“ऐसे तो RaGa भी BJP में चले जाएंगे”, कमलनाथ सरकार को बेहाल देख लिबरलों के पेट में भयंकर दर्द उमड़ा है

Awwwwwww!

होली के पर्व पर मध्य प्रदेश कांग्रेस को ज़बरदस्त झटका लगा, जब कांग्रेस के कद्दावर नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पार्टी छोड़ने का निर्णय सार्वजनिक किया और उनके साथ 19-22 कांग्रेसी विधायक कमलनाथ सरकार से नाता तोड़ लिए, जिससे फिलहाल कमलनाथ की सरकार अल्पमत में है। कमलनाथ के पैरों तले से जो ज़मीन जो खिसकी है, वो तो है ही, परंतु उनसे भी ज़्यादा यदि किसी को आघात पहुंचा है, तो वो है हमारी प्रिय लिबरल ब्रिगेड, जिनकी वर्तमान मनोस्थिति कुछ ऐसी है भैया धोबी के कुत्ते के समान हो गई है।

ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़ते ही लिबरल ब्रिगेड के कई सदस्यों के ज्ञान चक्षु खुल गए। कुछ तो देश की स्थिति पर ज्ञान बांटने लगे, तो कुछ कांग्रेस को ट्रोल करने लगे। खैर बात करें लिबरलों की, और राणा अय्यूब का नाम न आए, ऐसा हो सकता है क्या? महोदया को ज्योतिरादित्य सिंधिया के त्यागपत्र से ऐसा आघात लगा, मानो स्वयं के साथ ‘विश्वासघात’ हुआ है। तभी वे ट्वीट करती हैं, “क्या भारतीय राजनीति में सिद्धान्त नाम की कोई वस्तु है?”

इस पर एक ट्विटर यूजर ने फटाक से उत्तर दिया, “जा के उद्धव ठाकरे से पूछ लीजिये”।

इसी प्रकार से निधि राज़दान भी ट्वीट करने लगी, “ऐसे ही चलता रहा तो एक दिन राहुल गांधी भी भाजपा जॉइन कर लेंगे”। इस पर एक यूजर ने जवाब दिया, “अरे नहीं जी, वो पहले से ही भाजपा के लिए अच्छा काम कर रहे हैं”।

पूर्व बॉक्सर और कांग्रेस नेता विजेंदर सिंह भी अपने आप को रोक नहीं सके। उन्होंने भी ट्वीट किया, “भाई कोई तो खराबी है जो इतने बड़े नेता पार्टी छोड़कर जा रहे हैं”। हालांकि फिर उन्हें याद आया कि पार्टी ज्योतिरादित्य सिंधिया ने छोड़ी है, उन्होंने नहीं, और फलस्वरूप जनाब ने ट्वीट ही डिलीट कर दिया।

कुछ लीजेंड्री लोग तो ये तक कहने लगे कि ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ कर गद्दारी की है, जैसे कि जीतू पटवारी। महोदय कहिन, “एक इतिहास बना था 1857 में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की मौत से, फिर एक इतिहास बना था 1967 में संविद सरकार से और आज फिर एक इतिहास बन रहा है..। तीनों में यह कहा गया है कि हां हम है।”

अब भाई दर्द तो साफ समझ सकते हैं जीतू भैया की, आखिर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस पार्टी छोड़ने का ‘पाप’ जो किया है। ये बात तो सच है कि ग्वालियर के शासक जायाजी राव शिंदे [सिंधिया] ने रानी लक्ष्मीबाई से निपटने के लिए अंग्रेजों का साथ दिया था। परंतु अब इतिहास की बात छेड़ी ही जीतू भैया ने, तो यह भी बता दें कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के एक पूर्वज महड़जी शिंदे भी थे, जो अंतिम सांस तक अंग्रेजों के प्रभुत्व को भारत में जमने से रोक रहे थे।

इन्हीं ज्योतिरादित्य सिंधिया की दादी मां विजयाराजे सिंधिया ने न केवल कांग्रेस पार्टी की दमनकारी नीतियों का विरोध किया, बल्कि भारतीय जनता पार्टी के पूर्व संगठन, भारतीय जनसंघ को हर तरह से अपनी सहायता भी दी। अब सुबह का भूला शाम को घर लौट आए तो उसे भूला नहीं कहते जीतू भैया।

ऐसे ही दिग्विजय सिंह ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के इस निर्णय के लिए उन्हें संघी घोषित करने की चेष्टा भी की। एक वामपंथी यूजर को जवाब देते वक्त दिग्गी राजा कहते हैं, “आज कांग्रेस को आवश्यकता है कि वे उन सभी लोगों को मिटा दे, जो गांधीवाद के ऊपर संघी विचारधारा को प्राथमिकता देते हैं। पंडित नेहरू हमेशा ऐसे लोगों से लड़ते रहे। परंतु आरएसएस के अलग-अलग मुखौटों को धारण करने की कला अतुलनीय है”।

परंतु यह तो सोशल मीडिया है। यहां बड़े से बड़ा फिल्मस्टार नहीं बच पाया, तो भला दिग्गी मियां की क्या हस्ती? कुछ सोशल मीडिया यूजर्स ने आउटलुक के एक पुराने लेख को ढूंढ निकाला, जिसमें ये विस्तार से बताया गया कि कैसे दिग्विजय सिंह के पूर्वज हिन्दू महासभा का हिस्सा रहे हैं। उनके भाई लक्ष्मण सिंह ने तो 2004 में भाजपा की सदस्यता भी ग्रहण की थी। सही कहते थे हमारे मास्टरजी, होमवर्क नहीं करोगे तो आगे लेने के देने पड़ जाएंगे।

अब इसी पसोपेश में फ़िल्मकार अनुभव सिन्हा भी ज्ञान बाँचने लगे। जनाब ट्वीट करते हैं, “चुनाव बंद कर देना चाहिए। IPL Auction टाइप का कुछ शुरू कर देना चाहिए। चुनाव का पैसा भी बचेगा और हमारा टाइम भी। ढेर भाषण और रैली भी नहीं करना होगा। देश सेवा में स्वयं को समर्पित करने में लिए समय भी रहेगा। ठीक है?” –

लगता है थप्पड़ के घरेलू बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप होने का दुख अभी तक गया नहीं है। लंबे चौड़े पीआर कैम्पेन के बाद भी फिल्म का बॉक्स ऑफिस पर केवल 28 करोड़ कमाना साफ दिखता है कि इन्हें कितना जोरदार थप्पड़ पड़ा है।

अब ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा जॉइन करते हैं या नहीं, ये तो बाद की बात है, परंतु इतना तो साफ है कि उनके कांग्रेस छोड़ने से पार्टी को कम, और वामपंथियों को ज़्यादा आघात पहुंचा है, आखिर एजेंडा चलाने के लिए प्रभावशाली व्यक्ति तो चाहिए ही चाहिए। खैर, अब पछताए होत क्या, जब चिड़िया चुग गयी खेत।

Exit mobile version