SARS के समय जो WHO चीन को उसकी औकात दिखा रहा था, वो कोरोना के समय भीगी बिल्ली बना बैठा है

अब चीन ने WHO में अपने सारे एजेंट्स को बैठा दिया है

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आजकल तुलना करने वालों को बेहद अतार्किक माना जाता है। फिर भी हम तुलना करते हैं अपने अतीत से कि तब हमने क्या किया था और आज हम क्या कर रहे हैं। बात करते हैं बीते 2002-03 के दौरान फैली महामारी सार्स की जिसने पूरी दुनिया में हलचल मचा दिया था। ये बिल्कुल कोरोनावायरस की तरह ही था तब भी चीन ने इस बीमारी को घरेलू स्तर पर फैलने से इंकार कर दिया था। हालांकि बाद में जब मामले ज्यादा आने लगे तो चीन को स्वीकारना पड़ा।

Photos show how the SARS virus impacted the world in 2003 ...

लेकिन अब के कोरोना वायरस और 2002-03 के दौरान का सार्स वायरस में काफी अंतर था और वो अंतर ये था कि उन दिनों सार्स को लेकर WHO ने काफी आक्रामक रवैया अपनाया था। चीन चिल्लाता रहा लेकिन WHO ने सार्स को ग्लोबल पैनडेमिक यानि महामारी घोषित करने में तनिक भी देरी नहीं लगाई। यही नहीं WHO ने सभी देशों को एक एडवायजरी जारी कर यात्रा न करने का सुझाव दिया था, जिसे काफी देशों ने माना और इस महामारी के प्रकोप को अपने देश में आने से रोका।

इसके साथ ही महामारी संबंधित जानकारी को जल्द से जल्द लोगों तक पहुंचाया गया था। चीन सार्स के समय भी महामारी की बात छुपा रहा था लेकिन WHO ने उस समय बिना वक्त गंवाए चीन को दुनिया के सामने फटकार लगाई और कहा कि अगर चीन चाहता तो जल्दी ही इस बीमारी को रोक सकता था या अन्य देशों को बचा सकता था जिससे सार्स वैश्विक बीमारी नहीं बन पाती।

When was the SARS outbreak? How the SARS virus compared to ...

यहां तक की जब आठ महीने के भयंकर संघर्ष के बाद दुनिया सार्स के खत्म होने का जश्न मना रही थी तब भी WHO ने कहा था कि आगे भी हमें ऐसे जानवरों और पक्षियों पर अध्ययन करने की जरुरत है जिससे आने वाले दिनों में किसी अन्य बीमारी को पनपने से रोका जा सके। उस समय भी चीन के मीट बाजार को लेकर काफी बहस हुई थी।

उस समय चीन के तेजी से हो रहे शहरीकरण, दुर्लभ जानवरों से नजदीकी और जंगली जानवरों के अवैध व्यापार पर एक शोध किया गया था, इस शोध पत्र का नाम टाइम बम रखा गया था। इसके बाद साल 2015 में कोरोना वायरस के परिवार की बीमारियों को एक ऐसी सूची में शामिल किया गया था जिन पर तत्काल प्रभाव से रिसर्च करने की जरुरत बताई गयी थी। उस समय कोरोना वायरस को चिन्हित किया गया और बताया गया कि इससे वैश्विक महामारी की जन्म हो सकती है।

ऐसे यह बेहद चौकानें वाली ही बात है कि जब दिसंबर 2019 के आखिरी महीने में वुहान शहर में न्यूमोनिया जैसी बीमारी का पता चला, तब WHO को किसी खास जिम्मेदारी का एहसास नहीं हुआ। दुनिया को एक भ्रम में रखा कि यह बीमारी उतनी खतरनाक नहीं है। वहीं सार्स के समय का रवैया काफी संतोषजनक था।

आज WHO का रवैया बेहद चौकाना वाला ही है कि चीन ने एक तरफ वैश्विक महामारी कोविड-19 के बारे में छुपाया, तब भी WHO ने ध्यान नहीं दिया। उन दिनों एक चीनी डॉक्टर ने दुनिया को बताया था कि चीन में एक अलग तरह का वायरस पैदा हुआ है, जिसकी चपेट में पूरी दुनिया आ सकती है। खैर उस चीनी डॉक्टर को जिनपिंग की प्रशासन ने जेल में डाल दिया, और बाद में उसकी कोरोना की वजह से मौत हो गई।

हालांकि कोरोनावायरस जनवरी के महीने में बुरी तरह फैल चुका था, जिस पर चीन की दुनियाभर में आलोचना हो रही थी लेकिन WHO ने इस पर चीन की काफी तारीफ की थी। इसके साथ ही चीन के बाहर भी कुछ कोरोना के मरीज आ चुके थे तब भी WHO ने अपने आधिकारिक बयान में कहा कि यह रोग ह्यूमन टू ह्यूमन नहीं फैलता।

हालांकि तब ताइवान ने WHO को साफ साफ बताया था कि यह अलग तरह का वायरस है और इसको गंभीरता के साथ नहीं रोका गया तो महामारी का रूप ले सकता है। आपको जानकर ताज्जुब होगा कि जिस वायरस के बारे में ताइवान ने दुनिया को बहुत कड़वा सच बताया वही खुद WHO का सदस्य नहीं है।

कुछ हद तक चीन ने भी इस वायरस के फैलने की जानकारी WHO को दी थी। 31 दिसंबर को चीन ने WHO को बताया कि उनके यहां एक अलग तरह की बीमारी पनप रही है। चीन ने ये भी बताया कि यह वायरस अक्टूबर 2019 से ही फैल रहा है लेकिन WHO के कान पर जूं नहीं रेंगा, न कोई टीम भेजी गयी न ही कोई शोध किया गया। मामला साफ था कि WHO को इस बात का डर था कि कहीं चीन उसके पड़ताल से बुरा न मान जाए।

हालांकि जब मामले एकाएक तेजी के साथ बढ़ने लगे और लोगों की मौत होने लगी तो WHO और चीन की संयुक्त टीम ने वुहान का दौरा किया। दौरे के बाद WHO ने इस पर एक रिपोर्ट जारी की जिसमें चीन की कम्युनिस्ट सरकार की खूब बड़ाई की गई थी।

इस बीच पूरी दुनिया को चीनी वायरस अपनी जकड़ में लेता रहा लेकिन डॉक्टर टेड्रोस और उनकी टीम को कुछ नहीं दिखाई दिया। उन्होंने यहां तक कह दिया कि व्यापार करते रहें, यात्रा पर प्रतिबंध न लगाएं क्योंकि इससे भय का माहौल पैदा होगा, दुनियां आर्थिक मंदी में चली जाएगी। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि इस महामारी के लिए चीन को बदनाम न करें।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की सलाह पर ही यूरोपीय सेंटर फॉर डिजीज प्रिवेंशन ऐंड कंट्रोल ने सुझाव दिया था कि इस वायरस का संक्रमण यूरोप में ज्यादा तेजी के साथ नहीं फैलने वाला, जिससे यूरोपिय देशों ने सख्ती के साथ अपने देशों की सीमाएं सील नहीं की।

वास्तविकता तो यह है कि चीन ने दुनिया के शक्तिशाली अंतरराष्ट्रीय संगठनों पर कब्जा जमा लिया है। चीन विश्व राजनीति में अपनी ताकत बढ़ाना चाहता है और वह इसके लिए उसने WHO को अपना शिकार बना लिया है। यही नहीं WHO ने चीन की विवादित वन बेल्ट वन रोड प्रोजेक्ट पर हस्ताक्षर किया था, उस समय चीन और WHO में स्वास्थ्य को लेकर कई समझौते हुए थे। हालांकि जमीनी स्तर पर इन दोनों का ही स्वास्थ्य से कोई लेना देना नहीं है।

बता दें कि डॉ.टेड्रोस से पहले WHO के निदेशक डॉ. मार्गरेट थे। वो चीनी मूल के कनाडाई नागरिक हैं और उनकी चीन से काफी मधुर संबंध रहे हैं। WHO के मौजूदा निदेशक डॉ. टेड्रोस भी चीन समर्थित ही हैं और कोरोना के समय में उनके हर बयान को देखते हुए कोई भी भांप लेगा कि वो कितने प्रो चायना हैं।

2002-03 के सार्स महामारी और 2019-20 के कोविड-19 में कई समानताएं भले ही आपको देखने को मिले लेकिन इस महामारी पर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की प्रतिक्रिया वैसी नहीं है जैसी सार्स के समय थी। 2003 में विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ दुनिया के कई बड़े देशों ने चीन की खुलेआम आलोचना की थी, दबाव इतना डाला गया कि चीन ने अपने स्वास्थ्य मंत्री को बर्खास्त कर दिया था। वहीं आज हम कहते हैं कि कोविड-19 को वुहान वायरस न बोलो, चीनी वायरस न बोलो, इतना ही नहीं कहते हैं कि यह चीन से नहीं आया है इसलिए चीन को बदनाम मत करो क्योंकि इस पर रिसर्च चल रहा है।

कोरोनावायरस पर चीन ने अपने डॉक्टरों, अधिकारियों, पत्रकारों को सेंसर करके शुरुआती नाकामियों को छिपाने की कोशिश की। इसके बाद मौत के आंकड़ों पर भी पर्दा डालने की नाकाम कोशिश की। दुनिया को कोविड-19 के बारे में जानकारी नहीं दी उल्टे अमेरिका पर इस वायरस के प्रकोप का आरोप लगा रहा है।

चीन की तमाम अवैध हरकतों पर पर्दा डालते हुए WHO ने उसके हितों का बचाव किया है। इतना ही नहीं चीन इस वायरस के चलते बदनाम न हो इसके लिए भी वो दुनिया को बार-बार समझा रहा है कि इसे चीनी वायरस न बोलो। ऐसे में साफ पता चलता है कि WHO कोई कल्याणकारी संस्था नहीं बल्कि चीन की अघोषित स्वास्थ्य विभाग है, जिसके भरोसे दुनिया को अब रहने की जरुरत नहीं है, क्योंकि इसमें चीनी एजेंटो का कब्जा है।

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