भारत विश्व के मानचित्र पर अपना मान-सम्मान बढ़ाता जा रहा है। कभी कूटनीति से तो कभी राजनीति से तो कभी रक्षा सौदों से। भारत के खिलाफ बोलने वाले देश अब या तो चुप हैं या भारत के कूटनीतिक कदमों से परेशान हैं। ऐसा ही एक देश है तुर्की। पाकिस्तान और मलेशिया के साथ मिलकर इसने भारत और कश्मीर दोनों के खिलाफ विष उगला लेकिन अब भारत ने इसे पटखनी देने के लिए चाणक्य की भांति उसके दुश्मन देशों से दोस्ती कर उनसे रक्षा सौदा करना प्रारम्भ कर दिया है। इसी दिशा में भारत को एक अहम सफलता मिली। भारत ने रूस और पौलेंड को पछाड़ते हुए अर्मेनिया के साथ 280 करोड़ रुपये यानि 40 मिलियन डॉलर का रक्षा सौदा किया है। इस सौदे के बाद भारत स्वदेशी हथियार अर्मेनिया को निर्यात करेगा।
सरकार के सूत्रों ने बताया कि रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) द्वारा विकसित और भारत इलेक्ट्रोनिक्स लिमिटेड (BEL) द्वारा निर्मित किए गए चार ‘SWATHI weapon locating radars‘ तुर्की के दुश्मन देश अर्मेनिया को निर्यात किया जाएगा। यह रडार अपनी 50 किलोमीटर की सीमा में दुश्मन के हथियारों, मोर्टार और रॉकेट जैसे स्वचालित हथियारों की सटीक स्थिति का पता लगा सकता है। भारतीय सेना जम्मू कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर अपने संचालन के लिए इसी रडार का उपयोग कर रही है जिससे सेना पाकिस्तानी चौकियों द्वारा हमले के स्रोत का पता लगाती है।
बता दें कि अर्मेनिया ने रूस और पोलैंड द्वारा प्रस्तावित प्रणालियों का परीक्षण किया था जो अच्छे भी थे लेकिन उन्होंने विश्वसनीय भारतीय प्रणाली को खरीदने का फैसला किया।
यह है तो एक रक्षा सौदा लेकिन इस सौदे का सामरिक महत्व इससे कहीं अधिक है। बता दें कि आर्मेनिया पश्चिम एशिया और यूरोप क्षेत्र में स्थित एक पहाड़ी देश है और इसकी सीमाएँ तुर्की, जॉर्जिया, अजरबैजान और ईरान से लगी हुई हैं। अजरबैजान और तुर्की ऐसे देश हैं जिनके साथ आर्मेनिया की सदियों से लड़ाई चलती आई है। बता दें कि अर्मेनिया से तुर्की की दुश्मनी दशकों पुरानी है। एक सदी पहले 1915 से 1918 के बीच तुर्की के आटोमन साम्राज्य ने आर्मेनिया में भीषण नरसंहार को अंजाम दिया था। करीब 15 लाख अर्मेनियाइयों को मौत के घाट उतारा गया था। उसके बाद से ही दोनों पड़ोसी देशों में कभी अच्छे संबंध नहीं रहे। इससे दोनों देशों में तनाव बना रहता है। दुनिया के दो दर्जन से ज़्यादा देशों ने अभी अर्मेनियन नरसंहार को आधिकारिक तौर पर मान्यता प्रदान की हुई है जिसमें अमेरिका सबसे नया देश है।
वहीं तुर्की भारत विरोधी बयान देते रहा है। तुर्की सरकार के दिल में शुरू से ही भारत के दुश्मन पाकिस्तान के लिए एक सॉफ्ट कार्नर रहा है। बीते वर्ष भारत ने जब कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया था, तो तुर्की ने भारत के इस कदम की निंदा की थी और भारत और पाकिस्तान को बातचीत के लिए कहा था। इसके जवाब में भारत अब तक कई बड़े कदम उठा चुका है। जब संयुक्त राष्ट्र में भी तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दो गान ने पाक के प्रॉपेगैंडे को हवा देने की कोशिश की थी तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कूटनीतिक दांव चला था। उन्होंने तुर्की के तीन धुर विरोधी पड़ोसी देशों व दमदार प्रतिद्वंद्वी साइप्रस, आर्मेनिया और ग्रीस के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने के लिए अहम मुलाकातें की थीं। उसी समय यह तय हो गया था कि भारत इतनी आसानी से तुर्की को जाने नहीं देगा। उसके बाद जहां एक तरफ भारत ने तुर्की की नेवल कंपनी से 2.4 बिलियन डॉलर के एक सौदे को खारिज कर दिया, तो वहीं पीएम मोदी ने भी तुर्की की एक प्रस्तावित यात्रा को रद्द कर दिया था। इसके बाद भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने 15 फरवरी को जर्मनी में अर्मेनिया के विदेश मंत्री से मुलाक़ात की थी, और उनके साथ अर्थव्यवस्था, राजनीतिक और सुरक्षा मुद्दों पर चर्चा की थी।
इस तरह से देखा जाए तो चाणक्य की नीति अपनाते हुए भारत विरोधी देश के दुश्मन से दोस्ती का हाथ बढ़ाया है। आर्मेनिया के लोग भारत को अपना दोस्त मानते हैं तथा अपने संबंधों को और मजबूत बनाना चाहते हैं। जिस तरह तुर्की, भारत के दुश्मन पाकिस्तान के साथ मिलकर भारत को आंखें दिखाने का काम कर रहा है, ऐसे में भारत ने भी अब तुर्की के सबसे बड़े दुश्मन अर्मेनिया के साथ नज़दीकियां बढ़ाना शुरू कर दिया है। अब यह रक्षा सौदा आर्मेनिया और भारत के रिश्तों को एक नया आयाम देगा तो वहीं तुर्की के लिए भी यह एक कड़ा संदेश है।