WHO जानबूझकर चीन की मदद करने के लिए ताइवान को अनदेखा कर रहा है, इंटरव्यू में पोल खुल गई

WHO और चीन ने दुनिया को महामारी के दंश में ढकेला, इन पर बैन लगाओ

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पूरे विश्व में कोरोना का कहर जारी है और अभी तक 30 हजार से अधिक लोगों की जान ले चुका है। चीन के वुहान शहर से शुरू हुआ यह कोरोना वायरस अब दुनिया के लगभग सभी देश तक पहुंच चुका है। कई देश चीन पर इस वायरस को फैलाने का सीधे तौर पर आरोप लगा चुके हैं लेकिन WHO अभी भी चीन के खिलाफ एक भी शब्द कहने से बच रहा है। इसी क्रम में इस बार WHO ने ताइवान के सवाल पर अनदेखी कर दी। यह सभी को पता है कि चीन के वजह से ताइवान को देश का दर्जा नहीं मिल पाया है, और WHO किस प्रकार से चीन से मिला हुआ है इसका खुलासा एक बार फिर से हो गया।

दरअसल, रेडियो टेलीविजन हॉन्ग-कॉन्ग RTHK की एक पत्रकार ने वीडियो कॉल पर WHO से ताइवान की स्थिति के बारे में पूछा तो पहले तो सहायक महानिदेशक ब्रूस आयलवर्ड ने वीडियो कॉल ही काट दिया। लेकिन जब पत्रकार ने दोबारा उनसे सवाल किया तो उन्होंने जवाब दिया कि इस बारे में चीन से बात हो चुकी है। इस बातचीत का एक वीडियो भी वायरल हो रहा है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के सहायक महानिदेशक ब्रूस आयलवर्ड ने पहले तो पत्रकार के उस सवाल को अनसुना कर दिया जिसमें यह पूछा गया था कि क्या संयुक्त राष्ट्र WHO में ताइवान की सदस्यता पर पुनर्विचार करेगा। आयलवर्ड ने जवाब दिया कि मुझे खेद है कि मैं आपका सवाल नहीं सुन पाया। इसके बाद उन्होंने वीडियो कॉल ही काट दिया।

जब महिला पत्रकार ने दोबारा वीडियो कॉल कर पूछा कि ताइवान के संबंध में कोरोना वायरस के उपायों के बारे में कुछ बताएं तो आयलवर्ड ने कहा कि हम पहले ही चीन के बारे में बात कर चुके हैं आप अगला सवाल पूछे। इसके बाद फिर उन्होंने वीडियो कॉल को समाप्त कर दिया।

बता दें कि यह इंटरव्यू RTHK के साप्ताहिक समाचार शो ‘द पल्स’ का हिस्सा था। इस इंटरव्यू का यह वीडियो पूरी दुनिया में सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। लोग आरोप लगा रहे हैं कि WHO ताइवान के साथ सीधे तैर पर पक्षपात कर रहा है और चीन का पक्ष लेकर वन चाइना नीति का समर्थन कर रहा है।

मालूम हो कि 1945 से ताइवान को चीन सरकार द्वारा शासित किया जा रहा है। बीजिंग हमेशा जोर देकर कहता है कि यह द्वीप उसके क्षेत्र का हिस्सा है और अन्य देशों और अंतर्राष्ट्रीय निकायों पर अपनी ‘वन चाइना’ नीति का पालन करने के लिए दबाव डालता है।

बता दें कि ताइवान ने COVID-19 उर्फ चीनी वायरस के खतरों के बारे में दिसंबर, 2019 की शुरुआत में चेतावनी दी थी, लेकिन WHO ने नजरअंदाज कर दिया था। यही नहीं कोरोनावायरस जनवरी के महीने में बुरी तरह फैल चुका था, जिस पर चीन की दुनियाभर में आलोचना हो रही थी लेकिन WHO ने इस पर चीन की काफी तारीफ की थी। इसके साथ ही चीन के बाहर भी कुछ कोरोना के मरीज आ चुके थे तब भी WHO ने अपने आधिकारिक बयान में कहा कि यह रोग ह्यूमन टू ह्यूमन नहीं फैलता।

हालांकि तब भी ताइवान ने WHO को साफ-साफ बताया था कि यह अलग तरह का वायरस है और इसको गंभीरता के साथ नहीं रोका गया तो महामारी का रूप ले सकता है। आपको जानकर ताज्जुब होगा कि जिस वायरस के बारे में ताइवान ने दुनिया को बहुत कड़वा सच बताया वही खुद WHO का सदस्य नहीं है। चीन के दबाव के कारण ही ताइवान को डब्‍ल्‍यूएचओ की सदस्‍यता नहीं मिल पाई है. और यही सब कारण हैं कि ताइवान को एक देश के बजाय चीन के एक राज्‍य के रूप में देखा जाता है।

ताइवान इससे पहले भी WHO पर अनदेखी करने का आरोप लगा चुका है। ताइवान का कहना है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन का यह रवैया ताइवान के नागरिकों के जीवन को जोखिम में डालता है। ताइवान का आरोप है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ऐसा चीन के दबाव में आकर कर रहा है, क्योंकि उस पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बाहर करने के लिए दबाव है।

जिस तरह से चीन और WHO की साँठ-गांठ सामने आ रही है उससे अन्य देशों को भी सावधान हो जाना चाहिए और इन दोनों पर ही विश्व के करोड़ों लोगों की जान से खेलने का आरोप लगाकर इन्हें प्रतिबंधित कर देना चाहिए।

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