No हिंदूफोबिया, No प्रोपेगेंडा- 2020 के शुरूआत में ही Bollywood के वामपंथियों को दर्शकों का जोरदार थप्पड़!

बॉलीवुड के लिबरलों का मार्केट डाऊन है!

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साल 2020 आए अभी दो महीने भी नहीं हुए हैं, परंतु बॉलीवुड की हालात काफी खस्ता हो गई है। ओम राऊत द्वारा निर्देशित ‘तान्हाजी – द अनसंग वॉरियर’ को छोड़ दिया जाए, तो हाल में रिलीज़ हुई कोई भी फिल्म 100 करोड़ का आंकड़ा नहीं पार कर पाई है, ब्लॉकबस्टर बनना तो बहुत दूर की बात। परंतु जितनी भी फिल्में अभी तक फ्लॉप रही हैं, उसके पीछे केवल और केवल एक ही कारण है। अब जनता पहले की भांति फिल्म के नाम पर किसी भी वस्तु को हाथों-हाथ नहीं लेती, और फालतू का प्रोपगैंडा फिर नहीं चलेगा।

2020 की शुरुआत ही प्रोपगैंडा से हुई। परंतु यह प्रोपगैंडा फिल्म के भीतर कम, और फिल्म के प्रोमोशन में ज़्यादा दिखा। हम बात कर रहे हैं फिल्म ‘छपाक’ की। मेघना गुलज़ार द्वारा निर्देशित यह फिल्म एसिड अटैक पीड़िता लक्ष्मी अग्रवाल और उनके संघर्ष पर आधारित थी। सर्फ़ेस पर ये फिल्म उतनी भी बुरी नहीं थी, और ‘तान्हाजी’ जैसी ऐतिहासिक फिल्म के साथ क्लैश करने के बावजूद इस फिल्म द्वारा अच्छी खासी धनराशि कमाई जाने की उम्मीद की जा रही थी।

परंतु सारे किए कराये पर अभिनेत्री दीपिका पादुकोण के जेएनयू दौरे ने पानी फेर दिया, क्योंकि उन्होंने उन लोगों को अप्रत्यक्ष रूप से अपना समर्थन दिया, जिन्होंने जेएनयू में हिंसा शुरू की थी, और फिर प्रत्युत्तर में पीटे जाने पर विक्टिम कार्ड खेल रहे थे। इसी कारण जिस छपाक से ‘तान्हाजी’ के बॉक्स ऑफिस कलेक्शन में सेंध मारने की आशा की जा रही थी, वो लिबरलों के लाख प्रचार-प्रसार के बाद भी घरेलू कलेक्शन में अपना 40 करोड़ के बजट का आंकड़ा भी पार नहीं कर पायी।

रही सही कसर दीपिका पादुकोण के आपत्तीजनक टिक टॉक चैलेंज ने पूरी कर दी, और कुल मिलाकर छपाक 40 करोड़ के बजट पर महज 34 करोड़ से कुछ ज़्यादा ही घरेलू बॉक्स ऑफिस पर अर्जित कर पाई। वहीं ‘छपाक’ के प्रति जनता के आक्रोश का लाभ ‘तान्हाजी’ को भी मिला, और ये फिल्म आज भी देश के कई सिनेमाघरों में लगी हुई है, और घरेलू बॉक्स ऑफिस पर 275 करोड़ रुपये का आंकड़ा पार कर चुकी है।

परंतु शायद बॉलीवुड के एलीट वर्ग ने इससे कोई सीख नहीं ली, और एक बार फिर उन्हे मुंह की खानी पड़ी। 24 जनवरी को प्रदर्शित ‘स्ट्रीट डांसर 3 डी’ कहने को डांस आधारित फिल्म थी, पर इस फिल्म में डांस पर कम और भारत की तुलना में पाकिस्तान के महिमामंडन पर ज़्यादा फोकस किया गया। उसके ऊपर से जनता को इस फालतू के लेक्चर का टॉर्चर 3डी में झेलना पड़ा। इसीलिए गणतन्त्र दिवस से दो दिन पहले प्रदर्शित होने के बावजूद ये फिल्म दर्शकों को रास नहीं आई, और ये फिल्म कुल मिलाकर अपने 110 करोड़ के बजट के मुक़ाबले केवल 68.17 करोड़ ही घरेलू बॉक्स ऑफिस पर अर्जित कर पायी, और फिल्म बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप सिद्ध हुई। कलंक के बाद यह वरुण धवन की दूसरी लगातार फ्लॉप फिल्म है। अब नाले के पानी को कोका कोला बनाके तो नहीं बेच सकते न!

अब बात प्रोपगैंडा की हो, और ‘शिकारा’ की बात न करें, ऐसा हो सकता है क्या? 13 साल बाद डायरेक्टर की कुर्सी संभालने वाले विधु विनोद चोपड़ा ने ‘शिकारा’ के जरिये कश्मीरी पंडितों के साथ हुई नाइंसाफी को दिखाने का दावा किया था। मूवी की टैगलाइन भी थी, ‘द अंटोल्ड स्टोरी ऑफ कश्मीरी पंडित’। परंतु मूवी का वास्तविकता से दूर दूर तक कोई नाता नहीं था। इस्लामिक कट्टरपंथ पर प्रकाश डालना तो बहुत दूर की बात, इस फिल्म में हिन्दू सभ्यता को अपमानित करने में विधु विनोद चोपड़ा और पटकथा के लेखक राहुल पंडिता ने कोई कसर नहीं छोड़ी।

इतना ही नहीं, जब एक कश्मीरी पंडित युवती ने शिकारा में कश्मीरी पंडितों के त्रासदी के चित्रण पर अपनी आपत्ति जताई, तो विधु विनोद चोपड़ा ने मानो तंज़ कसते हुए कहा, आपके लिए ‘शिकारा 2’ बनाएँगे। हद तो तब हो गयी, जब राहुल पंडिता और विधु विनोद चोपड़ा ने आलोचना करने वालों पर ही अपनी भड़ास निकालनी शुरू कर दी, और उन्हें गधा तक कह डाला। अब 12 करोड़ के बजट पर भी कुल मिलकर 8 करोड़ ही बॉक्स ऑफिस पर जो फिल्म कमा पाये, तो समझ जाइए की वास्तव में गधा कौन है?

इसी तरह इम्तियाज़ अली एक बार फिर दर्शकों के समक्ष आए ‘लव आज कल 2’ के साथ। ये उन्हीं की फिल्म ‘लव आज कल’ से प्रेरित एक स्टैंडअलोन रीमेक थी, जिसमें कार्तिक आर्यन और सारा अली खान मुख्य भूमिका में थे। पर पुरानी शराब को नए बोतल में बेचने का इनका विश्वप्रसिद्ध पैंतरा जनता को बिल्कुल भी पसंद नहीं आया, और ये फिल्म बॉक्स ऑफिस पर औंधे मुंह गिरी। ओपेनिंग वीकेंड में अच्छा कलेक्शन करने के बाद भी ये फिल्म सोमवार से औंधे मुंह गिरी, और अंत में 60 करोड़ के बजट के मुक़ाबले केवल 35 करोड़ पर ही सिमट कर रह गई।

पर भैया ई तो एलीट बॉलीवुड है, बेइज्जती कराए बिना खाना थोड़े ही पचेगा। सो फिर आ गए ‘शुभ मंगल ज़्यादा सावधान’ के साथ। यह फिल्म एक समलैंगिक जोड़े की प्रेम कहानी और समाज के प्रति उसके व्यवहार पर आधारित हैं। अब न तो फिल्म इतनी बुरी थी, और न ही इसका मूल विचार, क्योंकि 21वीं सदी है, सभी व्यक्तियों और टिक टॉक वालों को अपनी मर्जी से जीने का अधिकार है।

परंतु अपनी बात को सलीके से कहने और उसे ज़बरदस्ती थोपने में एक अंतर होता है, और यही अंतर का ध्यान रखने में आयुष्मान खुराना और ‘शुभ मंगल ज़्यादा सावधान’ के मेकर्स ने गलती कर दी। आश्चर्य की बात तो ये है कि ‘शुभ मंगल सावधान’, ‘विकी डोनर’, ‘ड्रीम गर्ल’ और ‘बाला’ जैसी फिल्मों में संवेदनशील मुद्दों को भी इतने सलीके से अपनी अदाकारी से बताने वाले आयुष्मान खुराना ऐसी फिल्में क्यों कर रहे हैं।

अब ये फिल्म बाकियों की तरह फ्लॉप तो नहीं हुई, परंतु आयुष्मान खुराना के पिछले सात फिल्मों की परफ़ोर्मेंस को देखते हुए इसका बॉक्स ऑफिस कलेक्शन को शानदार तो कतई नहीं है। पहले हफ्ते में 45 करोड़ के बजट के मुक़ाबले इस फिल्म ने केवल 50 करोड़ रुपये की कमाई की है, जिसने एक तरह से आयुष्मान के विजय रथ पर लगाम से लगा दी है।

शायद बॉलीवुड ये भूल रही है कि आज भी जनता की राय सर्वोपरि होती है। कोई ‘सेलेब्रिटी’ क्रिटिक चाहे जितने स्टार लुटा दे, यदि जनता को वो फिल्म पसंद नहीं आई, तो आप चाहकर भी उसका मन नहीं बदल सकते। एक दो फिल्मों को अगर छोड़ दें, तो अब जनता ने स्पष्ट रूप से प्रोपगैंडा को नकारना 2018 से ही शुरू कर दिया था, और हम आशा करते हैं कि वे आगे भी ऐसे विषैले फिल्मों को सिरे से नकारते रहें।

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