शिवसेना के मुखपत्र सामना को एक बार फिर एक मुख्य संपादक मिला है। पर ठहरिए, यह संजय राऊत नहीं है। नेपोटिज़्म की अद्भुत मिसाल पेश करते हुए उद्धव ठाकरे की पत्नी रश्मि को सामना का मुख्य संपादक बनाया है, जबकि संजय राऊत अब कार्यकारी संपादक रहेंगे। पुरानी परिपाटी को कायम रखते हुए उद्धव ठाकरे ने न केवल परिवारवाद को कायम रखा है, बल्कि संजय राऊत को पूरी तरह साइडलाइन कर दिया है।
बता दें की 1989 में स्थापना से लेकर 2012 में मृत्यु तक ‘सामना’ के मुख्य संपादक बाल ठाकरे रहे थे। उनकी मृत्यु के बाद उद्धव ठाकरे ने यह दायित्व संभाला था। जब उद्धव मुख्यमंत्री बनें, तो सबको लग रहा था कि संजय राऊत यह ज़िम्मेदारी संभालेंगे। परंतु उद्धव ने संजय को यह पद न देकर यह सिद्ध कर दिया है कि अब उन्हे संजय की कोई विशेष आवश्यकता नहीं रह गई है।
इससे पहले विभिन्न मीडिया आउटलेट्स ने बताया है कि कैसे रश्मि ठाकरे पार्टी के कामकाज के लिए दिन में बहुत सक्रिय रुचि ले रही हैं। वे नियमित रूप से महिला पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ बैठकें करती हैं और उनके साथ पार्टी के मुद्दों पर चर्चा करती हैं। रिपोर्टों के अनुसार, यह रश्मि ठाकरे ही थी, जिन्होंने भाजपा के साथ विश्वासघात करने के लिए उद्धव ठाकरे और शिवसेना को उकसाया था। वे चाहती थीं कि उनका बेटा आदित्य ठाकरे राज्य का सबसे युवा सीएम बने। हालांकि, दोनों दलों के बीच गठबंधन टूटने के बाद, उद्धव ठाकरे के अंत में संकोच के बावजूद, उन्होंने और राऊत ने राकांपा और कांग्रेस के साथ गठबंधन के लिए आक्रामक रुख अपनाया।
इतना ही नहीं, मीडिया के कुछ सूत्रों की माने तो अमित शाह गठबंधन के संरक्षण बारे में ठाकरे परिवार से बात करने और मुद्दों को सुलझाने के लिए तैयार थे, लेकिन, जब उन्हें पता चला कि रश्मि ठाकरे परिवार के प्रतिनिधियों में से एक होंगी, तो उन्होंने इस विचार को छोड़ दिया। रश्मि ठाकरे ने न केवल कांग्रेस और एनसीपी के साथ गठबंधन तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, बल्कि वह भाजपा के साथ गठबंधन तोड़ने के लिए भी जिम्मेदार हैं।
चूंकि उद्धव एक विशुद्ध राजनीतिक व्यक्ति नहीं हैं और न ही वे वास्तव में सत्ता के पीछे लालायित हैं, ऐसे में हमें हैरान नहीं होना चाहिए यदि ये कैबिनेट वास्तव में श्रीमति ठाकरे चला रही हों। यानि महाराष्ट्र में मनमोहन सिंह जैसे ही एक कठपुतली प्रशासक है, अंतर बस इतना है कि इस सीएम की डोर किसी विदेशी के हाथ में नहीं है।
एक चतुर राजनेता की भांति उन्होंने संजय राउत का कद कम करते हुए अपने आप को पार्टी में नंबर दो के रूप में तैनात कर लिया है। जहां उद्धव ठाकरे सरकारी मामलों को समझने में व्यस्त हैं, रश्मि वास्तव में पार्टी को चला रही हैं। उसने लोगों के साथ-साथ अन्य पार्टी के नेताओं को भी स्पष्ट कर दिया कि उनकी नियुक्ति सामना के मुख्य संपादक के रूप में आखिर क्यों हुआ है।
इस पूरे प्रकरण में यदि किसी को सबसे ज़्यादा नुकसान हुआ है, तो वो हैं संजय राउत। पहले उनके भाई को उनके बेहतरीन प्रयासों के बावजूद मंत्रिमंडल से बाहर कर दिया गया, बाद में उन्हें इंदिरा गांधी और ठाकरे परिवार के खिलाफ उनके बयानों के लिए टिप्पणी करने के लिए पार्टी द्वारा अपमानित किया गया था, और अब उन्हें मुख्य संपादक पद से भी दूर रखा गया है।
राउत ने त्रिकोणीय पार्टी गठबंधन को इस उम्मीद में तैयार किया कि वह पार्टी और सरकार में नंबर दो पर होंगे, लेकिन उन्हें कहीं भी जगह नहीं मिली। सरकार में नंबर दो पर अजीत पवार हैं वहीं अब पार्टी में नंबर दो पर उद्धव की पत्नी रश्मी ठाकरे हो गई हैं। ऐसे में उद्धव ने संजय राउत को न घर का न घाट का बना दिया है।