़ा रहा है। इसके अलावा लेजर आधारित हथियारों के विकास पर भी भारत जोर दे रहा है। सेना प्रमुख के चाणक्य का नाम लेने से ही स्पष्ट हो जाता है कि भारतीय सेना अब रणनीति के लिए अपने इतिहास की ओर मुड़कर चाणक्य जैसे महान रणनीतिकारों की ओर देख रही है। साथ ही अब नए जमाने में होने वाले हाइब्रिड वारफेयर पर भी ध्यान दे रही है और उसके लिए तकनीक विकसित करने में लगी है।
जनरल नरवणे ने कहा कि दुनिया में तकनीक काफी तेजी के साथ बढ़ रही है। अब मेन बैटल टैंक और फाइटर विमानों से लड़ाई लड़ने के तरीके पुराने हो चुके हैं। नई तकनीक और नए मौके युद्ध करने के तरीकों में बदलाव ला रहे हैं।
उन्होंने कहा कि भारत अपने परम्परागत शौर्य को मजबूत करने के अलावा अपनी पश्चिमी एवं उत्तरी सीमा के पास ऐसी ही शक्तिशाली प्रतिक्रियाएं देने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है जिसका युद्ध से दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं है।
Army Chief General MM Naravane: We are also focusing on dynamic response. We are refining our capacities on both the western and northern borders. We are developing both kinetic and non-kinetic methods. https://t.co/2sYMGekaqe
— ANI (@ANI) March 4, 2020
उन्होंने कहा कि खतरों से निपटने के लिए हम ‘काइनेटिक’ (विस्फोटकों, हथियारों के जरिए सक्रिय युद्ध) और ‘नॉन काइनेटिक’ (मनोवैज्ञानिक, प्रौद्योगिकी, साइबर, आर्थिक युद्ध) प्रतिक्रियाओं को विकसित कर रहे हैं।
सेना प्रमुख ने बताया कि, “चरमपंथियों, आतंकवादियों, अंतरराष्ट्रीय अपराध नेटवर्कों जैसे तत्वों का उभरना इस बात की ओर इशारा करता है कि जीत की तैयारी और उसे हासिल करने के लिए बहुत बारीक एवं सूक्ष्म तरीके अपनाए जाएं।”
उन्होंने कहा कि अब जीत हासिल करना बड़े पैमाने पर तबाही मचाने की क्षमता पर निर्भर नहीं करता बल्कि अपने प्रतिद्वंद्वी से उसका समर्थन छीन लेने से तय होता है। इसे “प्रौद्योगिकी विडंबना’’ करार देते हुए जनरल नरवणे ने कहा कि अमेरिका, ब्रिटेन की 21वीं सदी की सेना की तुलना में ISIS के आतंकी तबाही मचाने की गतिविधियों के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने में कहीं आगे हैं।
Army Chief: In Iraq and Syria, it is the ISIS an organisation steeped in 17th century, was far more advanced in using social media than the 21st-century forces like the US and the UK https://t.co/xeAyWMtDe5
— ANI (@ANI) March 4, 2020
यही नहीं सेना प्रमुख ने बालाकोट एयर स्ट्राइक के बाद भारत की जियोपॉलिटिक्स में बदली हुई स्थिति के बारे में भी बताया। उन्होंने कहा कि बालाकोट एयरस्ट्राइक से यह पता चलता है कि सही ढंग से अगर ताकत दिखाई जाए तो इससे युद्ध के हालात नहीं बनते। आतंकियों और नॉन स्टेट एक्टर्स की भूमिका बढ़ रही है। ऐसे में यह जरूरी है कि युद्ध लड़ने के तरीकों को भी बदला जाए।
सेना अगर इसी सोच के साथ आगे बढ़ती रही तो वह दिन दूर नहीं जब भारत को चीन की सेना से अधिक शक्तिशाली सेना के तौर पर देखा जाने लगेगा।