कभी मध्य प्रदेश में अनंत काल तक शासन करने का दावा करने वाले कमलनाथ अब अमित शाह के सामने गिड़गिड़ाते हुए दिखाई दे रहे हैं। हाल ही में कमलनाथ ने गृह मंत्री अमित शाह को एक पत्र लिखा है, जिसमें उन्होंने बागी विधायकों को बेंगलुरु से ‘रिहा’ करने की भीख मांगी है।
पत्र के एक अंश अनुसार,
“मेरा आपसे साग्रह अनुरोध है कि आप कृपया केन्द्रीय गृहमंत्री के नाते अपनी शक्तियों का प्रयोग करें जिससे कांग्रेस के जिन 22 विधायकों को बंधक बनाया है, वे वापस मध्य प्रदेश सुरक्षित पहुंच सकें और 16 मार्च से प्रारम्भ होने वाले विधानसभा सत्र में वे विधायक के रूप में अपनी जिम्मेदारियों का बिना भय और लालच के निर्वाह कर सके”।
बता दें कि 9 मार्च को मध्य प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पार्टी की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया, और उनके साथ 22 अन्य विधायकों ने भी एमपी के राज्यपाल और सदन के स्पीकर को अपना त्यागपत्र सौंप दिया, जिससे कमलनाथ की सरकार अल्पमत में आ गई है। फिलहाल, मध्य प्रदेश के राज्यपाल लालजी टण्डन ने 16 मार्च के दिन कमलनाथ की सरकार को विश्वास मत पेश करने के लिए कहा है और इसके बाद ही तय होगा कि मध्य प्रदेश का आगामी भविष्य क्या होगा।
वो कहते हैं न, बोये पेड़ बबूल के तो आम कहां से होए? मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया कड़ी मेहनत की वजह से कांग्रेस ने 15 वर्ष बाद मध्य प्रदेश में सत्ता प्राप्त की थी, परंतु उनके कौशल को नज़रअंदाज़ कर कमलनाथ को मुख्यमंत्री का पद सौंपा गया। उसके बाद से कमलनाथ के आते ही मानो सिंधिया और मध्य प्रदेश, दोनों की ही खुशियों को ग्रहण लग गया।
जहां ज्योतिरादित्य सिंधिया के कद को दबाने के लिए कमलनाथ और दिग्विजय सिंह का गठजोड़ एड़ी चोटी का ज़ोर लगाता रहा, तो वहीं कमलनाथ सरकार की कुशासन के कारण मध्य प्रदेश एक बार फिर से विवादों का केंद्र बन गया।
परंतु ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस से इस्तीफा देकर भाजपा में आगमन के बाद से पूरे कांग्रेस की नींद उड़ गई है। जहां कमलनाथ अपने बाकी विधायकों को एकजुट रखने के लिए जयपुर से दिल्ली भागे-भागे फिर रहे हैं, तो वहीं राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को भी अपने सरकार के खोने का खतरा बना हुआ है।
कमलनाथ की हालत धोबी के कुत्ते के समान हो चुकी है, जो न घर का रहा, न घाट का। वे अब उसी मुहाने पर खड़े हैं, जहां पिछले वर्ष कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी थे। कर्नाटक में भाजपा ने सबसे ज़्यादा सीटें जीती थीं, पर चूंकि वे बहुमत के आंकड़े से दूर थी, इसलिए कांग्रेस ने जेडीएस के अध्यक्ष एचडी कुमारस्वामी के साथ सांठगांठ कर एक खिचड़ी सरकार बनाई, जिसमें महज 37 सीटें जीतने वाले एचडी कुमारस्वामी राज्य के मुख्यमंत्री बन गए। परंतु मुख्यमंत्री का पद उनके लिए मानो किसी दुस्वप्न से कम नहीं था।
एक ओर जहां कुमारस्वामी सत्ता पर अपनी पकड़ न होने का रोना रो रहे थे, तो वहीं कांग्रेस कर्नाटक में भारत विरोधी तत्वों को बढ़ावा देने में लगी हुई थी। फलस्वरूप 2019 के लोकसभा चुनाव में जहां इस खिचड़ी गठबंधन को 28 में से केवल 2 सीटें प्राप्त हुई, तो वहीं जुलाई आते-आते कुमारस्वामी को सत्ता से हाथ भी धोना पड़ा, जब 15 से ज़्यादा कांग्रेस विधायक पार्टी के विरुद्ध विद्रोह कर बैठे, और कांग्रेस जेडीएस की खिचड़ी सरकार विश्वासमत में 6 वोटों से हार गयी।
अब कमलनाथ को भी इसी बात का डर सता रहा है कि कहीं उनके साथ भी एचडी कुमारस्वामी जैसा हाल न हो। इसीलिए वे एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा रहे हैं, यहां तक कि अमित शाह से विधायकों को ‘रिहा’ करने की भीख मांग रहे हैं। परंतु कमलनाथ बाबू! अब पछताए होत क्या, जब चिड़िया चुग गयी खेत।