पिछले हफ्ते हिंदुओं को कट्टर बोलने वाला ईरान आज कोरोना से लड़ने के लिए भारत की मदद मांग रहा है

भारत को ईरान की मदद करनी चाहिए कि नहीं?

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कुछ दिनों पहले दिल्ली दंगों पर भारत को ज्ञान देने वाला और हिन्दुओं को कट्टर बोलने वाला ईरान अब कोरोना से लड़ने के लिए भारत की मदद मांग रहा है। Iran के राष्ट्रपति ने पीएम मोदी को एक पत्र लिखकर भारत से Iran की मदद करने की विनती की है और साथ ही ईरान ने भारत को Iran पर लगे प्रतिबंधों को हटाने के लिए भी अमेरिका पर दबाव बनाने की भी अपील की है।

अमेरिका के प्रतिबंधों के कारण पहले ही ईरानी अर्थव्यवस्था का बुरा हाल था, अब कोरोनावायरस ने ईरानी अर्थव्यवस्था के ताबूत में आखिरी कील ठोकने का काम किया है। ईरानी अर्थव्यवस्था इस कदर तक बर्बाद हो चुकी है कि Iran ने 6 दशकों में पहली बार IMF से 5 बिलियन डॉलर का आपातकाल लोन लेने की अर्जी दायर की है।

अब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को Iran के राष्ट्रपति का पत्र लिखा जाना दिखाता है कि Iran वाकई कोरोना के खिलाफ जारी लड़ाई में दम तोड़ चुका है और उसे जल्द से जल्द भारत की मदद की ज़रूरत है। रुहानी ने पीएम मोदी को लिखे अपने पत्र में लिखा है, ‘वायरस कोई सीमा नहीं पहचानता और राजनीतिक, धार्मिक, जातिगत और नस्लीय अवधारणाओं से ऊपर उठकर लोगों की जान लेता है।’ इसी मामले में ईरानी विदेश मंत्री जवाद जरीफ ने एक ट्वीट में लिखा-

“जब पूरी दुनिया में कोरोना वायरस की महामारी से हड़कंप मचा है, ऐसे नाजुक वक्त में प्रतिबंध लगाना बेहद अनैतिक है। राष्ट्रपति रुहानी ने दुनिया के अपने समकक्षों को पत्र लिखकर अमेरिकी प्रतिबंधों पर वैश्विक नेताओं का ध्यान खींचा है। बेगुनाहों की जान जाते देखना घोर अनैतिक है। वायरस न तो राजनीति देखता है न भूगोल, इसलिए हमें भी ऐसा नहीं देखना चाहिए”।

Iran द्वारा भारत के सामने मदद की गुहार लगाना इसलिए हैरानी भरा है क्योंकि पिछले हफ्ते ही Iran ने दिल्ली दंगों को लेकर भारत की आलोचना की थी। Iran के सर्वोच्च नेता खमनेई ने तब ट्वीट किया था- ‘भारत में मुस्लिमों के नरसंहार पर दुनियाभर के मुस्लिमों का दिल दुखी है। भारत सरकार को कट्टर हिंदुओं और उनकी पार्टियों को रोकना चाहिए और इस्लामिक देशों की ओर से अलग-थलग होने से बचने के लिए भारत को मुस्लिमों के नरसंहार को रोकना चाहिए”। खमनेई ने ट्वीट के साथ ही #IndianMuslimslnDanger का भी इस्तेमाल किया था।

हालांकि, इसके महज़ एक हफ्ते बाद भारत के सामने इरान द्वारा मदद की गुहार करना दिखाता है कि Iran अकेले कोरोना को काबू करने में विफल साबित हो रहा है। वर्ष 2015 में Iran न्यूक्लियर डील के बाद जब Iran पर अमेरिकी प्रतिबंधों का प्रभाव कम किया गया था, तो Iran की अर्थव्यवस्था में वर्ष 2016 में 10 प्रतिशत से ज़्यादा की दर से विकास हुआ था। हालांकि, वर्ष 2017 में ट्रम्प प्रशासन द्वारा इस डील को रद्द करने और दोबारा कड़े प्रतिबंध लगाने की वजह से Iran की अर्थव्यवस्था लगातार सिकुड़ती जा रही है। वर्ष 2019 में IMF ने अनुमान लगाया था कि Iran की अर्थव्यवस्था 6 प्रतिशत तक कम हो सकती है।

Iran एक तेल समृद्ध देश है जिसकी अर्थव्यवस्था को मूलतः क्रूड ऑयल के एक्सपोर्ट से ही सहारा मिलता है। लेकिन वर्ष 2017 में ट्रम्प प्रशासन ने CAATSA लाकर उन सभी देशों को भी प्रतिबंध की धमकी दी, जो Iran के साथ अपने आर्थिक रिश्ते बरकरार रखना चाहते थे। इसका नतीजा यह हुआ कि दुनिया के अधिकतर देशों ने Iran से कच्चा तेल खरीदना बंद कर दिया और Iran के ऑयल एक्सपोर्ट में भारी कमी देखने को मिली।

वर्ष 2018 में Iran जहां 2.5 मिलियन बैरल कच्चा तेल एक दिन में एक्सपोर्ट करता था, तो वहीं आज Iran सिर्फ 0.25 मिलियन बैरल कच्चे तेल से भी कम तेल एक्सपोर्ट कर पाता है। Iran की ऐसी हालत तब हुई है जब भारत और चीन जैसी बड़ी आर्थिक शक्तियां भी Iran पर इस प्रतिबंध के पक्ष में नहीं थीं। Iran को इन देशों के साथ होने से भी कोई खास फायदा नहीं पहुंच पाया।

इससे Iran की अर्थव्यवस्था ICU में चली गयी और साथ ही अमेरिका के साथ चल रहे तनाव के कारण उसकी अर्थव्यवस्था पर सेना का बोझ भी बढ़ता गया। अब जब से कोरोनावायरस इस देश में फैला है, तो Iran इसे काबू करने में विफल साबित होता जा रहा है, और अब उसने भारत के सामने मदद मांगना शुरू कर दिया है। भारत को अब ऐसे समय में Iran की उचित मदद करनी तो चाहिए लेकिन पिछले हफ्ते ही भारत पर दिये बयान को लेकर भी भारत सरकार को Iran की ज़िम्मेदारी तय करनी चाहिए।

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