मध्य प्रदेश से घबराई कांग्रेस ने गुजरात से शुक्ला की जगह सोलंकी को बनाया राज्यसभा उम्मीदवार

और कांग्रेस बैकफुट पर है

सोलंकी

किसी ने सही कहा था, दूध का जला छाछ भी फूँक फूँक कर पीता है। इतना हो हल्ला मचने के बाद कांग्रेस ढर्रे पर आती दिखाई दे रही है। मध्य प्रदेश के 22 विधायकों द्वारा त्यागपत्र सौंपने और ज्योतिरादित्य सिंधिया को खोने के बाद पार्टी ने राज्य सभा चुनाव के लिए स्थानीय नेतृत्व को न नकारते हुए भरतसिंह सोलंकी को गुजरात से राज्य सभा से टिकट दिया है।

बताया जा रहा है कि गुजरात से पहले पूर्व पत्रकार और काँग्रेस नेता राजीव शुक्ला चुनाव लड़ने जा रहे थे, परंतु मध्य प्रदेश वाली गलती न दोहराने के लिए इस बार भरतसिंह सोलंकी को राज्य सभा में काँग्रेस की ओर से प्रतिनिधित्व करने के लिए चुना गया है। दैनिक जागरण की एक रिपोर्ट की माने, तो सोलंकी समर्थक विधायक काफी नाराज़ हुए थे, जब शक्तिसिंह गोहिल के साथ राजीव शुक्ला का नाम सामने आया।

शुक्ला ने सोशल मीडिया के माध्‍यम से खुद के प्रत्‍याशी बनाए जाने की जानकारी सार्वजनिक की थी जिसके बाद सोलंकी समर्थक विधायक भड़क गए। बलदेवजी ठाकोर समेत कई विधायकों ने एक बैठक की और स्पष्ट संदेश भेजा कि यदि भरतसिंह सोलंकी को नकारा गया, तो गुजरात में भी मध्य प्रदेश जैसा कुछ हो सकता है।

बता दें कि मध्य प्रदेश में बार-बार नकारे जाने से विक्षुब्ध हो चुके ज्योतिरादित्य सिंधिया ने न केवल पार्टी छोड़ी, अपितु भारतीय जनता पार्टी का भी दामन थामा। उनके साथ 22 अन्य विधायकों ने भी मध्य प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष [स्पीकर] को अपना त्यागपत्र सौंप दिया, जिससे फिलहाल के लिए कमलनाथ सरकार अल्पमत में है।

परंतु यह भरतसिंह सोलंकी है कौन? ये पूर्व मुख्यमंत्री माधवसिंह सोलंकी के पुत्र है जिन्होंने गुजरात में अल्पसंख्यक तुष्टीकरण के सबसे घटिया रूपों में से एक KHAM नीति को लागू किया था, ताकि गुजरात पर काँग्रेस की पकड़ कभी भी ढीली न हो। ये अलग बात थी कि उनके मुख्यमंत्री पद से हटने के महज 5 वर्ष बाद ही काँग्रेस का गुजरात से वो सफाया हुआ कि आज भी वो गुजरात में अपने दम पर सरकार नहीं खड़ी कर पायी है।

रोचक बात तो यह है कि भरतसिंह सोलंकी ज्योतिरादित्य सिंधिया के भी करीबी माने जाते हैं, और उनका गुजरात के काँग्रेस कार्यकर्ताओं पर काफी गहरा प्रभाव पड़ा है। खबरों की माने तो उन्होंने पार्टी हाइकमान को गुजरात में बदलते राजनीतिक समीकरण का हवाला देते हुए स्थिति को सुधारने का आवाहन दिया, और फलस्वरूप काँग्रेस की गुजरात इकाई को उन्हें राज्यसभा चुनाव के लिए टिकट देना ही पड़ा।

कांग्रेस को समझ में आ गया कि ज्योतिरादित्य सिंधिया वाली गलती दोहराने का बहुत बुरा खामियाजा गुजरात में भुगतना पड़ सकता है। इसीलिए उन्होने भरतसिंह सोलंकी और उनके समर्थकों की लगभग सभी मांगें मानने को तैयार हो गयी है।

उधर राजीव शुक्ला ने स्थिति को संभालने का असफल प्रयास करते हुए कहा, “मैं काँग्रेस अध्यक्ष सोनिया जी का आभार प्रकट करना चाहता हूँ कि उन्होने मुझे गुजरात से राज्य सभा नामांकन का प्रस्ताव दिया पर इस समय मैं संगठन से जुड़े कामों में लगा हुआ हूँ। इसलिए मैं चाहूँगा कि किसी और व्यक्ति को मेरी जगह नामांकित करे” –

हालांकि, वास्तविकता तो कुछ और ही है। इंडिया टुडे की रिपोर्ट की माने तो राजीव शुक्ला को 10 जनपथ से संदेश आया कि उन्हें गुजरात में अहमदाबाद की राज्य सभा सीट से प्रतिनिधित्व करने का अवसर दिया जा रहा है। परंतु राजीव शुक्ला का राज्य सभा की सीट छोड़ना कोई महान कार्य नहीं, अपितु मजबूरी थी, वरना गुजरात काँग्रेस भी मध्यप्रदेश काँग्रेस की तरह बगावत पर उतर आता।

ज्योतिरादित्य सिंधिया के पार्टी छोड़ने के निर्णय पर काँग्रेस पूरी तरह बैकफुट पर आ गयी है। मध्यप्रदेश जैसी गलती दोबारा न हो, इसलिए उन्हें गुजरात में भरतसिंह सोलंकी और उनके समर्थकों को मनाने के लिए कुछ कदम पीछे भी लेने पड़े हैं। अब ये तो भगवान ही जाने कि काँग्रेस यहाँ से अपने आप को संभाल पाती है कि नहीं।

 

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