कहा जाता है कि विषम परिस्थिति में ही किसी व्यक्ति या राष्ट्र की वास्तविक सभ्यता या संस्कृति की परीक्षा होती है। आज जिस तरह से कोरोना वायरस ने विश्व के लगभग सभी देशों में मौत का तांडव मचाया है, यह किसी से छिपा नहीं है लेकिन ऐसी विषम परिस्थिति में इन देशों में सभ्यता और संस्कृति की जड़े कितनी मजबूत है, ये भी स्पष्ट हो रही है। एक तरफ जहां भारतवर्ष ने अपनी प्राचीन सभ्यता का परिचय देते हुए सर्वे भवन्तु सुखिनः का पालन किया है तो वहीं, ब्रिटेन और यूरोपीय देशों की औपनिवेशिक मानसिकता फिर से सामने आ चुकी है। इसी मानसिकता के कारण ब्रिटेन और इटली आज कोरोना से सबसे अधिक प्रभावित होने वाले देशों में से एक है और खुद को First World देश मानने वाले आज विनाश के मुहाने पर खड़े दिखाई दे रहे हैं।
एक तरफ जहां भारतवर्ष ने रविवार को PM Modi के आह्वान पर पूरे भारतवर्ष ने ताली और थाली बजाकर कोरोना के खिलाफ अपनी परवाह न करते हुए लड़ने वाले डॉक्टरों, सफाई कर्मचारियों और सिपाहियों के प्रति आभार व्यक्त किया। तो वहीं ब्रिटेन में डॉक्टरों से बदतमीजी की खबर आ रही है। कल ही एक भीड़ द्वारा आपातकालीन कर्मचारियों पर खांसने और थूकने की खबर भी आई थी। यही नहीं अधिकारियों पर अंडे भी फेंकने की खबर आई है। ब्रिटेन में किस प्रकार का आपदा प्रबंधन है, यह इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि ब्रिटेन के स्वास्थ्य मंत्री नादिन डोरिस को कोरोना हो चुका है।
Please don’t treat us as cannon-fodder
We are over 6000 frontline doctors who are pleading with @BorisJohnson to intervene to ensure all NHS staff adequate personal protective equipment (PPE) when facing the Covid-19 pandemic.#protectthefrontlinehttps://t.co/QU40oqg2aJ
— Doctors’ Association UK 💙 (@TheDA_UK) March 22, 2020
यूके और यूरोप में हालत बहुत बुरे हो चुके हैं, और एक्सपर्ट्स की माने तो भविष्य में ये और भी खराब हो सकते हैं। वायरस के संक्रमण से होने वाली कोविड-19 बीमारी के कारण ब्रिटेन में अब तक 281 जानें जा चुकी हैं और 5600 से अधिक मामले पॉज़िटिव पाये गए हैं। इस वायरस ने ब्रिटेन की लाइफस्टाइल की पोल खोल कर रख दी है। सरकार पूरी तरह से cluless है कि उन्हें करना क्या है। अगर कोई प्लान बन भी रहा है तो वह लोगों द्वारा पालन नहीं किया जा रहा है। अब ऐसे समय में किसी देश में डॉक्टर और फ्रंट लाइन पर मदद कर रहे कर्मचारियों के ऊपर थूका जाता है और अंडे फेंके जाते हैं तो यह उस देश की संस्कृति को ही प्रदर्शित करता है, और यह दर्शाता है कि किस तरह से, ये देश अपने आप को सभी के मुक़ाबले में सुप्रीम दिखाने की कोशिश में लगा रहता है। इन्हें अन्य लोगों को हिन भावना से देखने की आदत है और उसी का नमूना आज के समय में देखने को मिल रहा है।
जिस तरह से 18वी शताब्दी में ब्रिटेन और अन्य यूरोपीय देशों ने अन्य देशों को अपना बंधक बनाया और अपनी संस्कृति थोपने की कोशिश की, अपने देश में आज भी वही कर रहे हैं । न तो इन्हें किसी मदद करने वाले मनुष्य का आभार व्यक्त करना आता है और न ही सम्मान देना। इन्हें बस अपनी दादागिरी दिखानी है। वैसे अगर इतिहास देखा जाए तो इन यूरोपीय देशों और खासकर UK का इतिहास खून से रंगा हुआ है। अपने वर्चस्व के लिए ब्रिटेन ने चीन से लेकर अफ्रीका और भारत से लेकर अमेरिका तक कई लड़ाइयाँ लड़ी और लोगों के धन लूटे, उन्हें बीमारियाँ दी और उन्हें अपना दास बनाया। भारत में तो ब्रिटेन के अत्याचार की कहानी बताने की जरूरत भी नहीं है। अर्थशास्त्र के विशेषज्ञ और पत्रकार मेहनाज़ मर्चेन्ट की रिसर्च । इनके मुताबिक़ 1757 से लेकर 1947 तक अंग्रेज़ों ने 2015 के फ़ॉरेन एक्सचेंज के हिसाब से 30 खरब डॉलर लूटी। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि ब्रिटेन ने भारत को लौटने के लिए किस तरह का अत्याचार किया होगा। इन देशों के DNA में ही लूट और अत्याचार है, जो अभी इस विषम परिस्थिति में निकल कर सामने आ रहा है।
इन यूरोपीय देशों के मुक़ाबले भारत कई गुना बड़ा है लेकिन आज भी हमारी संस्कृति हमारे अंदर है। यहाँ हजारो वर्षों से चली आ रही सभ्यता और वेदों के ज्ञान का ही असर है कि आज भी हम
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः,
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःख भाग्भवेत्।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः
अर्थात “सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय घटनाओं के साक्षी बनें और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े”, के मार्ग पर चल रहे हैं। इसी का प्रदर्शन करते हुए रविवार को पूरे भारतवर्ष ने कोरोना को खिलाफ लड़ाई में डाक्टर, नर्सों सफाई कर्मचारियों, और सैनिकों के प्रति थाली और ताली बजा कर आभार व्यक्त किया और यह संदेश दिया कि हम सभी आपके साथ खड़े हैं और आपका सहयोग कर रहे हैं। कल अपने घरों से शंखनाद कर भारतियों ने बता दिया कि हम कोरोना के खिलाफ एक जुट हो चुके हैं। कन्हैयालाल मिश्रा ने यूं ही नहीं लिखा था कि “युद्ध में जय बोलने वालों का भी महत्व है”। भारतीयों ने कल 5 बजे इसी पंक्ति को चरितार्थ किया।
ऐसी विषम परिस्थिति में भारत की सभ्यता ही पूरे विश्व की मदद कर कर रही है। चाहे वो चीन को मदद पहुंचानी हो या इटली को या फिर मालदीव जैसे छोटे राष्ट्र ही क्यों न हो, भारत ने सभी की मदद की है। यही नहीं अब तो भारत की जीवन पद्धति भी अन्य देश अपना रहे हैं। दाह संस्कार से लेकर तांबे के बर्तन और हल्दी का खाने में प्रयोग बस कुछ उदाहरण हैं। निश्चित ही प्रकृति की इस परीक्षा में भारतीय सभ्यता अन्य देशों से आगे है। भारत की संस्कृति वसुधैव कुटुम्बकम् के रास्ते पर चलती है और पूरे विश्व को अपना परिवार मानती है इसीलिए यह सभ्यता सनातन है और अविरल चलती आ रही है।