एक बार फिर से मोदी डिप्लोमेसी का डंका वैश्विक स्तर पर दिखाई देने जा रहा है। एक तरफ अमेरिका और तालिबान के बीच हुए शांति समझौते में भारत को मध्यस्थता के लिए बुलाया गया, तो अब संयुक्त राष्ट्र ने भारत को इजरायल और फिलिस्तीन के बीच भी मध्यस्थता के लिए बुलाने की कवायद शुरू कर दी है।
दरअसल, संयुक्त राष्ट्र इजरायल और फिलिस्तीन के बीच शांति समझौते के लिए भारत को तैयार करना चाहता है और इसके लिए संयुक्त राष्ट्र का एक प्रतिनिधिमंडल दो दिवसीय यात्रा पर भारत आया था। यह प्रतिनिधिमंडल नई दिल्ली में दोनों देशों के बीच शांति समाधान के लिए राजीनतिक और कूटनीतिक समर्थन के लिए आधार बनाएगा।
इस प्रतिनिधिमण्डल में संयुक्त राष्ट्र के राजदूत, सेनेगल के प्रतिनिधि, इंडोनेशिया और मलेशिया के राजदूत और फिलिस्तीन के समिति पर्यवेक्षक भी शामिल हैं। एक आधिकारिक बयान के अनुसार, प्रतिनिधिमंडल का इरादा इजरायल और फिलिस्तीन के मामले में भारत को अधिक सक्रिय भूमिका के लिए तैयार करना है क्योंकि भारत के फिलिस्तीन और इजरायल दोनों से अच्छे संबंध हैं। इसी वजह से नई दिल्ली दोनों देशों के बीच समन्वय स्थापित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
सोमवार से दो दिन की यात्रा पर आया यह प्रतिनिधिमंडल विदेश मंत्री एस जयशंकर और मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ कई अन्य नेताओं एवं थिंक टैंक से मुलाकात करेगा।
यहां यह जानना बेहद जरूरी है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जुलाई 2017 में इजरायल का दौरा किया था। प्रधानमंत्री का यह दौरा इन दोनों देशों के बीच 25 साल के राजनयिक रिश्तों की स्मृति में था। ऐसा करने वाले वह पहले भारतीय प्रधानमंत्री थे।
यही नहीं इसके बाद पीएम मोदी ने फरवरी 2018 में फिलिस्तीन की ऐतिहासिक यात्रा की और इस बार वह इजरायल नहीं गए थे। इन दोनों ही यात्राओं से पीएम मोदी ने स्पष्ट संदेश दिया है कि दोनों देशों के लिए भारत के मन में स्थान है।
यही नहीं पिछले वर्ष विश्व मंच पर अपने पुराने रुख के उलट, भारत ने संयुक्त राष्ट्र की आर्थिक और सामाजिक परिषद, ईसीओएसओसी में इजरायल के समर्थन में मतदान किया था।
बता दें कि इससे पहले संयुक्त राष्ट्र में भारत ने फिलिस्तीन का समर्थन किया था। अब तक भारत जिस तरह इजरायल का समर्थन करता रहा है, उसमें कोई बदलाव नहीं किया है। भारत ने हमेशा से ही दो देश के सिद्धांत को मानता रहा है और फिलिस्तीन के साथ ही इजरायल के अस्तित्व का भी समर्थन किया है।
भारत के पहले प्रधानमंत्री नेहरु को विदेश नीति के लिए जाना जाता है लेकिन उन्होंने कभी इजरायल का समर्थन नहीं किया था। यह उनकी बड़ी गलतियों में से एक थी। वर्ष 1947 में ही भारत ने इजरायल को एक राष्ट्र के तौर पर मान्यता देने के विरोध में वोट किया था। इसी तरह वर्ष 1949 में एक बार फिर भारत ने संयुक्त राष्ट्र में इजरायल को सदस्य देश बनाने के विरोध में वोट किया था।
भारत और इजराइल का संबंध पिछले 5 वर्षों में एक नयी ऊंचाई पर पहुंच गया है और कारण है इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के साथ पीएम मोदी की गहरी दोस्ती।
वहीं जब फलस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास भारत आए थे तो पीएम मोदी ने फिलिस्तीनी चिंताओं का समर्थन किया था। मोदी ने शांतिपूर्ण इजराइल के साथ संप्रभु, स्वतंत्र और एकजुट फिलिस्तीन की भी बात की थी।
पीएम मोदी ने अपने व्यक्तिगत संबंधो से भारत का अन्य देशों के साथ कूटनीतिक रिश्तों को एक नया आयाम दिया है, जिससे भारत वैश्विक स्तर पर सम्मान की दृष्टि से देखा जा रहा है। अपने दूसरे कार्यकाल में पीएम मोदी ने अपनी विदेश नीति को एक नयी धार दी है, जिससे अब विश्व के दो पक्ष किसी भी शांति समझौते में भारत को शामिल करना चाहते हैं।
एस जयशंकर ने भी विदेश मंत्री के रूप में भारत को अब वैश्विक मुद्दों पर एक बड़ा प्लेयर बना दिया है। कई विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत का रुख यथार्थवादी रहा है। जैसे-जैसे विश्व परिदृष्य में परिवर्तन आ रहा है, भारत अपनी नीतियों को और प्रगाढ़ बनाता जा रहा है। इसके साथ ही अपने हितों के प्रति भारत पहले से ज्यादा सक्रिय हुआ है।
अब जिस तरह से हमारा देश वैश्विक स्तर पर आगे बढ़ रहा है, उससे अंदाजा लगा लेना चाहिए कि भारत अब एक महाशक्ति बनने की राह पर है, जिसकी तरफ दुनिया के कई देशों की नजर है।