इंडोनेशिया एक शांतिप्रिय देश था, फिर वहाँ ज़ाकिर नाइक गया, अब वहां से आतंकवादी निकलते हैं

इंडोनेशिया में ये लोग भारतीय दूतावास पर बड़े हमले की तैयारी कर रहे हैं

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इंडोनेशिया सरकार ने जकार्ता में भारतीय दूतावास के पास सख्त सुरक्षा इंतजामों का प्रबंध किया है, कारण है कट्टरपंथी इस्लामी समूहों द्वारा लगातार विरोध प्रदर्शन। दरअसल, इंडोनेशिया में भारतीय दूतावास के पास यह विरोध प्रदर्शन दिल्ली में पिछले दिनों एंटी सीएए की आड़ में हुए हिंदू विरोधी हिंदू दंगों के खिलाफ था।

इसी वजह से सुमात्रा के मेदान में भारतीय वाणिज्य दूतावास के बाहर पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था की गई है। जकार्ता में शीर्ष भारतीय राजनयिक जल्द ही इस मामले पर चर्चा करने के लिए इंडोनेशियाई उपराष्ट्रपति से मिलेंगे।

 

दक्षिण पूर्वी एशिया के देशों जैसे मलेशिया और इंडोनेशिया की सबसे खास बात यह रही है कि इन देशों में ऐतिहासिक रूप से अतिवाद देखने को नहीं मिला है। यहां के मुसलमान बाकी दुनिया के मुसलमानों से अलग संस्कृति का अनुसरण करते आए हैं। यहां की परंपरा में आपको हिन्दुत्व की छवि देखने को मिल जाएगी। हालांकि, जैसे-जैसे इन देशों में ज़ाकिर नाईक जैसे चरमपंथियों का प्रभाव बढ़ता जा रहा है, वैसे-वैसे इन देशों में भी अतिवादी मुस्लिमों की संख्या बढ़ती जा रही है।

हालांकि इंडोनेशिया में इस्लाम ने बहुत पहले ही अपना पांव पसार चुका था लेकिन ज़ाकिर नाईक ने उस इस्लाम को कट्टर और वहाबी इस्लाम में बदल दिया। भारत से बैन होने के बाद मलेशिया में शरण लिए हुए ज़ाकिर नाईक इंडोनेशिया के मुस्लिमों खास कर युवाओं में अपनी पकड़ बना चुका है, जिसके कारण वे कट्टरपंथ को अपना रहे हैं।

वर्ष 2017 में हुए चुनावों में ज़ाकिर नाईक के भाषणों का काफी प्रभाव हुआ था और कई स्थान पर तो गैर मुस्लिम उम्मीदवार को 58 प्रतिशत मतों से से हार का सामना करना पड़ा था। Youtube पर ज़ाकिर नाईक को इन देशों में खूब सुना जा रहा है। वहीं कई समाचार पत्र भी उसके भाषण को बढ़ावा देकर वहाबी इस्लाम को बढ़ा रहे हैं। रिपुबलिका, जिसकी इंडोनेशिया में मुसलमानों के बीच एक बड़ी रीडरशिप है, ने डॉ. नाइक के कुछ भाषणों को भी प्रकाशित किया।

सिर्फ यही नहीं DW की एक रिपोर्ट के अनुसार इंडोनेशिया में बढ़ती कट्टरता की एक वजह सऊदी अरब से आने वाला पैसा भी है, जिससे कट्टरपंथ को बढ़ावा देने वाले स्कूल चलाये जा रहे हैं। सऊदी अरब से भी लोग वहां जाकर कट्टर वहाबी विचारधारा का प्रचार कर रहे हैं।

हाल के सालों में ऐसे मौलवियों का प्रभाव भी बढ़ा है जो देश को पूरी तरह एक इस्लामी राष्ट्र बनाने की कोशिश कर रहे हैं। आईएसईएएस के सर्वे में हिस्सा लेने वाले लोगों की बड़ी तादाद का मानना है कि अगर शरिया कानून लागू किया जाए तो उसके बहुत फायदे होंगे। उनके अनुसार सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि समाज के नैतिक मूल्यों को सुरक्षित किया जा सकेगा।

इंडोनेशिया मामलों के विशेषज्ञ रैचेल रिनाल्डो कहती हैं, “इंडोनेशिया में इस्लाम निश्चित तौर पर ज्यादा से ज्यादा राजनीतिक हो गया है और राजनेता ऐसे रुढ़िवादी और कट्टरपंथी मुस्लिम संगठनों से निकटता बढ़ा रहे हैं जो शरियत को लागू करने जैसे कदमों का समर्थन करते हैं।”

वर्ष 2016 से IS द्वारा निकाली जाने वाली मैगजीन अल फतिहिन हर सप्ताह मलय और इंडोनेशियाई भाषा में भी निकाली जाने लगी। 2018 से इंडोनेशिया में 11 और फिलीपींस में छह आत्मघाती हमले हो चुके हैं। हर सप्ताह स्थानीय अखबारों में चरमपंथियों के पकड़े जाने की खबरें आती हैं।

DW की एक रिपोर्ट के अनुसार- बॉन यूनिवर्सिटी में इंडोनेशिया विशेषज्ञ सुजैन श्रोएटर का कहना है कि पिछले कुछ दिनों से इस इलाके में चरमपंथ बढ़ा है और सहिष्णुता घटी है। वो कहते हैं, “युवा लोगों का कट्टर इस्लाम की तरफ झुकाव बढ़ा है। वे इस्लाम में चल रही रूढ़ियों की तरफदारी करते हैं। राजनीतिक पार्टियां उनके वोट पाने के लिए इन रूढ़ियों का समर्थन कर रही हैं। इस वजह से समाज का इस्लामीकरण हो रहा है जो धीरे-धीरे चरमपंथ में बदल जाता है।”

न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, इंडोनेशिया में ISIS ने आतंकवाद का स्वरूप ही बादल दिया है और कट्टरपंथियों की भर्ती कर उन्हें वापस उनके देश भेज दे रहा है और फिर आतंकी हमले करवा रहा है, इतना ही नहीं महिलाओं को भी इसमें शामिल किया जा रहा है।

इंडोनेशिया में धार्मिक कट्टरता का चलन यूं तो आज सामने आया है लेकिन यह चलन कई दशकों से चली आ रही उस प्रक्रिया का हिस्सा है जो 1980 के दशक में शुरू हुई थी। उस समय इंडोनेशिया में तानाशाह सुहार्तो का शासन था और जब वह वैधानिकता खोने लगे तो उन्होंने अपनी गिरती लोकप्रियता को बढ़ाने के लिए इस्लाम और इस्लामी संस्थाओं का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया।

लेकिन मौजूदा समय में जिस तरह से कट्टरपंथ बढ़ रहा है उससे सिर्फ इंडोनेशिया को ही नहीं बल्कि विश्व के अन्य देशों के लिए खतरा है। अगर इसी तरह चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब यह देश मिडिल ईस्ट की तरह वीरान हो जाएगा।

अगर इंडोनेशिया और South East Asia के अन्य देशों ने इस समस्या को नहीं समझा और ज़ाकिर नाईक जैसे आतंकवादियों को अपने देश से नहीं निकाला तो भविष्य में इन देशों के लिए और बड़ी समस्या खड़ी हो सकती है।

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