कोरोना पर इनकी करतूत देखकर आप भी कहेंगे- ममता देश की सबसे गैर-जिम्मेदार और घटिया CM हैं

इन्हें पश्चिम बंगाल का CM कभी नहीं होना चाहिए था

ममता बनर्जी

PC: Patrika

कोरोना महामारी ने पूरी दुनिया में त्राहि त्राहि मचा रखी है। भारत में इस वायरस के पॉज़िटिव केस 700 पार कर चुके हैं। केंद्र सरकार और राज्य सरकारें भी इस बीमारी को रोकने के लिए केंद्र सरकार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। उत्तर प्रदेश, तेलंगाना और ओडिशा कुछ नाम है जो केंद्र सरकार का पूरा सहयोग कर रहे हैं। परंतु इस विपत्ति के समय में भी कुछ ऐसे मुख्यमंत्री हैं जो तुष्टीकरण की राजनीति करने में लगे हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इसमें सबसे ऊपर हैं। अगर भारत के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों की लिस्ट बनाई जाए तो ममता का नाम इस महामारी के समय में सबसे खराब मुख्यमंत्रियों की लिस्ट में सबसे ऊपर होगा। कैसे ममता बनर्जी इस महामारी के समय में भी दलगत राजनीति से नहीं उठ पायी आइए देखते हैं।

पश्चिम बंगाल में कोरोना के अभी तक 10 मामले सामने आ चुके हैं लेकिन बाकी राज्यों के मुकाबले टेस्ट भी कम ही हुए हैं। जब मार्च के शुरुआती दिनों में इस महामारी ने अभी अपने कदम बढ़ाने शुरू किए थे और केंद्र सरकार ने आवश्यक कदम उठाना प्रारम्भ कर दिया था, तब ममता बनर्जी ने 4 मार्च को यह कहा था कि केंद्र सरकार कोरोना को महामारी का रूप बता कर दिल्ली दंगों को ढकना चाहती है। उन्होंने एक रैली में कहा था कि इस बीमारी से डरने की जरूरत नहीं है।

इसके बाद जब पीएम मोदी ने 22 मार्च को जनता कर्फ़्यू लगाने का आह्वान किया था तब ममता बनर्जी की पार्टी TMC ने कहा था कि PM Modi के इस भाषण में भी हिन्दुत्व का एजेंडा छिपा है। अब आप ही बताइये कि इस महामारी में जब भारत अन्य देशों के मुक़ाबले अधिक सावधानी बरत रहा है तो ऐसे समय में TMC की तरफ से ऐसा बयान आना कितनी शर्मनाक बात है।

यही नहीं पश्चिम बंगाल की सरकार ने पीएम मोदी के इस आह्वान को नजरंदाज करने की भी कोशिश की। पश्चिम बंगाल सरकार की तरफ से 22 मार्च को JanataCurfew के दौरान विभिन्न स्कूलों में चावल और आलू वितरित करने के लिए एक आदेश जारी किया गया था। उस दौरान सभी शिक्षकों (प्राथमिक) को उपस्थित रहने के लिए कहा गया था। इस पर ट्वीट करते हुए राज्य सभा के सांसद स्वपनदास गुप्ता ने कहा था कि, रविवार के जनता कर्फ्यू के प्रभाव को कम करने के लिए, ममता बनर्जी की सरकार ने आदेश दिया है कि चावल और आलू कल स्कूलों में वितरित किए जाएंगे। इसका मतलब है कि स्कूलों में भीड़ होगी। यह कार्य सोमवार को भी किया जा सकता था, लेकिन इन्होंने जानबूझकर  यह रविवार को रखा। यह प्रतिशोधात्मक राजनीति है।

 

इसके बाद जब 23 मार्च को पश्चिम बंगाल से कोरोना से होने वाली पहली मृत्यु की खबर आई तो ममता बनर्जी ने केंद्र पर ही आरोप लगा दिया कि केंद्र सरकार घरेलू उड़ानों को न रोक कर quarantine protocol को तोड़ रही है।

इससे पहले जब प्रधानमंत्री मोदी ने देश के राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरीय बैठक की थी, तब भी ममता बनर्जी ने सभी का ध्यान आकर्षित करने के लिए केंद्र सरकार पर ही आरोप लगा दिया था कि पश्चिम बंगाल में सिर्फ 40 covid-19 टेस्टिंग किट मौजूद हैं। लेकिन इस आरोप के तुरंत बाद स्वास्थ्य मंत्री ने बताया था कि 40 किट का यहां मतलब सिर्फ 40 टेस्ट नहीं होता। उन्होंने यह बताया था कि पश्चिम बंगाल में जीतने टेस्ट किट मौजूद है उसका 10 प्रतिशत भी इस्तेमाल नहीं किया गया है।

गवर्नर को भेजी अपनी रिपोर्ट में उन्होंने बताया था कि पश्चिम बंगाल ने 2500 किट में से सिर्फ 199 टेस्ट ही किए हैं। उन्होंने यह भी बताया था कि पश्चिम बंगाल में ICMR से aproved 4 टेस्ट सेंटर हैं लेकिन पश्चिम बंगाल की सरकार इनमें से सिर्फ 3 केंद्रों पर ही टेस्ट कर रही है। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि ममता बनर्जी ने किस प्रकार से केंद्र के हर कदम का विरोध करने की कोशिश की है जिससे इस महामारी के आग की तरह फैलने की स्थिति बनी हुई है।

अब एक नए फैसले में ममता बनर्जी ने राज्य के लॉकडाउन में ढील देने का प्लान बनाया है और कारण है बंगाली नववर्ष। ममता बनर्जी की यह गलती घातक साबित हो सकती है, जैसे चीन ने भी नववर्ष मनाने की छूट दे दी थी जिसके बाद कोरोनावायरस आज की तरह फैला और और हजारों लोगों की जान ले ली।

ममता बनर्जी अपनी प्रतिशोधात्मक राजनीति की राह पर चलते चलते पश्चिम बंगाल की पूरी जनता के जीवन को खतरे में डाल रही है। देश के सभी राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों ने इस महामारी के समय में केंद्र का साथ देने का फैसला किया है, लेकिन ममता अभी भी अपना फायदा ही देख रही है। उनके उठाए गए कदमों से इतिहास में उनका नाम देश की सबसे खराब मुख्यमंत्री में दर्ज होगा।

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