मीडिया CAA विरोधी गुणगान कर रही थी, वकील हरीश साल्वे ने एक दिन में लिबरलों को बर्बाद कर दिया

मतलब CAA विरोधी गैंग के परखच्चे उड़ा दिये वकील साहब ने!

हरीश साल्वे

जाने-माने अधिवक्ता हरीश साल्वे एक बार फिर सुर्खियों में है। इस बार उन्होंने सीएए पर टाइम्स ऑफ इंडिया वेबसाइट पर एक लेख लिखा है, जिसमें उन्होंने न केवल सीएए से संबन्धित सभी आवश्यक जानकारी उपलब्ध कराई है, अपितु सीएए विरोध के नाम पर देश को भड़काने में लगे हुए विरोधियों को आईना भी दिखाया है।

हरीश साल्वे ने आलोचकों के मुंह पर ताला लगाते हुए कहा कि जो भी सीएए को असंवैधानिक बताने की भूल कर रहे हैं, उन्हें शायद संविधान का ज्ञान नहीं है। उन्होंने अपने लेख में कहा, “यह नियम वर्ष 2003 में तैयार किया गया था और इसका उद्देश्य भारतीय नागरिकों का राष्ट्रीय रजिस्टर तैयार करना था. ये रजिस्टर देश भर में घर-घर जाकर जानकारी इक्कठा करने के बाद बनाया जाना था ताकि संदिग्ध मामलों में ये जानकारी काम आ सके. ये नियम 16 वर्षों से ही लागू है लेकिन अभी तक इसका संचालन नहीं किया गया है। ऐसे में मैं यह समझने में विफल हूं कि एक कानून जो एक निश्चित वर्ग के लोगों को निश्चित समय सीमा और कुछ पैमानों के आधार पर कुछ अधिकार प्रदान कर रहा है तो उसे कैसे कोई भेदभाव से परिपूर्ण घोषित कर सकता है? समानता के सिद्धांत का मतलब यह नहीं है कि हर कानून का universal application होना ही चाहिए।”

बता दें कि नागरिकता संशोधन अधिनियम पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान में धार्मिक रूप से प्रताड़ित अल्पसंख्यकों को त्वरित नागरिकता देने के लिए पारित किया एक विशेष अधिनियम है। इसमें हिन्दू, सिख, बौद्ध और ईसाई जैसे अनेक धर्म के लोग शामिल हैं, जिन्हें कम से कम 5 वर्षों के लिए भारत में रहना होगा। इस अधिनियम से किसी समुदाय की नागरिकता नहीं छिन रही है, परंतु सीएए विरोधियों ने इसी एक पहलू पर अफवाह फैलाते हुए देश के कई हिस्सों में उपद्रव फैलाने का प्रयास किया है, जिसमें वे बंगाल और दिल्ली में उपद्रव कराने में सफल रहे हैं।

फिर सीएए का मूलभूत आधार समझाते हुए हरीश साल्वे ने आगे लिखा, “सीएए का लाभ उठाने का उद्देश्य अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए अल्पसंख्यक समुदायों के सदस्यों को भारतीय नागरिकता प्रदान करना है। क्या हमें वास्तव में इस बात का प्रमाण चाहिए कि अल्पसंख्यकों को इन इस्लामी गणराज्यों में सताया जाता है? यदि संसद इस विचार पर सहमत है कि धार्मिक रूप से प्रताड़ित इन अल्पसंख्यकों को भारत में आश्रय मिलना चाहिए, तो आखिर विरोध किस बात का?”

इसके बाद हरीश साल्वे ने जल्द ही सीएए विरोध के सबसे अहम पक्ष को सामने रखते हुए कहा, “सबसे अधिक आलोचना इस बात पर की जा रही है कि सीएए के आने से मुसलमानों को देश से बाहर निकाल दिया जाएगा, और भारत के मुसलमानों को अपनी नागरिकता सिद्ध करनी होगी। ऐसी कोई अधिनियम या सूचना प्रकाशित नहीं हुई है, जो यह सिद्ध कर सके कि सरकार की यही मंशा है। इस बात को स्वयं प्रधानमंत्री ने नकारा है। यदि ऐसी कोई व्यवस्था है, जिसमें केवल मुसलमानों को अपनी नागरिकता सिद्ध करनी पड़े, तो वो असंवैधानिक होगा”।

हरीश साल्वे ने ये बात अभी ही नहीं कही है। सीएए पारित होने के कुछ ही दिनों बाद जब देश में लोगों को सीएए विरोध के नाम पर भड़काया जा रहा था, तो हरीश साल्वे ने उन सभी प्रोपगैंडावादियों को चुन चुन के ध्वस्त किया, जो संविधान के अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 15 की दुहाई देकर इस विधेयक का विरोध कर रहे थे। उन्होंने बताया कि कैसे सीएए किसी भी स्थिति में भारतीय संविधान का उल्लंघन नहीं करती है, और अनुच्छेद 15 और 21 केवल उन्हीं भारतीय नागरिकों पर लागू होता है, जो भारत में रहते हैं, उन पर नहीं जो भारत में प्रवेश करना चाहता है।

इतना ही नहीं, इस विधेयक के खिलाफ नैतिक आधार पर पेश किए जा रहे तर्कों पर हरीश साल्वे ने बोला कि भारत के संविधान पहले से ही अल्पसंख्यक धार्मिक समुदायों के सदस्यों के लिए विशेष अधिकार का प्रावधान है।

उन्होंने इस तर्क से उन्हें भी आड़े हाथों लिया, जिन्होंने यह तर्क देते हुए विधेयक के विरुद्ध नारेबाजी की कि विधायी क्षमता की कमी के कारण संसद को इस विधेयक पर चर्चा नहीं करनी चाहिए। हरीश साल्वे का इशारा विपक्ष समेत पूर्व सॉलिसिटर जनरल सोली सोराबजी की ओर भी था, जिन्होंने बिना कोई ठोस कारण दिए इस विधेयक को असंवैधानिक करार दिया था।

परंतु हरीश ने अभी तक अपना सबसे घातक दांव नहीं चला था। इसी लेख के अंत में विपक्ष को बुरी तरह पटकते हुए उन्होंने लिखा, “जातियों और धर्मों के बीच ध्रुवीकरण उतना ही पुराना है जितना आधुनिक भारत की विचारधारा। मैं उनमें भी ध्रुवीकरण की भावना उत्पन्न होते हुए देख रहा हूँ, जिन्होंने दशकों तक सत्ता का आनंद उठाया है, और उनमें भी, जिन्होंने ऐसे लोगों को रिप्लेस किया है। इसमें अब इस तथ्य को मिलाइए कि कैसे कुछ विचारधाराओं को आज भी तर्कसंगत बनाने का असफल प्रयास किया जा रहा है”।

सच कहें तो हरीश साल्वे उन चंद लोगों में से हैं, जो सत्य बोलने से बिलकुल भी नहीं हिचकिचाते, चाहे वो किसी को प्रिय लगे या नहीं। हरीश साल्वे निस्संदेह भारत के सबसे बेहतरीन अधिवक्ताओं में से एक रहे हैं, वे भारत के पूर्व सॉलिसिटर जनरल भी रह चुके हैं। कुलभूषण जाधव केस में उन्होंने बड़ी परिपक्वता से भारत का पक्ष विश्व के समक्ष रखते हुए पूर्व नौसैनिक अफसर की फांसी रुकवाने में एक अहम भूमिका निभाई। सच कहें तो जब तथ्यों के आधार पर वामपंथियों और अफवाह फैलाने वाले लोगों की पोल खोलनी हो, तो अधिवक्ता हरीश साल्वे का कोई सानी नहीं।

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