चीन से फैले वुहान वायरस की वजह से अब तक दुनियाभर में लगभग 8 हज़ार लोग अपनी जान गंवा चुके हैं और लगभग 2 लाख लोग इस वायरस से ग्रसित हो चुके हैं। इस संक्रमण के फैलाव ने दुनिभार में चीनी विरोधी मानसिकता को बढ़ावा दिया है। इसी के साथ चीनी मॉडल की विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़े किए जा रहे हैं। दुनिया को अब इस बात का अहसास हो रहा है कि चीन जैसे अलोकतांत्रिक और सत्तावादी देश को दुनिया का ग्लोबल मैनुफेक्चुरिंग हब बनाने का जोखिम नहीं उठाया जाना चाहिए था।
आज चीन में जो रहा है, पूरी दुनिया उसका खामियाजा उठा रही है, और बदले में चीन अपनी ज़िम्मेदारियों से भागने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है। इस महामारी के फैलने से दुनियाभर में चीन की छवि को गहरा झटका लगना तय है और यही कारण है कि इस महामारी के अंत के बाद चीन वह पहले जैसा चीन तो कभी नहीं रहने वाला।
इसके संकेत अभी से मिलने शुरू भी हो चुके हैं। कोरोनावायरस से निपटने के लिए जी-7 देशों ने जो भी कदम उठाने का फैसला लिया है, उससे चीन को पूरी तरह बाहर रखा गया है। जी-7 में कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, द यूके, द यूएस जैसे सात देश और यूरोपियन यूनियन शामिल हैं। कोरोना से लड़ने के लिए इन्होंने जो प्रण लिए हैं, उसमें चीन का कहीं ज़िक्र तक नहीं है और चीन को पूरी तरह नकार दिया गया है।
इसके उत्तर में चीन ने भी जी-7 के इन कदमों को निराशाजनक बताया है। वहीं चीन जिस तरह अब वुहान वायरस के फैलाव की ज़िम्मेदारी अमेरिका पर डालने की योजना पर काम कर रहा है, उसने भी दुनिया के तमाम देशों में उसकी एक नकारात्मक छवि बन रही है, फिर चाहे मीडिया के माध्यम से चीन अपने पक्ष में कितने ही लेख क्यों न लिखवा डाले।
कोरोना की वजह से चीन का महत्वकांक्षी BRI प्रोजेक्ट पहले ही बर्बाद हो चुका है। पाकिस्तान में बन रहा CPEC इसका सबसे बड़ा उदाहरण है, जहां चीन के कोरोना ने और पाकिस्तानी सरकार के सुस्त रवैये ने प्रोजेक्ट को बर्बाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। आज आलम यह है कि वुहान वायरस की डर से चीनी मजदूरों को सभी देशों से वापस भगाया जा रहा है।
कोरोना ने सबसे ज़्यादा नुकसान किसी को पहुंचाया है तो वह है अर्थव्यवस्था। चीन में काम कर रही विदेशी कंपनियों से लेकर चीनी आयात पर निर्भर देशों तक, सभी चीन पर ज़रूरत से ज़्यादा निर्भरता के दुष्परिणाम झेल रहे हैं और भविष्य में वे दोबारा इसे नहीं झेलना चाहते। इसी वजह से इस बात की आशंका काफी बढ़ गयी है कि जैसे ही इस महामारी का अंत होगा, वैसे ही चीन में काम करने वाली विदेशी कंपनियां चीन के मुक़ाबले वियतनाम और भारत जैसे सुरक्षित देशों में पलायन करना शुरू कर देंगी। इससे ना सिर्फ चीन की अर्थव्यवस्था को झटका लगेगा बल्कि चीन का प्रभाव भी दुनियाभर में कम होता दिखेगा।
चीन चाहता तो इस भयंकर बीमारी को दुनियाभर में फैलने से रोक सकता था, लेकिन इसने ठीक उसके उलट काम किया। चीन ने उस डॉक्टर को दंडित कर मौत की नींद सुला दिया जिसने सबसे पहले इस वायरस के होने की खबर को सार्वजनिक किया था। तब वुहान शहर की पुलिस ने उस डॉक्टर को ‘अफवाह’ फैलाने के दोष में पकड़ा और उसे हर तरीके से परेशान किया। अब वह डॉक्टर कोरोनावायरस की वजह से दम तोड़ चुका है।
लेकिन बात यहीं खत्म नहीं होती। चीन को जब पता लगा कि उसके यहां किसी नई बीमारी ने जन्म लिया है, तो उसने तुरंत अपने देश से लोगों के बाहर जाने पर पाबंदी लगाने का कोई विचार नहीं किया, बल्कि इसके बजाय उसने उन देशों की आलोचना करना शुरू कर दिया जिन्होंने चीनी फ्लाइट्स पर बैन लगाने का निर्णय लिया था और अपने नागरिकों को चीन जाने से रोका था।
सोचिए अगर इसी महामारी ने किसी लोकतान्त्रिक देश में जन्म लिया होता तो इसके क्या परिणाम होते। शुरुआत में जो डॉक्टर इस बीमारी के बारे में बताता, उसे पुलिस द्वारा पकड़ा नहीं जाता और ना ही उसे प्रताड़ित किया जाता। लोग उसकी बात सुनते और सतर्क हो जाते और क्षेत्रीय प्रशासन भी इस ‘नई बीमारी’ से सख्ती से निपटता।
Chinese doctor #LiWenliang, one of the eight "whistleblowers" who tried to warn other medics of the coronavirus outbreak but were reprimanded by local police, died from #coronavirus at 2:58 am Friday, the hospital where he received treatment announced. https://t.co/eCrNha7Nn1 pic.twitter.com/WYwDxZFBej
— Global Times (@globaltimesnews) February 6, 2020
जिस बीमारी को चीन के वुहान शहर तक सीमित रखा जा सकता था, उसे चीन के इस कम्युनिस्ट तंत्र ने पूरी दुनिया में फैला दिया। ऐसे में आज के समय में दुनिया में चीनी विरोधी मानसिकता को बढ़ावा मिलना स्वाभाविक है और इसी मानसिकता के सफाये के लिए अब चीन के इशारे पर वैश्विक मीडिया ने चीन के पक्ष में एजेंडा फैलाना शुरू कर दिया है।
इस महामारी के बाद चीन के लिए कई सवाल होंगे, चीन की कई जिम्मेदारियां होंगी और पूरी दुनिया का चीन के प्रति नज़रिया हमेशा के लिए बदल जाएगा। जिन देशों ने वुहान वायरस की वजह से अपने नागरिकों की जानें गवाई हैं, जिन लोगों ने चीनी वायरस की वजह से अपनों को खोया है, वे कभी पहले की तरह चीन को स्वीकार नहीं कर पाएंगे। चीन की कूटनीति पर इसका गहरा प्रभाव पड़ेगा और इस महामारी के बाद हमें दुनिया में एक नया चीन देखने को मिलेगा जो वापस अपनी विश्वसनीयता को पाने के लिए जद्दोजहद करता दिखाई दे रहा होगा।