इतिहास गवाह है: सिंधिया के कांग्रेस छोड़कर जाने के बाद मध्य प्रदेश में पार्टी की कब्र खुदना तय है

पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश में जो हुआ अब वही मध्य प्रदेश में होगा

कांग्रेस पार्टी

कांग्रेस पार्टी का इतिहास रहा है जब भी किसी राज्य में उसकी पार्टी का कोई बड़ा नेता या सहयोगी पार्टी उसका साथ छोड़ती है तो उस राज्य में हुए नुकसान की भरपाई नहीं कर पायी है या यूं कहें कभी वापसी नहीं कर पाई है। ऐसा ही कुछ मध्य प्रदेश की सियासत में देखने को मिला रहा है, जहाँ ज्योतिरादित्य सिंधिया के पार्टी छोड़ देने के बाद से ये कहा जा रहा है कि इस बार अगर राज्य से कांग्रेस की सरकार गयी तो आने वाले समय में यहाँ वापसी करना इसके लिए बहुत मुश्किल हो जायेगा।

अब हम ऐसा क्यों कह कहे हैं उसके लिए देश के कुछ राज्यों में कांग्रेस की स्थिति को जानना महत्वपूर्ण हो जाता है, जहाँ समय के साथ कांग्रेस पार्टी का न केवल जनाधार खिसका है बल्कि कुछ राज्यों में तो उसका सफाया ही हो गया है। पश्चिम बंगाल में कांग्रेस इमरजेंसी के बाद से अबतक अपने बूते सरकार नहीं बना सकी है। जब पश्चिम बंगाल में दशकों तक कम्युनिस्ट का शासन रहा तब कांग्रेस प्रमुख रूप से विपक्षी पार्टी हुआ करती थी। हालांकि,वर्ष 2011 में ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस के साथ गठबंधन कर ये पार्टी सत्ता में आई परन्तु जल्द ही ये गठबंधन टूट गया। आज राज्य में कांग्रेस का कोई जनाधार नहीं रहा है। हालत ये है कि आज राज्य में टीएमसी, बीजेपी, कम्युनिस्ट के बाद कांग्रेस का नंबर आता है।

उत्तर प्रदेश और बिहार में भी कुछ ऐसा ही हाल है जहाँ 1989 के बाद से कांग्रेस इन राज्यों में कभी वापसी नहीं कर सकी। हालत ये है कि यहाँ ये पार्टी चौथे या पांचवे स्थान पर रहती है या यूं कहें कि ये यहाँ कम्पटीशन में ही नहीं होती। बिहार में बीजेपी, राजद, जदयू और एलजेपी के बाद कांग्रेस आती है। वहीं उत्तर प्रदेश में भाजपा, सपा और बसपा के बाद कांग्रेस का नंबर आता है।

हालांकि, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में ये पार्टी दूसरे स्थान पर है लेकिन जम्मू कश्मीर में तो इस पार्टी का सफाया हो चुका है। नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी जैसी क्षेत्रीय पार्टियां कश्मीर में मुख्य भूमिका में रही हैं। कांग्रेस का थोड़ा बहुत जो जनाआधार बचा है वो केवल जम्मू क्षेत्र में ही है वो भी गुलाम नबी आज़ाद के कारण। अब इस केंद्र प्रशासित राज्य में ये पार्टी काफी पीछे है जबकि भाजपा की पकड़ पहले के मुकाबले काफी मजबूत हुई है।

पंजाब में ये पार्टी सत्ता में है लेकिन कई वर्षों तक ये पार्टी मुख्य रूप से विपक्षी पार्टी थी। आम आदमी पार्टी के उदय ने दिल्ली से कांग्रेस का सफाया कर दिया है और अब ये पार्टी पंजाब में भी धीरे-धीरे अपनी पकड़ बना रही है। संभावना तो यहाँ तक है कि यदि अमरिंदर सिंह की सरकार गिरी तो आम आदमी पार्टी यहाँ से भी कांग्रेस का सफाया कर देगी।

इस बार के दिल्ली विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी ने जबरदस्त जीत दर्ज की जबकि नुकसान सबसे अधिक कांग्रेस पार्टी को हुआ जिसे केवल 4 प्रतिशत वोट शेयर ही मिल सका और तो और दो तीन नेताओं को छोड़ दें तो सभी की जमानत जब्त हो गयी थी। राजस्थान में कांग्रेस पार्टी फिलहाल सत्ता में है। इस राज्य में पक्ष-विपक्ष का खेल भाजपा और कांग्रेस के बीच में हर पांच साल के अंतर पर दिखाई देता है। वहीं गुजरात में भी कांग्रेस 22 वर्षों बाद भी सत्ता में नहीं आ सकी है। 1995 में भाजपा ने आर्थिक रूप से पिछड़ों और पटेल समुदाय को साथ लेकर सत्ता हासिल की थी, तब से लेकर आज तक इस राज्य में भाजपा की ही सरकार बनती आ रही है

बात करें महाराष्ट्र की तो यहाँ कांग्रेस से नाता तोड़कर नयी पार्टी बनाने वाले शरद पवार सबसे मजबूत नेताओं में से एक माने जाते हैं। महाराष्ट्र में कांग्रेस ने उन्हें महत्व नहीं दिया तो शरद पवार ने 90 के दशक में अपने दम पर एनसीपी को खड़ा किया इसके बाद से कभी कांग्रेस अपने दम पर सत्ता में नहीं आ सकी। कांग्रेस आज शरद पवार के कारण ही यहाँ सत्ता में हैं। कभी हर राज्य में एक मजबूत जनाधार और सत्ता का सुख भोगने वाली कांग्रेस पार्टी यहाँ चौथे स्थान पर है और इस बार के विधानसभा चुनाव में 288 में से केवल 42 सीटें ही जीत सकी है।

कर्नाटक में ये पार्टी विपक्ष में है पर केरल में इस पार्टी को प्रासंगिक बने रहने के लिए इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) जैसी पार्टियों के साथ गठबंधन में रहती है। इसके बावजूद यहाँ कांग्रेस अपनी उपस्थिति मजबूती के साथ नहीं दर्शा सकी है।

तमिलनाडु की बात करें तो यहाँ द्रविड़ राजनीति ने कांग्रेस का सफाया कर दिया है। या यूं कहें क्षेत्रीय पार्टी एआईएडीएमके और डीएमके के बीच कांग्रेस अपना जनाधार ही नहीं बचा है। कांग्रेस नेता एम. भक्तवत्सलम राज्य के अंतिम कांग्रेसी मुख्यमंत्री थे, जिनका कार्यकाल 1967 में समाप्त हो गया था।

ऐसा ही कुछ आंध्र प्रदेश में भी है जहाँ कांग्रेस का सफाया हो चुका है। यदि जगन मोहन रेड्डी के पिता जीवित होते तो आज जगन कांग्रेस में होते क्योंकि जगन के पिता कांग्रेस के एक जाने माने नेता थे। पिता के असामयिक निधन के बाद जगन को कांग्रेस में अहमियत नहीं मिली और उन्होंने कांग्रेस से अलग होकर वाईएसआर का गठन किया। आज वो राज्य के मुख्यमंत्री हैं।  स्पष्ट है कांग्रेस ने यदि जगन की महत्वाकांक्षाओं को समझा होता तो शायद राज्य में उसका सफाया न हुआ होता।

तेलंगाना में फिर भी ये पार्टी दूसरी महत्वपूर्ण पार्टी है परन्तु भाजपा यहाँ धीरे-धीरे अपनी पकड़ को मजबूत बना रही है। ओडिशा में कांग्रेस पार्टी भाई-भतीजावाद की राजनीति में पूरी तरह बिखर चुकी है और भाजपा राज्य की दूसरी महत्वपूर्ण पार्टी बन चुकी है। झारखंड में भले ही कांग्रेस गठबंधन कर सत्ता में है परन्तु यहां JMM और बीजेपी के बाद कांग्रेस तीसरे स्थान की पार्टी है।

मध्य प्रदेश में भी ऐसा लग रहा है कि आने वाले वर्षों में कांग्रेस की हालत अन्य राज्यों जैसा ही होने वाला है। आजादी के बाद से कांग्रेस के वर्चस्व को पहली चुनौती 1967 में मिली थी जब विपक्ष संयुक्त विधायक दल के बैनर तले एकजुट हो गया और कई हिंदी भाषी राज्यों में कांग्रेस की हार हुई थी। मध्य प्रदेश उन पहले राज्यों में शामिल था जहाँ 1967 के विधानसभा चुनाव के बाद गैर-कांग्रेसी सरकार थी।

मध्य प्रदेश में 1977 में भी जनता पार्टी की सरकार बनी थी। इसके बाद 1990 में राज्य में बीजेपी पहली बार सत्ता में आई लेकिन, 1993 में कांग्रेस एक बार फिर सत्ता में आई और दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री बने। दिग्विजय सिंह के नेतृत्व में मध्य प्रदेश बीमारू राज्य बन गया और नतीजा ये हुआ कि वर्ष 2003 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को जबरदस्त हार का सामना करना पड़ा।

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इसके बाद बीजेपी अगले 15 साल तक सत्ता में रही। वर्ष 2018 में सत्ता विरोधी लहर के कारण कांग्रेस को मामूली अंतर से राज्य में जीत मिली और कमलनाथ राज्य के नए मुख्यमंत्री बने। जबकि कांग्रेस की इस जीत में ज्योतिरादित्य सिंधिया की भूमिका अहम थी जिन्होंने राज्य में कांग्रेस की जीत सुनिश्चित करने के लिए काफी मेहनत की थी फिर भी, उन्हें कोई महत्व नहीं दिया गया।

कांग्रेस ने सिंधिया को किनारे करना शुरू कर दिया और अंततः इस पुरानी पार्टी के व्यवहार से तंग आकर सिंधिया ने भाजपा का दामन थाम लिया। इस तरह से कांग्रेस ने एक बड़ा युवा नेता खो दिया। यदि सिंधिया ने राज्य में एक नयी पार्टी का गठन किया होता तो हो सकता था कि कांग्रेस राज्य में तीसरे दर्जे की पार्टी बन जाती। परन्तु सिंधिया ने भाजपा में शामिल होने का निर्णय लिया और कांग्रेस के कई बागी नेता सिंधिया के साथ खड़े नजर आये। इस तरह से कांग्रेस ने अपने ही नेता के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार कर अपने लिए ही कब्र खोदने का काम किया। पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश में कांग्रेस के इतिहास को देखें तो हम कह सकते हैं कि मध्य प्रदेश में पार्टी जिस तरह की स्थिति से गुजर रही है आने वाले समय में अगर कमलनाथ की सरकार गिरती है तो भविष्य में राज्य में कांग्रेस की वापसी की संभावनाएं न के बराबर नजर आती हैं।

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