“ये मानवाधिकारों पर धब्बा है”, निर्भया के रेपिस्टों की फांसी पर एमनेस्टी इंटरनेशनल शोक में डूबा

एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया

मानवाधिकार के नाम पर अपने एजेंडे को थोपने के लिए किसी देश को बदनाम करने का प्रचलन पहले से ही रहा है। एमनेस्टी उन्हीं संस्थाओं में से एक है जो भारत को बदनाम करने के लिए किसी मुद्दे को नहीं छोड़ती है। इस संस्था के कई देशों में ब्रांच है लेकिन भारत का एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया ब्रांच एजेंडा फैलाने में बाकी ब्रांचो से दो कदम आगे रहता है।

निर्भया केस में सात साल बाद शुक्रवार सुबह साढ़े पांच बजे चारों दोषियों को फांसी के फंदे पर लटका दिया गया। इस फैसले के बाद एक ओर जहां निर्भया के माता-पिता समेत पूरा देश खुशी जाहिर कर रहा है और इसे न्याय की जीत बता रहे हैं, तो वहीं कुछ लोग और संस्था ऐसे भी हैं जो इसे भारत के मानवाधिकार रिकॉर्ड पर गहरा धब्बा’ बता रहे हैं। एमेनेस्टी भी उन्हीं में शामिल है।

शुक्रवार को एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया ने कहा कि, मृत्युदंड कभी भी महिलाओं के खिलाफ हिंसा को खत्म करने का उपाय नहीं हैं।  इसके साथ ही उन्होंने निर्भया के दोषियों की फांसी को भारत के मानवाधिकार रिकॉर्ड पर ‘गहरा धब्बा‘ भी बताया।

एमनेस्टी ने अपने बयान में आगे कहा है कि, भारत में अगस्त 2015 से कोई भी फांसी नहीं हुई थी और यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा से निपटने के नाम पर आज चार पुरुषों को मार दिया गया।”

एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया के कार्यकारी निदेशक अविनाश कुमार ने कहा, “मौत की सजा कभी भी समाधान नहीं है और आज की सजा भारत के मानवाधिकार रिकॉर्ड में एक और गहरा धब्बा लगाता है। भारतीय अदालतों ने इसे बार-बार मनमाने तरीके से लागू किया है।”

उन्होंने यह भी कहा कि लिंग-आधारित हिंसा को कम करने और रोकथाम के लिए वास्तव में जिन चीजों की आवश्यकता है वे बेहतर संरक्षण तंत्र, जांच में सुधार, अभियोजन और पीड़ितों के परिवारों के लिए सपोर्ट जैसे प्रभावी और दीर्घकालिक समाधान हैं।

अब मानवाधिकार के नाम पर यह संस्था किस तरह का प्रोपोगेंडा फैलाता होगा ये इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि वह अब दुष्कर्म करने वाले की तरफदारी कर रहा है। इसने एक बार भी निर्भया के बारे में या उसके माता पिता के अधिकारों के बारे में नहीं सोचा लेकिन इस rarest of the rare केस के आरोपियों के मानव अधिकार के बारे में बात कर रहा है।

यह पहली बार नहीं है कि एमनेस्टी ने इस तरह का रुख अपनाया हो। अपने आप को मानव अधिकार का प्रहरी मानने वाली यह संस्था भारत के बारे में कई बार झूठ प्रचात्रित कर चुकी है। हालांकि, भारत में ऐसे संस्थानों की कोई प्रासंगिकता नहीं है लेकिन अपने आप को मीडिया में बनाए रखने के लिए ये ऐसे ही भारत विरोधी बयान देते रहती है।

बता दें कि  प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने इस संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल को कारण बताओ नोटिस जारी किया था। एमनेस्टी पर विदेशी मुद्रा कानून (फेमा) के तहत 51 .72 करोड़ रुपये के लेन-देन में नियमों का उल्लंघन करने का आरोप था। इसके बाद 25 अक्टूबर 2018 को एमनेस्टी के बेंगलुरु स्थित ऑफिस पर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने छापेमारी भी की थी। यही नहीं इसने एंटी CAA प्रदर्शनों के दौरान हो रहे हिंसा को न देख कर उल्टे पुलिस पर ही आरोप लगाया था।

एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया ने ‘कश्मीर में मानव अधिकारों’ को लेकर ‘ब्रोकन फैमिलीज़’ के नाम से एक इवेंट किया और अपने इस इवेंट में भारत और सेना के खिलाफ नारे लगवाए थे जिसे लेकर बेंगलुरु पुलिस ने एमनेस्टी के खिलाफ देशद्रोह, समाज में नफरत फैलाने का केस दर्ज किया था। ये एनजीओ कश्मीर के आतंकवादियों के मानवाधिकार की बात भी करती रही है और साथ ही महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव में पिछले साल हुई हिंसा के 9 आरोपियों को निर्दोष और देशवासियों के लिये हीरो बनाती है। इसी से समझा जा सकता है कि अगर यह संस्था किसी दुर्दांत दुष्कर्मी के मानवाधिकार की बात करता है तो कोई नई बात नहीं है, बल्कि इसका प्रोपोगेंडा है जो भारत को बदनाम करने के लिए चला रहा है।

Exit mobile version