‘मुसलमानों का नरसंहार बंद करो’, भारत के खिलाफ Iran की इस नई दुश्मनी का कारण Economy है

दिल्ली में हुई हिंसा पर ईरान लगातार भारत विरोधी बयानबाज़ी करने से बाज़ नहीं आ रहा है। पहले ईरान के विदेश मंत्री ने सबको हैरान करते हुए भारत में हुई “मुस्लिम विरोधी हिंसा” की कड़ी निंदा की। बाद में जब भारत ने ईरान को भारत के अंदरूनी मामलों में दखलंदाजी करने से इंकार किया तो ईरान के सुप्रीम लीडर ने सीधे भारत के हिंदुओं को ही निशाने पर ले लिया। बीते गुरुवार को ईरान के सर्वोच्च नेता खमनेई ने ट्वीट किया, ‘भारत में मुस्लिमों के नरसंहार पर दुनियाभर के मुस्लिमों का दिल दुखी है। भारत सरकार को कट्टर हिंदुओं और उनकी पार्टियों को रोकना चाहिए और इस्लामिक देशों की ओर से अलग-थलग होने से बचने के लिए भारत को मुस्लिमों के नरसंहार को रोकना चाहिए”। खमनेई ने ट्वीट के साथ ही #IndianMuslimslnDanger का भी इस्तेमाल किया।

ईरान के नेताओं का इस तरह लगातार भारत की आलोचना करना इसलिए हैरानी भरा है क्योंकि आमतौर पर ईरान और भारत के रिश्ते मधुर ही रहे हैं। ईरान में भारत चाबहार पोर्ट भी विकसित कर रहा है, जिसके लिए इसी वर्ष भारत ने अपने बजट में 100 करोड़ रुपये का बजट जारी किया था। ईरान पर पहले ही अमेरिकी और यूरोपियन प्रतिबंध लगे हुए हैं, जिसके कारण भारत का यह प्रोजेक्ट और ज़्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है।

लेकिन इस प्रोजेक्ट के अलावा भारत और ईरान के बीच किसी अन्य प्रोजेक्ट पर कोई काम नहीं हो पाया है। इसके साथ ही दोनों देशों का व्यापार भी पूरी तरह ठप पड़ चुका है। अमेरिका के प्रतिबंधों से मिली छूट की अवधि पिछले वर्ष मई में समाप्त होने के बाद भारत ने ईरान से कच्चा तेल खरीदना बंद कर दिया था। अमेरिका ने ईरान के साथ परमाणु समझौते से खुद को अलग करने के बाद उसके खिलाफ कई आर्थिक प्रतिबंध लगाने की घोषणा की थी, जिसके बाद भारत और ईरान का द्विपक्षीय व्यापार लगभग ना के बराबर हो गया है। अब CAA और कश्मीर पर भारत की आलोचना कर ईरान कहीं ना कहीं भारत को यह संदेश देना चाहता है कि अगर भारत जल्द ही ईरान क साथ द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ाने के लिए और ईरान का कच्चा तेल खरीदने के लिए कदम नहीं उठाता है, तो इरान इस्लामिक दुनिया में भारत को अलग-थलग कर देगा।

हालांकि, यह कहना बेहद मुश्किल ही है कि इरान के पास भारत को अलग-थलग करने की कूटनीतिक शक्ति है, क्योंकि अभी ईरान खुद ही कूटनीतिक तौर पर पूरी दुनिया में अलग-थलग पड़ा हुआ है। वर्ष 2015 में ईरान न्यूक्लियर डील के बाद जब ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों का प्रभाव कम किया गया था, तो ईरान की अर्थव्यवस्था वर्ष 2016 में 10 प्रतिशत से ज़्यादा की दर से विकास हुआ था।

हालांकि, वर्ष 2017 में ट्रम्प प्रशासन द्वारा इस डील को रद्द करने और दोबारा कड़े प्रतिबंध लगाने की वजह से ईरान की अर्थव्यवस्था लगातार सिकुड़ती जा रही है। वर्ष 2019 में IMF ने अनुमान लगाया था कि ईरान की अर्थव्यवस्था 6 प्रतिशत तक कम हो सकती है। ईरान एक तेल समृद्ध देश है जिसकी अर्थव्यवस्था को मूलतः क्रूड ऑयल के एक्सपोर्ट से ही सहारा मिलता है। लेकिन वर्ष 2017 में ट्रम्प प्रशासन ने CAATSA लाकर उन सभी देशों को भी प्रतिबंध की धमकी दी, जो ईरान के साथ अपने आर्थिक रिश्ते बरकरार रखना चाहते थे।

इसका नतीजा यह हुआ कि दुनिया के अधिकतर देशों ने ईरान से कच्चा तेल खरीदना बंद कर दिया और ईरान के ऑयल एक्सपोर्ट में भारी कमी देखने को मिली। वर्ष 2018 में ईरान जहां 2.5 मिलियन बैरल कच्चा तेल एक दिन में एक्सपोर्ट करता था, तो वहीं आज ईरान सिर्फ 0.25 मिलियन बैरल कच्चे तेल से भी कम तेल एक्सपोर्ट कर पाता है। ईरान की ऐसी हालत तब हुई है जब भारत और चीन जैसी बड़ी आर्थिक शक्तियाँ भी ईरान पर इस प्रतिबंध के पक्ष में नहीं थीं। ईरान को इन देशों के साथ होने से भी कोई खास फायदा नहीं पहुँच पाया।

अब ईरान भारत की आलोचना कर भारत को यह संदेश देना चाहता है कि अगर वह ईरान की इकोनमी की बेहतरी के लिए ईरान के साथ व्यापार नहीं बढ़ाता है तो उसके भारत के लिए बुरे अंजाम हो सकते हैं, लेकिन ऐसा करके ईरान अपने आप को और ज़्यादा कूटनीतिक तौर पर अलग-थलग होने की कगार पर पहुंचा रहा है।

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