मांझी और तेजस्वी से मुलाकात: नीतीश कुमार BJP से भाग रहे हैं लेकिन BJP निक्कू प्रेम नहीं छोड़ रही

ऐसे ठग को ढकेलकर भगा देना चाहिए!!

नीतीश कुमार, बिहार, मांझी, भाजपा,

ऐसा कोई सगा नहीं, जिसे नीतीश ने ठगा नहीं। बिहार की राजनीति में अक्सर यह देखने को मिलता रहा है। अब इस साल बिहार विधानसभा चुनाव से पहले नीतीश फिर यही दोहराने के संकेत दे रहे हैं। फरवरी महीने में जहां नीतीश कुमार ने NDA के कट्टर विरोधी RJD के नेता तेजस्वी यादव से मुलाक़ात की थी, तो वहीं अब बीते मंगलवार को उन्होंने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और HAM (हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा) पार्टी के अध्यक्ष जीतनराम मांझी से मुलाक़ात की।

इससे पहले वे NRC पर बीजेपी के खिलाफ जाकर बिहार विधानसभा में एकमत से प्रस्ताव भी पारित कर चुके हैं। वहीं दूसरी ओर बिहार बीजेपी इस पूरे मामले पर एकदम शांत बैठी है और वह ना तो नीतीश के किसी बयान पर कोई आपत्ति जताती है, और ना ही नीतीश से कोई जवाब मांगती है। ऐसे में BJP की केंद्रीय इकाई को जल्द से जल्द इस मामले पर संज्ञान लेकर नीतीश कुमार की ज़िम्मेदारी तय करने की ज़रूरत है।

मंगलवार को नीतीश कुमार से मिलने के बाद जीतनराम मांझी ने कहा कि उनकी नीतीश कुमार से मुलाक़ात करने को लेकर बेतुकी कयासे लगाना उचित नहीं है। यह मुलाक़ात इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि एक दिन पहले ही बिहार चुनाव को देखते हुए मांझी ने ‘जल्द से जल्द’ RJD और तीन अन्य पार्टियों के महागठबंधन को एक पैनल बनाने को कहा था। अब नीतीश कुमार की मांझी से मुलाक़ात ने बिहार में राजनीतिक गलियारों में दोबारा हलचल मचा दी है।

ऐसा भी हो सकता है कि नीतीश कुमार चुनावों में BJP से ज़्यादा सीटें हासिल करने के लिए BJP पर दबाव बना रहे हों और लगातार अन्य राज्यों में सरकार खोती जा रही BJP की कमजोरी का फायदा उठाकर अपने हितों को सर्वोपर्रि रखते हुए सीट बंटवारे पर समझौता करने की योजना बना रहे हों। यह बात सच है कि BJP ने झारखंड और महाराष्ट्र में अपनी सरकार खोई है और दिल्ली में उसे अगले 5 सालों के लिए सत्ता से और दूर कर दिया गया है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि BJP अब बिहार जैसे राज्य में बैकफुट पर आ जाएगी। बिहार में हुए लोकसभा चुनावों में NDA को 40 में से 39 सीटें मिली थीं, जो यह दर्शाता है कि पीएम मोदी की लोकप्रियता राज्य में बरकरार है।

नीतीश कुमार का इतिहास रहा है कि वे चुनावों की परिस्थिति और अपना हित देखकर यू टर्न लेते हैं। एक समय पर लालू यादव के खास माने जाने वाले नीतीश कुमार 1995 के बाद एनडीए से जुड़ गए। कई वर्षों बाद जब इनके लाख विरोध के बावजूद नरेंद्र मोदी को एनडीए का प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनाया गया, तो उन्होंने एनडीए से संबंध तोड़ते हुए राजद से एक बार फिर अपने संबंध मजबूत किए।

वर्ष 2015 में दोनों पार्टियों ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा और BJP को हराया लेकिन वर्ष 2017 में नीतीश पलटी मारते हुए BJP के साथ आ गए और BJP की सहायता से दोबारा CM बने। अब लगता है कि इस साल वे दोबारा NDA से बाहर पलटी मार सकते हैं।

BJP को नीतीश को लेकर अभी से सतर्क होने की ज़रूरत है और भाजपा को नीतीश का यह व्यवहार बिलकुल भी बर्दाश्त नहीं करना चाहिए। BJP को ना सिर्फ नीतीश से इस संबंध में सख्त सवाल पूछने चाहिए बल्कि उन्हें CM पद का दावेदार भी नहीं बनाना चाहिए। अगर नीतीश ने भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ लिया और जीत लिया तो वे उसके बाद भी किसी भी वक्त पाला पलट सकते हैं। ऐसे में भाजपा को बेहद सावधान होने की आवश्यकता है।

Exit mobile version